लखनऊ : बहुजन समाज पार्टी का किला लगातार ढहता जा रहा है. लोकसभा चुनाव 2024 में बहुजन समाज पार्टी 10 सीटों से शून्य पर आ गई. इसके बाद उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुआ, इसमें भी पार्टी का खाता तक नहीं खुला. हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में भी बसपा की हालत खराब ही रही.
दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी कुछ खास नहीं कर पाई. पार्टी के खराब प्रदर्शन के पीछे राजनीतिक विश्लेषक सबसे बड़ा कारण पार्टी से नेताओं की विदाई मान रहे हैं. उनका मानना है कि अब पार्टी के पास पहले जैसे कद्दावर नेता बचे नहीं हैं. यही वजह है कि पार्टी को इसका लगातार नुकसान उठाना पड़ रहा है.
2007 विधानसभा चुनाव में बसपा को मिली थी प्रचंड जीत
उत्तर प्रदेश में जो पहले कभी नहीं हुआ था वह पहली बार बहुजन समाज पार्टी ने साल 2007 में अकेले दम पर कर दिखाया था. बीएसपी ने 212 सीटों के प्रचंड बहुमत के साथ उत्तर प्रदेश की सत्ता पर अधिकार जमाया.
2012 में गिरा पार्टी का ग्राफ
इससे पहले भी तीन बार बीएसपी सुप्रीमो मायावती विभिन्न पार्टियों के सहयोग से सरकार बनाती रहीं, लेकिन चौथी बार जब मायावती की सरकार बनी तो किसी भी दल की जरुरत बीएसपी को नहीं पड़ी. हालांकि 2012 आते-आते पार्टी का ग्राफ गिरने लगा.
![एक समय पार्टी में नसीमुद्दीन सिद्दीकी और इंद्रजीत सरोज का जलवा था.](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/13-02-2025/up-luc-01-special-bsp-7203805_13022025140850_1302f_1739435930_725.jpg)
सपा गठबंधन में मिली थी 10 सीट
चाहे लोकसभा चुनाव हो या फिर विधानसभा, पार्टी को उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिली. 2019 में बहुजन समाज पार्टी ने समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और 10 सीट पाने में कामयाब हुई.
2022 विधानसभा चुनाव में मिली सिर्फ 1 सीट
2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव हुआ. पार्टी ने अकेले दम पर चुनाव लड़ा. बलिया की रसड़ा विधानसभा सीट को छोड़ पार्टी कहीं भी नहीं जीत पाई. रसड़ा के बारे में माना जाता है कि यहां से विधायक उमाशंकर सिंह निर्दलीय भी लड़े तो भी जीतने में सक्षम हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में फिर से पार्टी ने अकेले लड़ने का फैसला किया. लेकिन पार्टी का खाता तक नहीं खुला.
![आरके चौधरी का नाम बसपा के बड़े नेताओं नें शामिल था. पार्टी से बाहर होने के बाद सपा से सांसद हैं.](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/13-02-2025/up-luc-01-special-bsp-7203805_13022025140850_1302f_1739435930_815.jpg)
मायावती से नेता और अधिकारी घबराते थे
बहुजन समाज पार्टी की उत्तर प्रदेश में चार बार सरकार रही. बसपा सुप्रीमो मायावती का टेरर इस कदर था कि पार्टी के नेता और सरकारी अधिकारी उनसे घबराते रहे. पार्टी में उस समय ऐसे कद्दावर नेता थे जो दूसरी पार्टियों में नहीं थे. इनमें नसीमुद्दीन सिद्दीकी को मायावती के बाद दूसरे नंबर का माना जाता था.
बसपा सुप्रीमो ने कई नेताओं को पार्टी से किया बाहर
स्वामी प्रसाद मौर्य, रामअचल राजभर, बाबू सिंह कुशवाहा, इंद्रजीत सरोज, आरके चौधरी, लाल जी वर्मा और अशोक सिद्धार्थ जैसे बड़े नेता पार्टी में थे. सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं देशभर में पार्टी का दबदबा था. धीरे-धीरे पार्टी के नेताओं पर अनुशासनहीनता का आरोप लगाते हुए बीएसपी सुप्रीमो ने एक्शन लेना शुरू किया और उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया.
पार्टी में नामचीन चेहरा नहीं
ज्यादातर नेताओं ने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया और वर्तमान में विधायक, सांसद और राष्ट्रीय महासचिव तक बने हुए हैं, जबकि बहुजन समाज पार्टी की स्थिति यह हो गई है कि मायावती के बाद कोई ऐसा नामचीन चेहरा पार्टी में नहीं रह गया है जो जनता से सीधे तौर पर जुड़ा हो.
मायावती का प्रभाव हो रहा कम
गौर करने वाली बात यह भी है कि बसपा सुप्रीमो मायावती चुनाव में गिनी चुनी जनसभाएं ही करती हैं, जिसके चलते जनता पर उसका प्रभाव भी नहीं पड़ रहा है. यही वजह है कि देशभर में लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने के बाद भी पार्टी की एक भी सीट नहीं निकल पा रही है.
अशोक सिद्धार्थ पर कार्रवाई से फिर दिया कड़ा संदेश
बसपा सुप्रीमो मायावती अपने सख्त एक्शन के लिए हमेशा से जानी जाती हैं. बुधवार (12 फरवरी) को भतीजे आकाश आनंद के ससुर अशोक सिद्धार्थ पर कार्रवाई कर नेताओं को एक बार फिर कड़ा संदेश दिया कि पार्टी में अनुशासनहीनता बिल्कुल बर्दाश्त नहीं होगी, फिर चाहे कोई कितना भी करीबी क्यों न हो.
![मायावती ने पार्टी से भतीजे आकाश आनंद के ससुर अशोक सिद्धार्थ को बाहर कर दिया है.](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/13-02-2025/up-luc-01-special-bsp-7203805_13022025140850_1302f_1739435930_621.jpg)
भतीजे आकाश पर भी लिया था एक्शन
मायावती की कार्रवाई का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जब लोकसभा चुनाव के दौरान भतीजे आकाश आनंद ने सीतापुर में रैली के दौरान कुछ ऐसा भाषण दिया जो मायावती को नागवार गुजरा. इसके बाद उन्होंने अपने भतीजे पर ही कार्रवाई कर दी. पार्टी का उत्तराधिकारी घोषित करने के बाद उनसे यह अधिकार वापस ले लिया. हालांकि जब सब मामला शांत हो गया तब फिर से भतीजे को वही पद वापस किया.
![मायावती ने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी का उत्तराधिकारी बनाया है.](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/13-02-2025/up-luc-01-special-bsp-7203805_13022025140850_1302f_1739435930_211.jpg)
क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक ...
बड़े नेता पार्टी से हुए अलग
राजनीतिक विश्लेषक मनमोहन का कहना है कि बहुजन समाज पार्टी की बागडोर जब कांशीराम के हाथ में थी, तब जो नेता थे, वे धीरे-धीरे आज पार्टी से अलग हो गए. आरके चौधरी, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, बाबू सिंह कुशवाहा ने पार्टी की स्थापना में योगदान दिया था.
विभिन्न जातियों के पिछड़े, दलित इस तरह के तमाम नेता पार्टी से जुड़े और अलग हो गए. इसमें एक नाम बृजेश पाठक का भी आता है जो बहुजन समाज पार्टी से बाद में जुड़े. दो बार मायावती ने उन्हें राज्यसभा भेजा. बाद में वही पार्टी से अलग हो गए. उनके पार्टी से अलग होने का कारण दूसरा था.
नसीमुद्दीन सिद्दीकी का भी कारण एक अलग तरह का ही था. बाद में स्वामी प्रसाद मौर्य चले गए. मायावती की पार्टी उत्तर प्रदेश में हाशिए पर जा रही है. विधानसभा में संख्या घटकर एक रह गई है. दूसरे राज्य में उनका उतना लाभ नहीं मिल रहा है.
अशोक सिद्धार्थ पर मायावती करती थीं भरोसा
मनमोहन कहते हैं, अब पार्टी की छटपटाहट दूसरी तरीके की है. उसमें कहीं से भी उन्हें लगता है कि कोई व्यक्ति पार्टी को नुकसान पहुंचा सकता है, वह कुछ भी हो किसी भी स्तर पर हो उसको हटाने में तनिक भी देर नहीं करतीं.
अब अशोक सिद्धार्थ का जो मसला है वह आकाश आनंद के ससुर हैं और मायावती ने उनकी बेटी का हाथ खुद जाकर आकाश आनंद के लिए मांगा था. अशोक सिद्धार्थ वह व्यक्ति हैं जो सरकारी नौकरी करते थे. बहुजन समाज पार्टी के यूथ विंग में जुड़े थे. उनके पिताजी कांशीराम के साथ काम करते थे. अशोक सिद्धार्थ पर मायावती बहुत भरोसा करती थीं.
उनको एक साथ तीन-तीन राज्यों का प्रभारी बनाया था, जिसमें राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ शामिल था, लेकिन सफलता मायावती की पार्टी को नहीं मिली. इसके बाद उन्हें दक्षिण के राज्यों के जिम्मेदारी सौंप दी गई. वहां का प्रभार दे दिया गया.
गुटबाजी में फंसे अशोक सिद्धार्थ
अशोक सिद्धार्थ को मायावती ने 2016 में राज्यसभा भेजा. उससे पहले विधान परिषद में भेजा था. बहुत करीबी नेताओं में शामिल होते थे. निकाले जाने का कारण आंतरिक गुटबाजी भी बताई जा रही है. मायावती का मानना है कि वह गुटबाजी कर रहे थे.
अब आकाश आनंद जो बहुजन समाज पार्टी में आज की स्थिति में नंबर दो के व्यक्ति हैं उनके ससुर के ऊपर इतना कड़ा एक्शन लेना तो कहीं न कहीं ऐसा लगता है कि पार्टी के दूसरे नेताओं को कड़ा संदेश देने का प्रयास मायावती का हो सकता है.
एक्शन लेना मायावती की यूएसपी में शामिल
राजनीतिक विश्लेषक मनमोहन बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में जब मायावती की सरकार बनी थी तो उन्होंने पहली जनसभा गोरखपुर में की थी. उस दौरान वहां के मंडलायुक्त ओमप्रकाश थे, वह मायावती के सजातीय थे, लेकिन सबसे पहले करवाई उन्होंने ओम प्रकाश पर ही की थी. उन्हें निलंबित कर दिया था. इससे समझा जा सकता है कि एक्शन लेने के मामले में मायावती जरा भी देरी नहीं करती हैं. ऐसा भी कहा जा सकता है कि यही उनकी यूएसपी भी है.
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