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नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा के दर्शन से मिलती है दुखों से मुक्ति

नवरात्रि के चौथे दिन देवी मां कुष्मांडा के दर्शन के लिए मंदिरों में काशीवासियों की भीड़ उमड़ी है. मां कुष्मांडा की उपासना से आयु, यश, बल और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है. जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था और चारों ओर अंधकार था, तब कुष्मांडा देवी ने अपने ईषत् हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी.

मां कुष्मांडा के दर्शन के लिए उमड़ा भक्तों का हुजूम
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Published : Apr 9, 2019, 8:43 AM IST

Updated : Apr 9, 2019, 10:48 AM IST

वाराणसी: नवरात्रि के चौथे दिन देवी दर्शन के लिए मंगलवार को भक्तों का भीड़ काशी के मंदिरों में उमड़ी. मां कुष्मांडा देवी का मंदिर दुर्गा कोन इलाके में स्थित है. दर्शनार्थियों की भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने मंदिरों के आस-पास सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए हैं. काशीवासियों के लिए दुर्गा कुंड मंदिर की मान्यता बहुत है. शहरवासियों का कहना है कि बनारस में नव दुर्गा के अलग-अलग मंदिर हैं पर यह इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां पर देवी का कुंड भी मौजूद है. इसमें स्नान करने से भक्तों की सभी पीड़ा मां हरती हैं.

मां कुष्मांडा के दर्शन के लिए उमड़ा भक्तों का हुजूम.

चौथे दिन देवी स्वरूप मां कुष्मांडा की विधिवत पूजा की जाती है. भक्तों का मानना है कि मां कुष्मांडा की उपासना से आयु, यश, बल और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है. अपनी मंद हंसी द्वारा अंड उत्पन्न करने के कारण इन्हें कुष्मांडा देवी के नाम से जाना जाता है. जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था और चारों ओर अंधकार ही अंधकार था, तब इन्हीं देवी ने अपने ईषत् हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी.

मान्यता यह भी है कि जब असुरों के घोर अत्याचार से देव, नर, मुनि त्रस्त हो रहे थे, तब देवी जन संताप के नाश के लिए कुष्मांडा स्वरूप में अवतरित हुईं. मां भगवती का यह स्वरूप भक्तों को दुखों से छुटकारा दिलाता है. देवी स्वरूप के पूजन में 'अर्ध मात्रा चेतन नित्या यानी चार्य विशेषक त्वमेव संध्या सावित्री त्वं देवि जननी परा' मंत्र का विशेष महत्व है.

वाराणसी: नवरात्रि के चौथे दिन देवी दर्शन के लिए मंगलवार को भक्तों का भीड़ काशी के मंदिरों में उमड़ी. मां कुष्मांडा देवी का मंदिर दुर्गा कोन इलाके में स्थित है. दर्शनार्थियों की भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने मंदिरों के आस-पास सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए हैं. काशीवासियों के लिए दुर्गा कुंड मंदिर की मान्यता बहुत है. शहरवासियों का कहना है कि बनारस में नव दुर्गा के अलग-अलग मंदिर हैं पर यह इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां पर देवी का कुंड भी मौजूद है. इसमें स्नान करने से भक्तों की सभी पीड़ा मां हरती हैं.

मां कुष्मांडा के दर्शन के लिए उमड़ा भक्तों का हुजूम.

चौथे दिन देवी स्वरूप मां कुष्मांडा की विधिवत पूजा की जाती है. भक्तों का मानना है कि मां कुष्मांडा की उपासना से आयु, यश, बल और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है. अपनी मंद हंसी द्वारा अंड उत्पन्न करने के कारण इन्हें कुष्मांडा देवी के नाम से जाना जाता है. जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था और चारों ओर अंधकार ही अंधकार था, तब इन्हीं देवी ने अपने ईषत् हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी.

मान्यता यह भी है कि जब असुरों के घोर अत्याचार से देव, नर, मुनि त्रस्त हो रहे थे, तब देवी जन संताप के नाश के लिए कुष्मांडा स्वरूप में अवतरित हुईं. मां भगवती का यह स्वरूप भक्तों को दुखों से छुटकारा दिलाता है. देवी स्वरूप के पूजन में 'अर्ध मात्रा चेतन नित्या यानी चार्य विशेषक त्वमेव संध्या सावित्री त्वं देवि जननी परा' मंत्र का विशेष महत्व है.

Intro:वाराणसी। नवरात्रि में देवी दर्शन के क्रम में आज 14 दिन भक्तों का हुजूम काशी के मंदिरों में आता है। मां कुष्मांडा देवी के दर्शन के लिए शहर में मां का मंदिर दुर्गा कोन इलाके में स्थित है। दर्शनार्थियों की भीड़ को देखते हुए प्रशासन की तरफ से सभी मंदिरों के आसपास सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए गए हैं। मां के दुर्गा कुंड की मान्यता काशी वासियों के लिए बहुत है। शहर वासियों का कहना है कि यूं तो बनारस में नव दुर्गा के अलग-अलग मंदिर है पर यह इकलौता ऐसा मंदिर है जहां पर देवी का कुंड भी मौजूद है जिस में स्नान करने से भक्तों की सभी पीड़ा मा हर लेती है।


Body:VO1: चौथे दिन देवी स्वरूप मां कुष्मांडा के विधिवत पूजा की जाती है। सुबह भोर में मां की मंगला आरती के बाद भक्तों को मां कुष्मांडा के दर्शन होते हैं। मां की एक झलक पाकर भक्त निहाल होते हैं भक्तों का मानना है कि मां कुष्मांडा की उपासना से आयु, यश, बल और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है। अपनी मंद हंसी द्वारा अंड उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से जाना जाता है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था और चारों और अन्य कार्य पर व्याप्त था तब इन्हीं देवी ने अपने रिश्ते हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी।

बाइट: संतोष, भक्त
बाइट: विशेश्वर झा, पंडित


Conclusion:VO2: मान्यता यह भी है कि जब असुरो के घोर अत्याचार से देव, नर, मुनि त्रस्त हो रहे थे, तब भी देवी जन संताप के नाश के लिए कुष्मांडा स्वरूप में अवतरित हुई। मां भगवती का यह स्वरूप भक्तों को दुखों से छुटकारा दिलाता है। तप, योग, संसार जिनके उधर में स्थित है वही भगवती कूष्मांडा के नाम से विख्यात हुई हैं। देवी के स्वरूप के पूजन में 'अर्ध मात्रा चेतन नित्या यानी चार्य विशेषक त्वमेव संध्या सावित्री त्वं देवि जननी परा' मंत्र का विशेष महत्व है।

Regards
Arnima Dwivedi
Varanasi
7523863236
Last Updated : Apr 9, 2019, 10:48 AM IST
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