वाराणसी: फर्जी डिग्रियों के मामले में संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय एक बार फिर सुर्खियों में है. इस बार एसआईटी की जांच रिपोर्ट ने विश्वविद्यालय की कुलपति से लेकर कर्मचारियों तक सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है. दरअसल 2015 में गठित एसआईटी ने विश्वविद्यालय के 17 कर्मियों के पर गुरुवार को एफआईआर दर्ज कराई है.
दरअसल, 2015 में शिक्षकों के दस्तावेजों के सत्यापन के बाद फर्जी डिग्रियों की बात सामने आई थी. इसके बाद इस मामले की जांच के लिए बकायदा एसआईटी का गठन हुआ. एसआईटी ने 2004 से लेकर 2014 तक की बीच की डिग्रियों को खंगालना शुरू कर दिया. इस दौरान 207 शिक्षकों के दस्तावेजों में गड़बड़ी मिली. साथ ही 1130 डिग्रियां भी फर्जी पाई गई. इस फर्जी डिग्री के सहारे सैकड़ों लोगों को नौकरी मिलने की बात भी सामने आई थी. एसआईटी ने जांच रिपोर्ट के बाद विश्वविद्यालय के 17 कर्मचारियों पर एफआईआर दर्ज कर दिया है.
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विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रोफेसर ओमप्रकाश का कहना है कि यह मामला डिग्रियों के सत्यापन से जुड़ा हुआ है. एफआईआर को लेकर जानकारी नहीं है. एसआईटी ने जो निर्णय लिया है. वह निश्चित तौर पर विश्वविद्यालय के हित में हैं. जांच में जो दोषी हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई होगी.
वहीं, विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रों ने भी इस कार्रवाई का स्वागत किया. उन्होंने कहा कि यह घोटाला विश्वविद्यालय की छवि को धूमिल कर रहा है. निश्चित तौर पर इसमें शामिल दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि पुनः इस तरीके के घोटाले न हो, क्योंकि इसकी वजह से वर्तमान में भी डिग्री प्राप्त करने वाले विद्यार्थी भविष्य में संदेह के घेरे में हो सकते हैं.
गौरतलब हो कि इस मामले में 2020 में भी एसआईटी ने विश्वविद्यालय को दोषी कर्मचारियों के ऊपर एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया था. लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा हीलाहवाली बरती गई, जिसके बाद एसआईटी ने अब खुद एफआईआर दर्ज कर आगे की कार्रवाई का निर्णय लिया है.
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