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कोरोना महामारी ने बदल दिया अंतिम संस्कार का नियम, हिंदू-ईसाई समुदाय अपना रहे ये तरीके

विभिन्न समुदाय के लोग कोरोना महामारी के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं. इस महामारी ने लोगों पर इस तरह कहर बरपाया कि संक्रमितों की मौत के बाद खुद उनके अपने भी पहचानने से इनकार कर रहे हैं. ऐसे मरीजों का अंतिम संस्कार कोविड प्रोटोकॉल के तहत किया जा रहा है. देखें ये रिपोर्ट-

बदल गया अंतिम क्रिया का तरीका
बदल गया अंतिम क्रिया का तरीका
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Published : May 23, 2021, 6:42 PM IST

Updated : May 23, 2021, 8:40 PM IST

वाराणसी: कहते हैं इंसान मृत्यु के बाद उन तमाम बंधनों से मुक्त हो जाता है, जो जीवन में उसके सामने परेशानी बनकर खड़े रहते हैं. अगर आपसे यह कहें कि कोविड-19 संक्रमण के इस भयानक दौर में जिंदा रहने के लिए संघर्ष करने के बाद मरने वालों के लिए भी परेशानी खड़ी हो रही है, तो यह कोई आश्चर्य करने की बात नहीं होगी. महामारी के इस दौर में मृत्यु के बाद अपनों की अपनों से दूरी, श्मशान घाट से कब्रिस्तान तक ऊंचे रेट पर अंतिम क्रिया करने के लिए हो रही वसूली, अंतिम क्रिया में होने वाले तमाम बदलाव, मृत्यु के बाद हो रही परेशानियों के सच को उजागर करने के लिए काफी हैं. हालात यह हैं कि हर तरफ स्थिति बिगड़ी हुई है और कागजों पर सब कुछ दुरुस्त कर बेहतर व्यवस्था का दावा किया जा रहा है. इन दावों की हकीकत क्या है? देखिए ईटीवी भारत की इस खास रिपोर्ट में-

बदल गया अंतिम क्रिया का तरीका

बदल गया अंतिम क्रिया का तरीका
हर धर्म और मजहब में अंतिम संस्कार के अलग-अलग रीति रिवाज होते हैं. हिंदू समुदाय में मरने के बाद मुखाग्नि देने की प्रक्रिया अपनाई जाती है. ईसाई धर्म में लोगों की मृत्यु के बाद उन्हें कब्रिस्तान में दफनाया जाता है. लेकिन इस महामारी ने मृत्यु के बाद मोक्ष के तरीके को ही बदल दिया है. हिंदू धर्म में अग्नि देने की परंपरा कम ही निभाई जा रही है, क्योंकि कोरोना से होने वाली मौतों के बाद ऐसे शवों का दाह संस्कार वाराणसी के हरिश्चंद्र घाट पर बनाए गए प्राकृतिक गैस शवदाह गृह में किया जा रहा है. यहां मुखाग्नि की कोई परंपरा ही नहीं है.

हिंदू-इसाई समुदाय ऐसे कर रहे अपनों का अंतिम संस्कार.
हिंदू-इसाई समुदाय ऐसे कर रहे अपनों का अंतिम संस्कार.

ईसाई धर्म में जलाए जा रहे शव

इस दौरान ईसाई धर्म में भी एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. वाराणसी में ईसाई कम्युनिटी की अच्छी खासी आबादी है. यहां पर कई कब्रिस्तान हैं, जहां ईसाई समुदाय के लोगों को मृत्यु के बाद दफनाया जाता है. वाराणसी के चौकाघाट स्थित इसाई कम्युनिटी के कब्रिस्तान में जब ईटीवी भारत की टीम ने पहुंचकर हालात का जायजा लिया, तो हम भी थोड़ा शॉक्ड हो गए. चारों तरफ कई नई बनी कब्र दिखाई दे रही थी. लगभग 5 कब्र तो आज ही खोदकर छोड़ी गई थी. जब हमने यहां के व्यवस्थापक से बातचीत की, तो उन्होंने साफ तौर पर बताया कि ऐसा भयावह दृश्य कभी नहीं देखा. रोज पांच से सात डेड बॉडी फ्यूनरल (अंतिम संस्कार) के लिए लाई जा रही हैं. जगह कम है और मरने वालों की संख्या ज्यादा है. ऐसी स्थिति में बहुत से लोग जिनके घरों में कोरोना संक्रमण से किसी की मौत हो रही है, भय की वजह से ऐसे लोग अपनों का दाह संस्कार कर रहे हैं, जो ईसाई समुदाय में कभी देखने को नहीं मिलता था. संक्रमण से बचने के लिए उनकी राख को लाकर कब्रिस्तान में दफनाया जा रहा है. यह बात खुद ईसाई कम्युनिटी के फादर भी कर रहे हैं.

कब्रिस्तान में अंतिम संस्कार के लिए हो रही वसूली.
कब्रिस्तान में अंतिम संस्कार के लिए हो रही वसूली.

ईसाइयों में फ्यूनरल का तरीका बदला

ईसाई कम्युनिटी के फादर के मुताबिक, इस महामारी के दौर में ईसाई कम्युनिटी में होने वाले फ्यूनरल का तरीका बदल गया है. पहले किसी की मृत्यु के बाद उसके घर पर जाकर शांति पाठ करना, उसकी आत्मा की शांति के लिए तमाम प्रक्रिया अपनाना और फिर शव को चर्च में लाकर वहां पर प्रार्थना सभा करना और उसके बाद कब्रिस्तान में ले जाकर अंतिम प्रार्थना करने के बाद उसे दफनाने की प्रक्रिया होती थी. लेकिन अब ऐसा नहीं होता. यदि किसी की मृत्यु संक्रमण से हो रही है, तो 10 से 12 लोगों की मौजूदगी में पीपीई किट पहनकर पूरी सेफ्टी के साथ उसे दफनाने की प्रक्रिया की जा रही है. कई लोग तो इतना ज्यादा डरे हुए हैं कि अस्पताल में मृत्यु के बाद शव सीधे श्मशान पहुंचा रहे हैं. वहां दाह संस्कार के बाद राख को लाकर कब्रिस्तान में पक्की कब्र बनाकर उसमें दफनाया जा रहा है. कुल मिलाकर इस महामारी ने ईसाई कम्यूनिटी में होने वाले फ्यूनरल के तरीके को ही बदल दिया है.

महामारी ने बदल दिया अंतिम संस्कार का नियम
महामारी ने बदल दिया अंतिम संस्कार का नियम

नहीं थम रहा वसूली का सिलसिला

मरने वालों की संख्या और आंकड़े कम हो गए हैं, लेकिन श्मशान घाटों पर अव्यवस्था का आलम अभी देखने को मिल रहा है. हालात ये है कि शवों के दाह संस्कार के लिए मोटी रकम वसूली जा रही है. चाहे अंतिम क्रिया की सामग्री हो या फिर दाह संस्कार के लिए आग देने की प्रक्रिया. यहां तक कि शवों को चिता तक पहुंचाने के एवज में दिए जाने वाले कंधे के नाम पर भी वसूली हो रही है. क्योंकि कोरोना मरीजों को मौत के बाद उनकी लाश को अपनों ने भी छूने से दूरी बना रखी है. इसकी वजह से यहां पर मौजूद मजदूर 500 से 2000 रुपये तक पर व्यक्ति वसूल रहे हैं. हाल ही में भेलूपुर थाना क्षेत्र के हरिश्चंद्र घाट पर 15 हजार रुपये दाह संस्कार के लिए मांगे जाने के मामले में शिकायत के बाद एक व्यक्ति की गिरफ्तारी भी हुई है.

अब रीति रिवाजों से नहीं कर रहे अंतिम संस्कार.
अब रीति रिवाजों से नहीं कर रहे अंतिम संस्कार.

पहले के मुकाबले महंगा हो गया अंतिम संस्कार

लगातार ऐसे मामलों के सामने आने के बाद प्रशासनिक स्तर पर रेट का निर्धारण किया जा चुका है. हरिश्चंद्र घाट पर प्राकृतिक गैस शवदाह गृह में दाह संस्कार के लिए 500 रुपये और लकड़ी पर दाह संस्कार के लिए यदि कोविड-19 व्यक्ति की डेड बॉडी है, तो 7000 रुपये और यदि नहीं है, तो 5000 रुपये का भुगतान करना होगा. प्रशासनिक स्तर पर सिर्फ पोस्टर और होर्डिंग लगाए जाने के बाद कागजों पर ही का रेट निर्धारित है और निगरानी ना होने की वजह से श्मशान घाटों पर अंतिम क्रिया की सामग्री से लेकर दाह संस्कार के लिए मोटी रकम वसूली जा रही है. लकड़ी वालों की मनमानी ज्यादा चल रही है. कुलमिलाकर पहले जहां शवों के दाह संस्कार के लिए 4000 से 5000 रूपये का खर्च होता था, वहीं कोरोना काल में यह खर्च बढ़कर 10 हजार से 15 हजार रुपये को भी पार कर चुका है. यानी संक्रमण काल में अंतिम संस्कार करना भी महंगा हो चुका है.

संक्रमितों का शव छूने से डर रहे लोग.
संक्रमितों का शव छूने से डर रहे लोग.
शव को श्मशान तक लाना बड़ी चुनौती

संक्रमण के इस भयानक दौर में एक तरफ जहां अंतिम संस्कार सही और जल्दी कर देना बड़ी चुनौती है, तो वहीं अस्पताल में मृत्यु के बाद संक्रमित व्यक्ति के शव को घाट तक लाना भी अपने आप में कम सिर दर्द नहीं है. क्योंकि अस्पतालों की एंबुलेंस शव लेकर जाने के लिए राजी नहीं होती. इसके लिए अलग से लगाए गए एंबुलेंस की उपलब्धता के लिए मरीज के परिजनों को इंतजार करना पड़ता है. ऐसी स्थिति में यदि बाहर की एंबुलेंस की व्यवस्था की जाए तो घाट तक पहुंचाने के लिए एंबुलेंस कर्मी मोटी रकम मांगते हैं. 5 से 10 किलोमीटर के एवज में कई बार 5 से 10 हजार रुपये की डिमांड की जाती है. मैदागिन इलाके में एक प्राइवेट अस्पताल में एक मरीज की मृत्यु के बाद शव को हरिश्चंद्र घाट ले जाने के लिए 12 हजार रुपये की डिमांड की गई थी. इसकी शिकायत पुलिस से भी की गई. हालांकि बाद में एंबुलेंस कर्मी ने अपनी गलती स्वीकार कर माफी मांग ली. इसके बाद भी यह सिलसिला जारी है. एंबुलेंस से शव घाट तक ले जाना काफी महंगी प्रक्रिया साबित हो रहा है.

शव यात्रा में भीड़ हो गई गायब

एक तरफ जहां इस वायरस ने अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को जटिल बना दिया है, तो वही अंतिम संस्कार के लिए होने वाली भीड़ को भी कम कर दिया है. पहले जहां शव यात्रा में लंबी चौड़ी भीड़ दिखाई देती थी. वहीं अब चार कंधे भी मिल पाना मुश्किल हो रहा है. अपनों ने ना सिर्फ अपनों से दूरी बनाई है, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी काफी बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. गिने-चुने लोगों की मौजूदगी में शवदाह संपन्न हो रहे हैं. इस दौरान भीड़ ना के बराबर दिखाई दे रही है.

इसे भी पढ़ें- कोरोना अपडेटः 24 घंटे में 2.40 लाख नए मामले, 3741 मौत, जानें राज्यों के हाल

मुसीबत के वक्त ऐसे लोग बने मददगार

इस संकट की घड़ी में बहुत से ऐसे दृश्य भी सामने आए हैं, जिसने मानवता को शर्मसार किया है. अंतिम क्रिया के वक्त बमुश्किल 2 से 3 लोगों की मौजूदगी शवदाह में बड़ी परेशानी भी खड़ी कर रही है. सबसे बड़ी बात यह है कि बहुत से लोगों ने अंतिम समय में अपने रिश्तेदारों की मुसीबत की घड़ी में उनसे दूरी बना ली. इसकी वजह से सामाजिक संगठनों के लोगों ने इस संकट की घड़ी में बहुत से लोगों का साथ दिया है. बनारस में भी अमन कबीर जैसे लोगों ने इस मुसीबत के वक्त अब तक 50 से ज्यादा शवों के दाह संस्कार की व्यवस्था की है. अमन ने अब तक 30 से ज्यादा शवों को खुद मुखाग्नि दी है, जबकि 20 लोगों को श्मशान घाट तक पहुंचाने से लेकर अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को संपन्न कराने में बड़ी भूमिका निभाई है. अमन के साथ ऐसे बहुत से लोग हैं जो काशी में इस मुसीबत के वक्त लोगों का साथ दे रहे हैं. ऐसे भी कई दृश्य सामने आए जहां बेटियों ने पिता के शव को मुखाग्नि दी या फिर बेटियों ने ही मां के शव को कंधा दिया. ऐसे कई दृश्य सामने आने के बाद निश्चित तौर पर इस वायरस की वह हकीकत भी देखने को मिल रही है, जिसने मुसीबत में अपनों को अपनों की पहचान करा दी है.

इसे भी पढ़ें- ताज के 'अनलॉक' होने का इंतजार कर रहे छोटे कारोबारी, बोले- नहीं खुला तो मर जाएंगे भूखे

टूट गई धार्मिक परंपराएं

हिंदू रीति रिवाज में जहां तमाम परिवर्तन के साथ अंतिम संस्कार पूरा हो रहा है, तो क्रिश्चियन कम्युनिटी में भी अब बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. यानी इस वायरस ने उन तमाम मित्रों को भी तोड़ दिया है, जो सैकड़ों, हजारों सालों से धर्म और संप्रदाय को परंपराओं में बांधकर रखने की बातें करते थे.

वाराणसी: कहते हैं इंसान मृत्यु के बाद उन तमाम बंधनों से मुक्त हो जाता है, जो जीवन में उसके सामने परेशानी बनकर खड़े रहते हैं. अगर आपसे यह कहें कि कोविड-19 संक्रमण के इस भयानक दौर में जिंदा रहने के लिए संघर्ष करने के बाद मरने वालों के लिए भी परेशानी खड़ी हो रही है, तो यह कोई आश्चर्य करने की बात नहीं होगी. महामारी के इस दौर में मृत्यु के बाद अपनों की अपनों से दूरी, श्मशान घाट से कब्रिस्तान तक ऊंचे रेट पर अंतिम क्रिया करने के लिए हो रही वसूली, अंतिम क्रिया में होने वाले तमाम बदलाव, मृत्यु के बाद हो रही परेशानियों के सच को उजागर करने के लिए काफी हैं. हालात यह हैं कि हर तरफ स्थिति बिगड़ी हुई है और कागजों पर सब कुछ दुरुस्त कर बेहतर व्यवस्था का दावा किया जा रहा है. इन दावों की हकीकत क्या है? देखिए ईटीवी भारत की इस खास रिपोर्ट में-

बदल गया अंतिम क्रिया का तरीका

बदल गया अंतिम क्रिया का तरीका
हर धर्म और मजहब में अंतिम संस्कार के अलग-अलग रीति रिवाज होते हैं. हिंदू समुदाय में मरने के बाद मुखाग्नि देने की प्रक्रिया अपनाई जाती है. ईसाई धर्म में लोगों की मृत्यु के बाद उन्हें कब्रिस्तान में दफनाया जाता है. लेकिन इस महामारी ने मृत्यु के बाद मोक्ष के तरीके को ही बदल दिया है. हिंदू धर्म में अग्नि देने की परंपरा कम ही निभाई जा रही है, क्योंकि कोरोना से होने वाली मौतों के बाद ऐसे शवों का दाह संस्कार वाराणसी के हरिश्चंद्र घाट पर बनाए गए प्राकृतिक गैस शवदाह गृह में किया जा रहा है. यहां मुखाग्नि की कोई परंपरा ही नहीं है.

हिंदू-इसाई समुदाय ऐसे कर रहे अपनों का अंतिम संस्कार.
हिंदू-इसाई समुदाय ऐसे कर रहे अपनों का अंतिम संस्कार.

ईसाई धर्म में जलाए जा रहे शव

इस दौरान ईसाई धर्म में भी एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. वाराणसी में ईसाई कम्युनिटी की अच्छी खासी आबादी है. यहां पर कई कब्रिस्तान हैं, जहां ईसाई समुदाय के लोगों को मृत्यु के बाद दफनाया जाता है. वाराणसी के चौकाघाट स्थित इसाई कम्युनिटी के कब्रिस्तान में जब ईटीवी भारत की टीम ने पहुंचकर हालात का जायजा लिया, तो हम भी थोड़ा शॉक्ड हो गए. चारों तरफ कई नई बनी कब्र दिखाई दे रही थी. लगभग 5 कब्र तो आज ही खोदकर छोड़ी गई थी. जब हमने यहां के व्यवस्थापक से बातचीत की, तो उन्होंने साफ तौर पर बताया कि ऐसा भयावह दृश्य कभी नहीं देखा. रोज पांच से सात डेड बॉडी फ्यूनरल (अंतिम संस्कार) के लिए लाई जा रही हैं. जगह कम है और मरने वालों की संख्या ज्यादा है. ऐसी स्थिति में बहुत से लोग जिनके घरों में कोरोना संक्रमण से किसी की मौत हो रही है, भय की वजह से ऐसे लोग अपनों का दाह संस्कार कर रहे हैं, जो ईसाई समुदाय में कभी देखने को नहीं मिलता था. संक्रमण से बचने के लिए उनकी राख को लाकर कब्रिस्तान में दफनाया जा रहा है. यह बात खुद ईसाई कम्युनिटी के फादर भी कर रहे हैं.

कब्रिस्तान में अंतिम संस्कार के लिए हो रही वसूली.
कब्रिस्तान में अंतिम संस्कार के लिए हो रही वसूली.

ईसाइयों में फ्यूनरल का तरीका बदला

ईसाई कम्युनिटी के फादर के मुताबिक, इस महामारी के दौर में ईसाई कम्युनिटी में होने वाले फ्यूनरल का तरीका बदल गया है. पहले किसी की मृत्यु के बाद उसके घर पर जाकर शांति पाठ करना, उसकी आत्मा की शांति के लिए तमाम प्रक्रिया अपनाना और फिर शव को चर्च में लाकर वहां पर प्रार्थना सभा करना और उसके बाद कब्रिस्तान में ले जाकर अंतिम प्रार्थना करने के बाद उसे दफनाने की प्रक्रिया होती थी. लेकिन अब ऐसा नहीं होता. यदि किसी की मृत्यु संक्रमण से हो रही है, तो 10 से 12 लोगों की मौजूदगी में पीपीई किट पहनकर पूरी सेफ्टी के साथ उसे दफनाने की प्रक्रिया की जा रही है. कई लोग तो इतना ज्यादा डरे हुए हैं कि अस्पताल में मृत्यु के बाद शव सीधे श्मशान पहुंचा रहे हैं. वहां दाह संस्कार के बाद राख को लाकर कब्रिस्तान में पक्की कब्र बनाकर उसमें दफनाया जा रहा है. कुल मिलाकर इस महामारी ने ईसाई कम्यूनिटी में होने वाले फ्यूनरल के तरीके को ही बदल दिया है.

महामारी ने बदल दिया अंतिम संस्कार का नियम
महामारी ने बदल दिया अंतिम संस्कार का नियम

नहीं थम रहा वसूली का सिलसिला

मरने वालों की संख्या और आंकड़े कम हो गए हैं, लेकिन श्मशान घाटों पर अव्यवस्था का आलम अभी देखने को मिल रहा है. हालात ये है कि शवों के दाह संस्कार के लिए मोटी रकम वसूली जा रही है. चाहे अंतिम क्रिया की सामग्री हो या फिर दाह संस्कार के लिए आग देने की प्रक्रिया. यहां तक कि शवों को चिता तक पहुंचाने के एवज में दिए जाने वाले कंधे के नाम पर भी वसूली हो रही है. क्योंकि कोरोना मरीजों को मौत के बाद उनकी लाश को अपनों ने भी छूने से दूरी बना रखी है. इसकी वजह से यहां पर मौजूद मजदूर 500 से 2000 रुपये तक पर व्यक्ति वसूल रहे हैं. हाल ही में भेलूपुर थाना क्षेत्र के हरिश्चंद्र घाट पर 15 हजार रुपये दाह संस्कार के लिए मांगे जाने के मामले में शिकायत के बाद एक व्यक्ति की गिरफ्तारी भी हुई है.

अब रीति रिवाजों से नहीं कर रहे अंतिम संस्कार.
अब रीति रिवाजों से नहीं कर रहे अंतिम संस्कार.

पहले के मुकाबले महंगा हो गया अंतिम संस्कार

लगातार ऐसे मामलों के सामने आने के बाद प्रशासनिक स्तर पर रेट का निर्धारण किया जा चुका है. हरिश्चंद्र घाट पर प्राकृतिक गैस शवदाह गृह में दाह संस्कार के लिए 500 रुपये और लकड़ी पर दाह संस्कार के लिए यदि कोविड-19 व्यक्ति की डेड बॉडी है, तो 7000 रुपये और यदि नहीं है, तो 5000 रुपये का भुगतान करना होगा. प्रशासनिक स्तर पर सिर्फ पोस्टर और होर्डिंग लगाए जाने के बाद कागजों पर ही का रेट निर्धारित है और निगरानी ना होने की वजह से श्मशान घाटों पर अंतिम क्रिया की सामग्री से लेकर दाह संस्कार के लिए मोटी रकम वसूली जा रही है. लकड़ी वालों की मनमानी ज्यादा चल रही है. कुलमिलाकर पहले जहां शवों के दाह संस्कार के लिए 4000 से 5000 रूपये का खर्च होता था, वहीं कोरोना काल में यह खर्च बढ़कर 10 हजार से 15 हजार रुपये को भी पार कर चुका है. यानी संक्रमण काल में अंतिम संस्कार करना भी महंगा हो चुका है.

संक्रमितों का शव छूने से डर रहे लोग.
संक्रमितों का शव छूने से डर रहे लोग.
शव को श्मशान तक लाना बड़ी चुनौती

संक्रमण के इस भयानक दौर में एक तरफ जहां अंतिम संस्कार सही और जल्दी कर देना बड़ी चुनौती है, तो वहीं अस्पताल में मृत्यु के बाद संक्रमित व्यक्ति के शव को घाट तक लाना भी अपने आप में कम सिर दर्द नहीं है. क्योंकि अस्पतालों की एंबुलेंस शव लेकर जाने के लिए राजी नहीं होती. इसके लिए अलग से लगाए गए एंबुलेंस की उपलब्धता के लिए मरीज के परिजनों को इंतजार करना पड़ता है. ऐसी स्थिति में यदि बाहर की एंबुलेंस की व्यवस्था की जाए तो घाट तक पहुंचाने के लिए एंबुलेंस कर्मी मोटी रकम मांगते हैं. 5 से 10 किलोमीटर के एवज में कई बार 5 से 10 हजार रुपये की डिमांड की जाती है. मैदागिन इलाके में एक प्राइवेट अस्पताल में एक मरीज की मृत्यु के बाद शव को हरिश्चंद्र घाट ले जाने के लिए 12 हजार रुपये की डिमांड की गई थी. इसकी शिकायत पुलिस से भी की गई. हालांकि बाद में एंबुलेंस कर्मी ने अपनी गलती स्वीकार कर माफी मांग ली. इसके बाद भी यह सिलसिला जारी है. एंबुलेंस से शव घाट तक ले जाना काफी महंगी प्रक्रिया साबित हो रहा है.

शव यात्रा में भीड़ हो गई गायब

एक तरफ जहां इस वायरस ने अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को जटिल बना दिया है, तो वही अंतिम संस्कार के लिए होने वाली भीड़ को भी कम कर दिया है. पहले जहां शव यात्रा में लंबी चौड़ी भीड़ दिखाई देती थी. वहीं अब चार कंधे भी मिल पाना मुश्किल हो रहा है. अपनों ने ना सिर्फ अपनों से दूरी बनाई है, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी काफी बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. गिने-चुने लोगों की मौजूदगी में शवदाह संपन्न हो रहे हैं. इस दौरान भीड़ ना के बराबर दिखाई दे रही है.

इसे भी पढ़ें- कोरोना अपडेटः 24 घंटे में 2.40 लाख नए मामले, 3741 मौत, जानें राज्यों के हाल

मुसीबत के वक्त ऐसे लोग बने मददगार

इस संकट की घड़ी में बहुत से ऐसे दृश्य भी सामने आए हैं, जिसने मानवता को शर्मसार किया है. अंतिम क्रिया के वक्त बमुश्किल 2 से 3 लोगों की मौजूदगी शवदाह में बड़ी परेशानी भी खड़ी कर रही है. सबसे बड़ी बात यह है कि बहुत से लोगों ने अंतिम समय में अपने रिश्तेदारों की मुसीबत की घड़ी में उनसे दूरी बना ली. इसकी वजह से सामाजिक संगठनों के लोगों ने इस संकट की घड़ी में बहुत से लोगों का साथ दिया है. बनारस में भी अमन कबीर जैसे लोगों ने इस मुसीबत के वक्त अब तक 50 से ज्यादा शवों के दाह संस्कार की व्यवस्था की है. अमन ने अब तक 30 से ज्यादा शवों को खुद मुखाग्नि दी है, जबकि 20 लोगों को श्मशान घाट तक पहुंचाने से लेकर अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को संपन्न कराने में बड़ी भूमिका निभाई है. अमन के साथ ऐसे बहुत से लोग हैं जो काशी में इस मुसीबत के वक्त लोगों का साथ दे रहे हैं. ऐसे भी कई दृश्य सामने आए जहां बेटियों ने पिता के शव को मुखाग्नि दी या फिर बेटियों ने ही मां के शव को कंधा दिया. ऐसे कई दृश्य सामने आने के बाद निश्चित तौर पर इस वायरस की वह हकीकत भी देखने को मिल रही है, जिसने मुसीबत में अपनों को अपनों की पहचान करा दी है.

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टूट गई धार्मिक परंपराएं

हिंदू रीति रिवाज में जहां तमाम परिवर्तन के साथ अंतिम संस्कार पूरा हो रहा है, तो क्रिश्चियन कम्युनिटी में भी अब बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. यानी इस वायरस ने उन तमाम मित्रों को भी तोड़ दिया है, जो सैकड़ों, हजारों सालों से धर्म और संप्रदाय को परंपराओं में बांधकर रखने की बातें करते थे.

Last Updated : May 23, 2021, 8:40 PM IST
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