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ज्ञानवापी मामलाः अंजुमन इंतजामियां के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की याचिका को कोर्ट ने किया खारिज - विश्व वैदिक सनातन संघ

अंजुमन इंतजामियां के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की मांग को लेकर दायर याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया है. न्यायाधीश ने कहा कि यह मामला पोषणीय योग्य नहीं है.

ज्ञानवापी मामला.
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Published : Jun 7, 2022, 8:05 PM IST

वाराणसी: ज्ञानवापी विवाद में एक के बाद एक याचिका भले ही न्यायालय में दाखिल हो रही हों. लेकिन न्यायालय भी इस पूरे मामले को संवेदनशील मानते हुए कठोर टिप्पणी करते हुए याचिकाओं को खारिज करता जा रहा है. इसी तरह अंजुमन इंतजामियां मसाजिद कमेटी के ज्वाइंट सेक्रेटरी एसएस यासीन समेत 1000 लोगों पर धार्मिक भावनाएं आहत करने के लिए अधिवक्ता राजा आनंद ज्योति की तरफ से विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में दी गई याचिका को 3 दिनों तक सुनवाई करने के बाद खारिज कर दिया. न्यायाधीश ने कहा कि मामला पोषणीय योग्य नहीं है. कोर्ट ने कहा कि जब मामला सिविल कोर्ट में विचाराधीन है, तो ऐसे में दूसरे कोर्ट में इस तरह के मामले प्रस्तुत करना पब्लिसिटी स्टंट पाने का एक तरीका हो सकता है.

दरअसल अधिवक्ता राजा आनंद ज्योति की तरफ से विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट नागेश वर्मा की अदालत में एक प्रार्थना पत्र दिया गया था. जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के अंदर वजू खाने में कमीशन की कार्यवाही के दौरान मिले कथित शिवलिंग को बार-बार फव्वारा कहने और वहां वजू खाना और शौचालय शब्द का इस्तेमाल करने पर आपत्ति जताते हुए इसे धार्मिक भावनाओं को ठेस बताकर न्यायालय से 156 3 के तहत मुकदमा दर्ज कर कानूनी कार्रवाई की मांग की गई थी.

ऐसा ही एक मामला पिछले दिनों भी विशेष न्यायालय में आया था, जिसमें विश्व वैदिक सनातन संघ के प्रमुख जितेंद्र सिंह बिसेन ने भी 156 -3 के तहत धार्मिक भावनाएं आहत करने की शिकायत करते हुए मुकदमा दर्ज करने की मांग की थी. जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था, इसके बाद यह एप्लीकेशन कोर्ट में पड़ी. जिसे कोर्ट ने 3 दिनों तक सुना और मंगलवार को सुनवाई पूरी होने के बाद आदेश जारी किया कि मामला पोषणीय योग्य नहीं है. कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर कहा कि मामला पहले से ही सिविल कोर्ट में विचाराधीन है और सर्वे रिपोर्ट में भी चीजें स्पष्ट नहीं है. इसलिए किसी विचाराधीन मामले में इस तरह की एप्लीकेशन स्वीकार करने योग्य नहीं है.

इसे भी पढ़ें-Gyanvapi Case: अखिल भारतीय संत समिति का बड़ा एलान, शिव उपासना से निकलेगा समाधान

कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रकरण संवेदनशील है और सिविल न्यायालय में विचाराधीन है. ऐसा प्रतीत होता है कि प्रार्थी ने संवेदनशील मुद्दे में अपना हित साधने और लाइमलाइट में बने रहने के लिए यह प्रार्थना पत्र दिया है. जो कदापि उचित नहीं कहा जा सकता है. अतः तथ्यों व परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए प्रार्थना पत्र को पोषणीय ना पाकर इसे निरस्त किया जाता है.

वाराणसी: ज्ञानवापी विवाद में एक के बाद एक याचिका भले ही न्यायालय में दाखिल हो रही हों. लेकिन न्यायालय भी इस पूरे मामले को संवेदनशील मानते हुए कठोर टिप्पणी करते हुए याचिकाओं को खारिज करता जा रहा है. इसी तरह अंजुमन इंतजामियां मसाजिद कमेटी के ज्वाइंट सेक्रेटरी एसएस यासीन समेत 1000 लोगों पर धार्मिक भावनाएं आहत करने के लिए अधिवक्ता राजा आनंद ज्योति की तरफ से विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में दी गई याचिका को 3 दिनों तक सुनवाई करने के बाद खारिज कर दिया. न्यायाधीश ने कहा कि मामला पोषणीय योग्य नहीं है. कोर्ट ने कहा कि जब मामला सिविल कोर्ट में विचाराधीन है, तो ऐसे में दूसरे कोर्ट में इस तरह के मामले प्रस्तुत करना पब्लिसिटी स्टंट पाने का एक तरीका हो सकता है.

दरअसल अधिवक्ता राजा आनंद ज्योति की तरफ से विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट नागेश वर्मा की अदालत में एक प्रार्थना पत्र दिया गया था. जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के अंदर वजू खाने में कमीशन की कार्यवाही के दौरान मिले कथित शिवलिंग को बार-बार फव्वारा कहने और वहां वजू खाना और शौचालय शब्द का इस्तेमाल करने पर आपत्ति जताते हुए इसे धार्मिक भावनाओं को ठेस बताकर न्यायालय से 156 3 के तहत मुकदमा दर्ज कर कानूनी कार्रवाई की मांग की गई थी.

ऐसा ही एक मामला पिछले दिनों भी विशेष न्यायालय में आया था, जिसमें विश्व वैदिक सनातन संघ के प्रमुख जितेंद्र सिंह बिसेन ने भी 156 -3 के तहत धार्मिक भावनाएं आहत करने की शिकायत करते हुए मुकदमा दर्ज करने की मांग की थी. जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था, इसके बाद यह एप्लीकेशन कोर्ट में पड़ी. जिसे कोर्ट ने 3 दिनों तक सुना और मंगलवार को सुनवाई पूरी होने के बाद आदेश जारी किया कि मामला पोषणीय योग्य नहीं है. कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर कहा कि मामला पहले से ही सिविल कोर्ट में विचाराधीन है और सर्वे रिपोर्ट में भी चीजें स्पष्ट नहीं है. इसलिए किसी विचाराधीन मामले में इस तरह की एप्लीकेशन स्वीकार करने योग्य नहीं है.

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कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रकरण संवेदनशील है और सिविल न्यायालय में विचाराधीन है. ऐसा प्रतीत होता है कि प्रार्थी ने संवेदनशील मुद्दे में अपना हित साधने और लाइमलाइट में बने रहने के लिए यह प्रार्थना पत्र दिया है. जो कदापि उचित नहीं कहा जा सकता है. अतः तथ्यों व परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए प्रार्थना पत्र को पोषणीय ना पाकर इसे निरस्त किया जाता है.

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