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रक्षाबंधन मनाने की तारीख को लेकर कंफ्यूजन, जानिए काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों की राय - रक्षाबंधन की तारीख को लेकर भ्रम की स्थिति

इस बार रक्षाबंधन त्यौहार को लेकर लोगों में भ्रम की स्थिति है. कोई 30 अगस्त को रक्षाबंधन मनाने की बात कर रहा है तो कोई 31 अगस्त को. वहीं, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों ने भी रक्षाबंधन को लेकर अपनी बात कही है. जानिए क्या है इनका कहना.

रक्षाबंधन
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Published : Aug 12, 2023, 10:27 PM IST

वाराणसी: भाई और बहन के प्रेम का पर्व रक्षाबंधन इस बार कब मनाया जाएगा. यह प्रश्न इसलिए भी बड़ा है. क्योंकि, रक्षाबंधन को लेकर इस बार गजब का कंफ्यूजन है. कन्फ्यूजन इसलिए कि कोई 30 अगस्त को तो कोई 31 अगस्त को इस त्यौहार को मनाने की बात कर रहा है. लेकिन, शास्त्रों में क्या निर्णय हैं और रक्षाबंधन का पर्व कब और किस हिसाब से मनाया जाना उचित है? इस बारे में काशी के विद्वानों खासतौर पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय ज्योतिष विभाग के प्रोफेसर अपनी राय स्पष्ट तौर पर बता रहे हैं. ज्योतिष विभाग के प्रोफेसर सुभाष पांडेय और प्रो विनय कुमार पांडेय का कहना है कि रक्षाबंधन का त्यौहार इस वर्ष 30 अगस्त को रात्रि 9 बजे के बाद और 31 अगस्त की सुबह 7:45 तक मनाया जाना ही शास्त्र सम्मत है. इसके पीछे की वजह क्या है, यह भी जान लीजिए.

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सुभाष पांडेय का कहना है कि इस वर्ष रक्षाबंधन का पर्व 30 अगस्त 2023 को रात्रि 9 बजे के बाद मनाया जाना शास्त्र सम्मत इसलिए है. क्योंकि, 30 अगस्त को दिन में 10:12 बजे सुबह पूर्णिमा तिथि लग रही है. लेकिन, उसी वक्त भद्रा का भी आगमन हो रहा है. भद्रा सुबह 10:12 बजे पर लगने के बाद रात्रि 8:58 बजे तक रहेगी. क्योंकि, शास्त्रों में भद्रा काल में रक्षा बांधना निषेध है. इसलिए रात्रि 9 बजे के बाद रक्षा बांधना उचित माना जा रहा है. क्योंकि, पूर्णिमा दूसरे दिन सुबह 7:45 बजे तक मान्य है और उदया तिथि के मान के अनुसार दूसरे दिन सुबह 7:45 बजे तक ही रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाना धर्म शास्त्र के अनुसार उचित है.

'30 अगस्त को रात 9 बजे के बाद है मुहूर्त'

प्रोफेसर सुभाष पांडेय का कहना है कि धर्म और निर्णय सिंधु रक्षाबंधन के त्यौहार को 30 अगस्त की रात्रि 9 बजे के बाद मनाए जाने के लिए भी स्पष्ट रूप से कट रहे हैं. उनके मुताबिक, शास्त्रीय विवेचन के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया है कि बदला तिथि में किसी भी प्रकार का कोई कार्य सनातन धर्म में नहीं किया जाता, चाहे वह रक्षाबंधन का पर्व हो या होलिका दहन या कोई अन्य कार्य. भद्रा अपने आप में वह समय काल होता है, जिसमें कार्यों को निषिद्ध बताया गया है. इसलिए भद्रा काल में रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाना श्रेयस्कर नहीं है. क्योंकि, 30 अगस्त को रात्रि 8:58 पर भद्रा समाप्त हो रही है. इसलिए 9 बजे से रक्षाबंधन का पर्व बहनें और भाई मना सकते हैं.

'प्रतिपदा के दिन रक्षाबंधन मनाया जाना निषिद्ध'

प्रोफेसर सुभाष पांडेय का कहना है कि धर्म और निर्णय सिंधु के मुताबिक, स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि यदि भद्रा रहित और तीन मुहूर्त से अधिक पूर्णिमा के अपराह्न प्रदोष काल मिल रहा है तो ऐसे में रक्षाबंधन करना उपयुक्त होता है. क्योंकि, 30 अगस्त की रात्रि यह तीनों मुहूर्त से अधिक अलग-अलग काल में मिल रहे हैं. इसलिए 30 अगस्त को ही रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाएगा. हालांकि, कुछ लोग 31 अगस्त को भी पूरे दिन रक्षाबंधन मनाया जाने की बात कर रहे हैं लेकिन प्रोफेसर सुभाष पांडेय का कहना है कि नियम और निर्णय सिंधु के मुताबिक 31 अगस्त की सुबह तीन मुहूर्त कहीं से प्राप्त नहीं हो रहे इसलिए 30 अगस्त की रात्रि ही रक्षाबंधन मनाया जाना उपयुक्त है. उनका कहना है कि बहुत से लोग अपने स्वार्थ और अज्ञानता वश ऐसी बातें कर रहे हैं कि 31 तारीख को ही रक्षाबंधन का पर्व पूरा दिन मनाया जा सकता है, लेकिन, ऐसा नहीं है. क्योंकि, प्रतिपदा के दिन रक्षाबंधन मनाया जाना निषिद्ध किया गया है. शास्त्रों में यह स्पष्ट तौर पर उल्लेखित है कि जिस दिन पूर्णिमा का मन हो रक्षाबंधन उसी दिन मनाया जाना चाहिए, जोकि 30 अगस्त को है.

'पंचांगों में गणितीय मानों की भिन्नता के कारण भ्रम की स्थिति'

काशी हिंदू विश्वविद्यालय ज्योतिष विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर विनय कुमार पांडेय ने बताया कि उपाकर्म एवं रक्षाबंधन पर्व को लेकर पंचांगों में गणितीय मानों की भिन्नता के कारण 30 या 31 अगस्त को लेकर समाज में भ्रम एवं अविश्वास की स्थितियां उत्पन्न हो रही हैं, जबकि सनातन धर्म के अंतर्गत किसी भी व्रत, पर्व या उत्सव का निर्णय आकाशीय ग्रह पिंडों की गति स्थिति आदि से प्राप्त मानों कि ज्योतिषीय परिगणना करते हुए धर्म शास्त्र में निर्दिष्ट व्यवस्था के अंतर्गत किया जाता है. इस क्रम में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा में मनाया जाने वाला उपाकर्म एवं रक्षाबंधन सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है. इस वर्ष पूर्णिमा के मान 30 अगस्त को पूर्वान्ह से आरंभ होकर 31 अगस्त के दिन प्रातः 6 घटी से न्यून होने के कारण तिथि को लेकर समाज में भ्रम की स्थितियां उत्पन्न हो गई है.

इस संदर्भ में कुछ लोग धर्मशास्त्र से संबद्ध अपने तर्कों से 30 तो कुछ लोग 31 अगस्त को रक्षाबंधन एवं उपाकर्म मनाने का निर्णय दे रहे हैं. धर्मसिंधु एवं निर्णय सिंधु आदि ग्रंथों के रक्षा बन्धन एवं उपाकर्म निर्णय सम्बन्धी उद्धरणों का उल्लेख करते हुए बताया गया कि यदि पूर्णिमा का मान दो दिन प्राप्त हो रहा हो तथा प्रथम दिन सूर्योदय के एकादि घटी के बाद पूर्णिमा का आरंभ होकर द्वितीय दिन पूर्णिमा 6 घटी से कम प्राप्त हो रही हो तो पूर्व दिन भद्रा से रहित काल में रक्षाबंधन करना चाहिए, परंतु ।।इदं प्रतिपत् युतायां न कार्यम।। इस वचन के अनुसार, पूर्णिमा यदि प्रतिपदा से युक्त होकर 6 घटी से न्युन हो तो उसमें रक्षाबंधन नहीं करना चाहिए. इस वर्ष 31 तारीख को पूर्णिमा 6 घटी से कम प्राप्त हो रही है तथा 30 तारीख को 9 बजे तक भद्रा है अतः 30 तारीख को ही रात्रि में भद्रा के बाद रक्षाबंधन करना शास्त्र सम्मत होगा. क्योंकि, ऐसी स्थिति में रात्रिकाल में भी रक्षाबंधन का विधान है, जैसा कि कहा गया है.

।।तत्सत्त्वे तु रात्रावपि तदन्ते कुर्यादिति निर्णयामृते।।
।।रात्रौ भद्रावसाने तु रक्षाबन्धः प्रशस्यते।।

यह भी पढ़ें: डिप्टी सीएम ने कहा-कलाकारों का पूरा सहयोग कर रही योगी सरकार, गिनाए यह काम

वाराणसी: भाई और बहन के प्रेम का पर्व रक्षाबंधन इस बार कब मनाया जाएगा. यह प्रश्न इसलिए भी बड़ा है. क्योंकि, रक्षाबंधन को लेकर इस बार गजब का कंफ्यूजन है. कन्फ्यूजन इसलिए कि कोई 30 अगस्त को तो कोई 31 अगस्त को इस त्यौहार को मनाने की बात कर रहा है. लेकिन, शास्त्रों में क्या निर्णय हैं और रक्षाबंधन का पर्व कब और किस हिसाब से मनाया जाना उचित है? इस बारे में काशी के विद्वानों खासतौर पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय ज्योतिष विभाग के प्रोफेसर अपनी राय स्पष्ट तौर पर बता रहे हैं. ज्योतिष विभाग के प्रोफेसर सुभाष पांडेय और प्रो विनय कुमार पांडेय का कहना है कि रक्षाबंधन का त्यौहार इस वर्ष 30 अगस्त को रात्रि 9 बजे के बाद और 31 अगस्त की सुबह 7:45 तक मनाया जाना ही शास्त्र सम्मत है. इसके पीछे की वजह क्या है, यह भी जान लीजिए.

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सुभाष पांडेय का कहना है कि इस वर्ष रक्षाबंधन का पर्व 30 अगस्त 2023 को रात्रि 9 बजे के बाद मनाया जाना शास्त्र सम्मत इसलिए है. क्योंकि, 30 अगस्त को दिन में 10:12 बजे सुबह पूर्णिमा तिथि लग रही है. लेकिन, उसी वक्त भद्रा का भी आगमन हो रहा है. भद्रा सुबह 10:12 बजे पर लगने के बाद रात्रि 8:58 बजे तक रहेगी. क्योंकि, शास्त्रों में भद्रा काल में रक्षा बांधना निषेध है. इसलिए रात्रि 9 बजे के बाद रक्षा बांधना उचित माना जा रहा है. क्योंकि, पूर्णिमा दूसरे दिन सुबह 7:45 बजे तक मान्य है और उदया तिथि के मान के अनुसार दूसरे दिन सुबह 7:45 बजे तक ही रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाना धर्म शास्त्र के अनुसार उचित है.

'30 अगस्त को रात 9 बजे के बाद है मुहूर्त'

प्रोफेसर सुभाष पांडेय का कहना है कि धर्म और निर्णय सिंधु रक्षाबंधन के त्यौहार को 30 अगस्त की रात्रि 9 बजे के बाद मनाए जाने के लिए भी स्पष्ट रूप से कट रहे हैं. उनके मुताबिक, शास्त्रीय विवेचन के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया है कि बदला तिथि में किसी भी प्रकार का कोई कार्य सनातन धर्म में नहीं किया जाता, चाहे वह रक्षाबंधन का पर्व हो या होलिका दहन या कोई अन्य कार्य. भद्रा अपने आप में वह समय काल होता है, जिसमें कार्यों को निषिद्ध बताया गया है. इसलिए भद्रा काल में रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाना श्रेयस्कर नहीं है. क्योंकि, 30 अगस्त को रात्रि 8:58 पर भद्रा समाप्त हो रही है. इसलिए 9 बजे से रक्षाबंधन का पर्व बहनें और भाई मना सकते हैं.

'प्रतिपदा के दिन रक्षाबंधन मनाया जाना निषिद्ध'

प्रोफेसर सुभाष पांडेय का कहना है कि धर्म और निर्णय सिंधु के मुताबिक, स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि यदि भद्रा रहित और तीन मुहूर्त से अधिक पूर्णिमा के अपराह्न प्रदोष काल मिल रहा है तो ऐसे में रक्षाबंधन करना उपयुक्त होता है. क्योंकि, 30 अगस्त की रात्रि यह तीनों मुहूर्त से अधिक अलग-अलग काल में मिल रहे हैं. इसलिए 30 अगस्त को ही रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाएगा. हालांकि, कुछ लोग 31 अगस्त को भी पूरे दिन रक्षाबंधन मनाया जाने की बात कर रहे हैं लेकिन प्रोफेसर सुभाष पांडेय का कहना है कि नियम और निर्णय सिंधु के मुताबिक 31 अगस्त की सुबह तीन मुहूर्त कहीं से प्राप्त नहीं हो रहे इसलिए 30 अगस्त की रात्रि ही रक्षाबंधन मनाया जाना उपयुक्त है. उनका कहना है कि बहुत से लोग अपने स्वार्थ और अज्ञानता वश ऐसी बातें कर रहे हैं कि 31 तारीख को ही रक्षाबंधन का पर्व पूरा दिन मनाया जा सकता है, लेकिन, ऐसा नहीं है. क्योंकि, प्रतिपदा के दिन रक्षाबंधन मनाया जाना निषिद्ध किया गया है. शास्त्रों में यह स्पष्ट तौर पर उल्लेखित है कि जिस दिन पूर्णिमा का मन हो रक्षाबंधन उसी दिन मनाया जाना चाहिए, जोकि 30 अगस्त को है.

'पंचांगों में गणितीय मानों की भिन्नता के कारण भ्रम की स्थिति'

काशी हिंदू विश्वविद्यालय ज्योतिष विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर विनय कुमार पांडेय ने बताया कि उपाकर्म एवं रक्षाबंधन पर्व को लेकर पंचांगों में गणितीय मानों की भिन्नता के कारण 30 या 31 अगस्त को लेकर समाज में भ्रम एवं अविश्वास की स्थितियां उत्पन्न हो रही हैं, जबकि सनातन धर्म के अंतर्गत किसी भी व्रत, पर्व या उत्सव का निर्णय आकाशीय ग्रह पिंडों की गति स्थिति आदि से प्राप्त मानों कि ज्योतिषीय परिगणना करते हुए धर्म शास्त्र में निर्दिष्ट व्यवस्था के अंतर्गत किया जाता है. इस क्रम में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा में मनाया जाने वाला उपाकर्म एवं रक्षाबंधन सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है. इस वर्ष पूर्णिमा के मान 30 अगस्त को पूर्वान्ह से आरंभ होकर 31 अगस्त के दिन प्रातः 6 घटी से न्यून होने के कारण तिथि को लेकर समाज में भ्रम की स्थितियां उत्पन्न हो गई है.

इस संदर्भ में कुछ लोग धर्मशास्त्र से संबद्ध अपने तर्कों से 30 तो कुछ लोग 31 अगस्त को रक्षाबंधन एवं उपाकर्म मनाने का निर्णय दे रहे हैं. धर्मसिंधु एवं निर्णय सिंधु आदि ग्रंथों के रक्षा बन्धन एवं उपाकर्म निर्णय सम्बन्धी उद्धरणों का उल्लेख करते हुए बताया गया कि यदि पूर्णिमा का मान दो दिन प्राप्त हो रहा हो तथा प्रथम दिन सूर्योदय के एकादि घटी के बाद पूर्णिमा का आरंभ होकर द्वितीय दिन पूर्णिमा 6 घटी से कम प्राप्त हो रही हो तो पूर्व दिन भद्रा से रहित काल में रक्षाबंधन करना चाहिए, परंतु ।।इदं प्रतिपत् युतायां न कार्यम।। इस वचन के अनुसार, पूर्णिमा यदि प्रतिपदा से युक्त होकर 6 घटी से न्युन हो तो उसमें रक्षाबंधन नहीं करना चाहिए. इस वर्ष 31 तारीख को पूर्णिमा 6 घटी से कम प्राप्त हो रही है तथा 30 तारीख को 9 बजे तक भद्रा है अतः 30 तारीख को ही रात्रि में भद्रा के बाद रक्षाबंधन करना शास्त्र सम्मत होगा. क्योंकि, ऐसी स्थिति में रात्रिकाल में भी रक्षाबंधन का विधान है, जैसा कि कहा गया है.

।।तत्सत्त्वे तु रात्रावपि तदन्ते कुर्यादिति निर्णयामृते।।
।।रात्रौ भद्रावसाने तु रक्षाबन्धः प्रशस्यते।।

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