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काशी विद्यापीठ में आज भी संरक्षित है महात्मा गांधी का चरखा - Mahatma Gandhi Jayanti

काशी विद्यापीठ से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का गहरा नाता रहा है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की स्‍मृतियां आज भी काशी विद्यापीठ में संग्रहीत हैं. काशी विद्यापीठ की स्थापना गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर बाबू शिव प्रसाद गुप्ता और भगवान दास ने की थी. वहीं इसकी आधारशिला 10 फरवरी 1921 में महात्मा गांधी ने रखी थी.

महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ
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Published : Oct 2, 2020, 10:07 PM IST

Updated : Oct 6, 2020, 10:59 PM IST

वाराणसी: वाराणसी का काशी विद्यापीठ, जिसे 1995 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को समर्पित करके काशी विद्यापीठ से उसका नाम परिवर्तित करके 'महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ' रख दिया गया. काशी विद्यापीठ से बापू का बड़ा ही गहरा नाता है. आंदोलन के समय बापू करीब 11 बार काशी आए थे, जिसमें से सात बार वह काशी विद्यापीठ के बापू कक्ष में ठहरे थे. यहां पर आज भी बापू का चरखा सुरक्षित रखा गया है. यही नहीं विद्यापीठ के बापू कक्ष को बापू दीर्घा के नाम पर विकसित किया जा रहा है. यहां बापू की स्मृतियों को सहेज कर रखा गया है.

देखें वीडियो....

इस बाबत गांधी अध्ययन पीठ के प्रोफेसर बीडी पांडे ने बताया कि बापू और विद्यापीठ का बहुत ही गहरा नाता है. काशी विद्यापीठ की स्थापना गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर बाबू शिव प्रसाद गुप्ता और भगवान दास ने की थी. वहीं इसकी आधारशिला 10 फरवरी 1921 में महात्मा गांधी ने रखी थी. यह पहला स्वदेशी विश्वविद्यालय था, जिसने प्रदेशों में भी शिक्षा की अलख जगाई. गांधी जी के 125वें जन्मदिवस पर काशी विद्यापीठ को 'महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ' के रूप में बापू को समर्पित कर दिया गया.

ब्रिटिश भारत में यह पहला स्वदेशी विश्वविद्यालय था
प्रोफेसर बीडी पांडे ने बताया कि ब्रिटिश भारत में यह पहला स्वदेशी विश्वविद्यालय था. बाद के दिनों में कुछ और प्रदेशों में भी शिक्षा की अलख जगाने के लिए इस प्रकार के विद्यापीठ की स्थापना हुई. गत वर्ष गांधी जी की 150वीं जयंती पर दिल्ली परेड में विद्यापीठ की झांकी भी निकाली गई. उन्होंने बताया कि 150वीं जयंती पर मानव संकाय में बापू कक्ष आम लोगों के लिए खोल दिया गया है. 30 जनवरी को यहां पर चित्र प्रदर्शनी लगाई जाती है. यहां पर सर्व धर्म प्रार्थना का भी आयोजन किया जाता है, जिससे कि सभी लोग बापू के आदर्शों को याद करते रहें.

11 बार काशी यात्रा में बापू ने 7 बार विद्यापीठ में किए हैं प्रवास
प्रोफेसर बीडी पांडे ने बताया कि 11 बार बापू काशी आए थे, जिसमें से सात बार उन्होंने विद्यापीठ के बापू कक्ष में ही प्रवास किया था. उन्होंने बताया कि 1927 में बापू आठवीं बार यहां आए थे. इस दौरान उन्होंने काशी विद्यापीठ के दीक्षांत समारोह में छात्रों को चरखा चलाने और खादी पहनने की सीख दी थी. 1934 में नौवीं यात्रा के दौरान बापू ने अश्पृश्यता के खिलाफ अलख जगाई थी. 27 जुलाई से 2 अगस्त तक वह काशी में रहे. इस यात्रा में बापू ने काशी विद्यापीठ के बापू कक्ष सात दिन प्रवास किया.

बापू की यादों में 'गांधी अध्ययन पीठ' की हुई स्थापना
प्रोफेसर बीडी पांडे ने बताया कि बापू के आदर्शों को आगे बढ़ाने के लिए हम लोगों ने परिसर में गांधी अध्ययन पीठ की स्थापना की, जहां पर बापू के विचारों को पढ़ाया जाता है और यहां शोधार्थी शोध करते हैं. उन्होंने बताया कि इसमें एक पुस्तकालय भी है, जिसमें बापू से जुड़ी पुस्तकों को सहेज कर रखा गया है. यहां बापू से जुड़ी जो पुस्तकें हैं वो शायद दूसरी जगह कहीं और देखने को भी न मिलें. उन्होंने बताया कि यहां विश्व की धरोहर माने जाने वाले भारत माता मंदिर का भी बापू ने ही उद्घाटन किया था.

बापू कक्ष में आज भी मौजूद है चरखा और पत्र
इस बाबत प्रोफेसर नलिनी श्याम कामिल ने बताया कि छठवीं यात्रा में बापू 17 अक्टूबर 1925 में विद्यापीठ आए थे. इस दौरान बापू ने कहा था कि रचनात्मक कार्यों में चरखा का स्थान प्रथम है. चरखा भारत के स्वावलंबन का प्रतीक है. अपनी सातवीं यात्रा के दौरान 1927 में बीएचयू में छात्रों को खादी खरीदने और पहनने का उन्होंने मंत्र भी दिया था. प्रोफेसर नलिनी श्याम कामिल ने कहा कि बापू कक्ष में आज भी बापू से जुड़ी यादों को हम लोगों ने सहेज कर रखा है. यहां पर बापू के लिखे हुए पत्र, उनका चरखा और उनसे जुड़ी कुछ तस्वीरों को हमने सुरक्षित रखा है. यहीं पर वह घंटों ध्यान लगाते थे. अब विश्वविद्यालय प्रशासन इसे बापू दीर्घा के रूप में और बेहतर तरीके से विकसित कर रहा है.

वाराणसी: वाराणसी का काशी विद्यापीठ, जिसे 1995 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को समर्पित करके काशी विद्यापीठ से उसका नाम परिवर्तित करके 'महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ' रख दिया गया. काशी विद्यापीठ से बापू का बड़ा ही गहरा नाता है. आंदोलन के समय बापू करीब 11 बार काशी आए थे, जिसमें से सात बार वह काशी विद्यापीठ के बापू कक्ष में ठहरे थे. यहां पर आज भी बापू का चरखा सुरक्षित रखा गया है. यही नहीं विद्यापीठ के बापू कक्ष को बापू दीर्घा के नाम पर विकसित किया जा रहा है. यहां बापू की स्मृतियों को सहेज कर रखा गया है.

देखें वीडियो....

इस बाबत गांधी अध्ययन पीठ के प्रोफेसर बीडी पांडे ने बताया कि बापू और विद्यापीठ का बहुत ही गहरा नाता है. काशी विद्यापीठ की स्थापना गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर बाबू शिव प्रसाद गुप्ता और भगवान दास ने की थी. वहीं इसकी आधारशिला 10 फरवरी 1921 में महात्मा गांधी ने रखी थी. यह पहला स्वदेशी विश्वविद्यालय था, जिसने प्रदेशों में भी शिक्षा की अलख जगाई. गांधी जी के 125वें जन्मदिवस पर काशी विद्यापीठ को 'महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ' के रूप में बापू को समर्पित कर दिया गया.

ब्रिटिश भारत में यह पहला स्वदेशी विश्वविद्यालय था
प्रोफेसर बीडी पांडे ने बताया कि ब्रिटिश भारत में यह पहला स्वदेशी विश्वविद्यालय था. बाद के दिनों में कुछ और प्रदेशों में भी शिक्षा की अलख जगाने के लिए इस प्रकार के विद्यापीठ की स्थापना हुई. गत वर्ष गांधी जी की 150वीं जयंती पर दिल्ली परेड में विद्यापीठ की झांकी भी निकाली गई. उन्होंने बताया कि 150वीं जयंती पर मानव संकाय में बापू कक्ष आम लोगों के लिए खोल दिया गया है. 30 जनवरी को यहां पर चित्र प्रदर्शनी लगाई जाती है. यहां पर सर्व धर्म प्रार्थना का भी आयोजन किया जाता है, जिससे कि सभी लोग बापू के आदर्शों को याद करते रहें.

11 बार काशी यात्रा में बापू ने 7 बार विद्यापीठ में किए हैं प्रवास
प्रोफेसर बीडी पांडे ने बताया कि 11 बार बापू काशी आए थे, जिसमें से सात बार उन्होंने विद्यापीठ के बापू कक्ष में ही प्रवास किया था. उन्होंने बताया कि 1927 में बापू आठवीं बार यहां आए थे. इस दौरान उन्होंने काशी विद्यापीठ के दीक्षांत समारोह में छात्रों को चरखा चलाने और खादी पहनने की सीख दी थी. 1934 में नौवीं यात्रा के दौरान बापू ने अश्पृश्यता के खिलाफ अलख जगाई थी. 27 जुलाई से 2 अगस्त तक वह काशी में रहे. इस यात्रा में बापू ने काशी विद्यापीठ के बापू कक्ष सात दिन प्रवास किया.

बापू की यादों में 'गांधी अध्ययन पीठ' की हुई स्थापना
प्रोफेसर बीडी पांडे ने बताया कि बापू के आदर्शों को आगे बढ़ाने के लिए हम लोगों ने परिसर में गांधी अध्ययन पीठ की स्थापना की, जहां पर बापू के विचारों को पढ़ाया जाता है और यहां शोधार्थी शोध करते हैं. उन्होंने बताया कि इसमें एक पुस्तकालय भी है, जिसमें बापू से जुड़ी पुस्तकों को सहेज कर रखा गया है. यहां बापू से जुड़ी जो पुस्तकें हैं वो शायद दूसरी जगह कहीं और देखने को भी न मिलें. उन्होंने बताया कि यहां विश्व की धरोहर माने जाने वाले भारत माता मंदिर का भी बापू ने ही उद्घाटन किया था.

बापू कक्ष में आज भी मौजूद है चरखा और पत्र
इस बाबत प्रोफेसर नलिनी श्याम कामिल ने बताया कि छठवीं यात्रा में बापू 17 अक्टूबर 1925 में विद्यापीठ आए थे. इस दौरान बापू ने कहा था कि रचनात्मक कार्यों में चरखा का स्थान प्रथम है. चरखा भारत के स्वावलंबन का प्रतीक है. अपनी सातवीं यात्रा के दौरान 1927 में बीएचयू में छात्रों को खादी खरीदने और पहनने का उन्होंने मंत्र भी दिया था. प्रोफेसर नलिनी श्याम कामिल ने कहा कि बापू कक्ष में आज भी बापू से जुड़ी यादों को हम लोगों ने सहेज कर रखा है. यहां पर बापू के लिखे हुए पत्र, उनका चरखा और उनसे जुड़ी कुछ तस्वीरों को हमने सुरक्षित रखा है. यहीं पर वह घंटों ध्यान लगाते थे. अब विश्वविद्यालय प्रशासन इसे बापू दीर्घा के रूप में और बेहतर तरीके से विकसित कर रहा है.

Last Updated : Oct 6, 2020, 10:59 PM IST
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