वाराणसी: काशी हिंदू विश्वविद्यालय में सत्र 2022 के लिए प्रवेश फॉर्म आ चुके हैं. प्रवेश फार्म की फीस में वृद्धि हुई है. इसे लेकर सोमवार को छात्रों ने आक्रोश जताते हुए सेंटर ऑफिस के बाहर प्रदर्शन किया. छात्रों ने कुलपति के नाम का ज्ञापन रजिस्ट्रार को सौंपा. छात्रों की मांग है कि जो फीस प्रवेश फॉर्म पर बढ़ाई गई है, उसे वापस लिया जाए.
छात्रों ने लगाया ये आरोप
पीएचडी प्रवेश परीक्षा में 33 प्रतिशत, बीएचयू से संबंधित प्राथमिक के आवेदन शुल्क 78 प्रतिशत और इंटरमीडिएट में नामांकन के आवेदन शुल्क को 50 प्रतिशत बढ़ा दिया गया है. विश्वविद्यालय के यूजी और पीजी के आवेदन शुल्क भी 60 प्रतिशत और संबंधित स्कूलों के शिक्षण शुल्क में तीन-चार गुने की बढ़ोतरी हुई है, जो समयानुसार वसूला जाएगा. छात्रों का आरोप है कि यह बढ़ोतरी इस आपदा में की जा रही है, जब गांव-देहात सहित तमाम शहरों में रहने वाले बच्चों के अभिभावक बेरोजगारी के शिकार हो गए हैं. उनका धंधा कोविड-19 महामारी के कारण खत्म हो गया है. लाखों मजदूरों को उनकी कंपनियां बंद होने की वजह से रोटी के लाले पड़े हैं. किसानों की फसलों का मूल्य सालों-साल बकाया पड़ा हुआ है. किसान अपनी खेती-बाड़ी को बचाने की लड़ाई को लेकर तीन महीनों से दिल्ली में संघर्षरत हैं.
'महंगाई की मार से कोई बचा नहीं'
बीएचयू के शोध छात्र भुवाल यादव ने बताया कि विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों और उनके अभिभावकों पर रहम करते हुए शुल्क-वृद्धि के फैसले को वापस लें, क्योंकि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का निर्माण यही सोचकर हुआ था कि पढ़ने वालों को कम से कम खर्च में उचित शिक्षा एवं स्वास्थ्य की सुविधाएं मिलें. भुवाल यादव ने कहा कि लोगों द्वारा बदल-बदलकर जनप्रतिनिधियों के चुनाव के पीछे का मंतव्य भी यही रहता कि उन्हें और उनके पारिवारिक सदस्यों को शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा कम से कम खर्च में मिले. कुलपति के फैसले किसी भी मायने में सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का अंग प्रतीत नहीं हो रहे हैं. भुवाल यादव ने कहा यदि विवि प्रशासन अपने फैसले पर अडिग रहा, तो हम सभी आन्दोलन के लिए बाध्य होंगे. उस आन्दोलन की पूरी जिम्मेदारी बीएचयू प्रशासन और सरकार की होगी.
सत्र 2013-14 में भी हुई थी शुल्क वृद्धि
ऐसी ही शुल्क वृद्धि सत्र 2013-14 में हुई थी, जिसका विरोध सभी छात्रों ने किया था. उस दौरान 3-4 दिनों तक विश्वविद्यालय के सभी गेट बंद कर दिए गए थे. छात्रों के जोश और जुनून भरे आन्दोलन के सामने विश्वविद्यालय को झुकना पड़ा था. विश्वविद्यालय प्रशासन ने शुल्क-वृद्धि के फैसले को वापस ले लिया था.