वाराणसी: गंगा निर्मल अविरल बहे इसे लेकर कई सालों से प्रयास चल रहे हैं. सरकार बदलती रही लेकिन गंगा के हालात सुधरने का नाम नहीं ले रहे थे. लेकिन कोविड-19 की दस्तक के साथ सरकार की तरफ से किए गए लॉकडाउन ने एक तरफ जहां लोगों के स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने का काम किया, वहीं गंगा की सेहत में भी सुधार ला दिया. वैज्ञानिक शोध के मुताबिक महज लॉकडाउन के 20 दिनों के अंदर गंगा 25 से 30% निर्मल हो गई. इसकी बड़ी वजह गंगा में गिरने वाले कर कारखानों के वेस्टेज का रुकना, दाह संस्कार के लिए आने वाले शवों की राख और अधजले मांस का गंगा में सीधे ना आना, बंद हुए स्लॉटर हाउस से जानवरों के अवशेष, खून का गंगा में ना गिराया जाना आदि रहा.
अब जब लॉकडाउन खोलने की प्रक्रिया धीरे-धीरे शुरू हो गई है तो वैज्ञानिक भी गंगा की निर्मलता फिर से बनाए रखने के लिए प्रयासरत हैं. इस क्रम में गंगा बेसिन अथॉरिटी के पूर्व सदस्य और बीएचयू स्थित महामना मदन मोहन मालवीय गंगा शोध केंद्र के चेयरमैन प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी ने लॉकडाउन के दौरान साफ हुई गंगा को आगे भी निर्मल और स्वच्छ रखने के लिए इसी तर्ज पर गंगा स्वच्छता के लिए नीति बनाए जाने के बाबत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खत लिखा है. उन्होंने शोध का हवाला देते हुए लॉकडाउन में हुए प्रयासों के बाद गंगा की स्थिति को फिर से अपने पुराने रूप में लाने के लिए इसी नीति पर कार्य करने की गुजारिश की है.
बीएचयू के प्रोफेसर ने पीएम को लिखा पत्र
दरअसल 1972 में बीएचयू के प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी ने पहली बार गंगा की निर्मलता को लेकर शोध किया था. जिसकी रिपोर्ट आने के बाद संसद तक में हंगामा मच गया था. उनका कहना है कि उनके द्वारा किए गए शोध के बाद यह स्पष्ट हुआ था कि गंगा मैली हो रही है. जिसके बाद लगातार गंगा की स्थिति बिगड़ती गई, तब से लेकर अब तक उनके द्वारा लगातार गंगा के पानी की निगरानी की जा रही है, क्योंकि कोविड-19 की वजह से हुए लॉकडाउन के कारण जब उन्होंने गंगा की शुद्धता को लगातार नापना शुरू किया तो पता चला कि 15 से 20 दिनों के अंदर ही गंगा के पानी में काफी बदलाव आया. गंगा के पानी के लगातार सैंपल लेने से पता चला कि गंगा में ऑक्सीजन की मात्रा तो बढ़ी ही साथ ही गंगा में पानी का स्तर भी बढ़ गया. इसके कारण गंगा में रहने वाले जलीय जीवों की जिंदगी आसान हुई और गंगा का पानी फिर से अमृत बनने लगा. यही वजह है कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेटर लिखकर लॉकडाउन के लिए बनाई गई गंगा नीति की तर्ज पर आगे भी रणनीति बनाने के लिए कहा है.
प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी का कहना है कि वर्तमान परिवेश में गंगा के हालात कुछ कारणों से खराब हुए. ये कारण हैं-
- गंगा में कारखानों का अपशिष्ट गिराया जाना.
- अधजले मांस को गंगा में बहाया जाना.
- दाह संस्कार के लिए आने वाले शवों से निकलने वाली लगभग कई टन राख का गंगा में जाना
- बीडी त्रिपाठी का शोध है कि गंगा किनारे हर साल 33000 से ज्यादा शवों का दाह संस्कार होता है.
- दाह संस्कार से हर साल लाखों टन राख सीधे गंगा में जाती है.
- हिंदू मान्यता में शव को पूरा जलाया नहीं जाता बल्कि उसका कुछ अधजला मांस सीधे गंगा में बहा दिया जाता है, जो गंगा प्रदूषण की वजह है.
- होटल रेस्टोरेंट के जरिए, नालों के जरिये गंगा में गंदगी, मल आती है.
- जानवरों के स्लॉटर हाउस गंगा को काफी गंदा कर रहे हैं.
प्रो. त्रिपाठी का कहना है कि उन्होंने प्रधानमंत्री को खत लिखकर यह भी अपील की है कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद कल कारखाने, होटल, रेस्टोरेंट, स्लॉटर हाउस के मालिकों से यह शपथ पत्र लिया जाए कि वह गंगा को प्रदूषित नहीं करेंगे और यदि करेंगे तो उनके खिलाफ कार्रवाई होगी. यदि कुछ प्रयास किए जाएं तो गंगा एक बार फिर से अपने उसी रूप में आ जाएगी, जैसी लॉकडाउन में दिखाई दे रही है.
क्या कहते हैं आंकड़े - प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी के मुताबिक वाराणसी शहर में रोजाना 300 एमएलडी सीवेज निकलता था, जिसमें से 25 एमएलडी इंडस्ट्रियल वेस्टेज व 275 एमएलडी डोमेस्टिक वेस्टेज होता था.
- कुल 400 एमएलडी क्षमता के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट वाराणसी में काम कर रहे हैं.
- शोध के मुताबिक लॉकडाउन के कारण सिर्फ 28 दिनों में गंगाजल के प्रदूषण में 30 फीसदी की कमी आई है.
- 1970 के बाद 2020 में गंगा जल की शुद्धता सबसे बेहतर है.
- जांच सैंपल पर यदि गौर करें तो लिए गए सैंपल में गंगा में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा 9.5 मिलीग्राम और बीओडी की मात्रा 1.2 मिलीग्राम मिली है, जबकि मार्च के महीने में डिजॉल्व ऑक्सीजन 8.2 और बीओडी 2.8 मिलीग्राम था.
- मानक के अनुसार डिजॉल्व ऑक्सीजन जिस स्थान पर 5 मिलीग्राम से ज्यादा होता है वहां का पानी शुद्ध होता है और बीओडी के 3 मिलीग्राम से अधिक होना पानी का अशुद्ध होने का परिचायक है.