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हिंदी के विकास के लिए काम कर रहा बीएचयू का यह विभाग

उत्तर प्रदेश के वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय का हिंदी विभाग हमेशा से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर अग्रणी रहा है. काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक पं. मदन मोहन मालवीय भी हिंदी को बढ़ावा देने के लिए हमेशा कार्यरत रहे.

हिंदी के विकास के लिए काम कर रहा है बीएचयू .
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Published : Sep 14, 2019, 9:45 PM IST

वाराणसी: काशी हिंदू विश्वविद्यालय का हिंदी के विकास में बहुत योगदान रहा है. ऐसे में हम बात करें तो बीएचयू के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय हिंदी भाषा विकास के लिए बहुत कार्य किया. बीएचयू की स्थापना 1916 में मालवीय जी ने की. इसका उद्देश्य था कि हिंदी के साथ-साथ हिंदुस्तान की लड़ाई और हिंदी भाषा को बढ़ावा दिया जाए.

जानकारी देते प्रोफेसर अवधेश प्रधान

पंडित मदन मोहन मालवीय ने की हिंदी नवजागरण की शुरुआत

मालवीय जी का मानना था कि युवा पीढ़ी लेखन के कार्य में रुचि रखे. उन्होंने अपने समय में एक शिक्षक वकील संपादक और समाज सुधारक के साथ स्वतंत्रा सेनानी की भूमिका में रहे. बहुत सी रचनाएं की. इसमें अभ्युदय लीडर, हिंदुस्तान टाइम्स, मर्यादा और सनातन धर्म संग्रह ऐसी पत्रिकाओं को लिखकर उन्होंने हिंदी नवजागरण की शुरुआत की.

हिंदी भाषा के विद्वानों का रहा यहां से नाता

हिंदी भाषा के उत्थान के लिए काम करने वाले आचार्य रामचंद्र शुक्ल, बाबू श्याम सुंदर दास, आचार्य नरेंद्र देव, हजारी प्रसाद द्विवेदी ऐसे विद्वान काशी में रहे और काशी हिंदू विश्वविद्यालय से इनका नाता रहा. आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने तो यहां पर हिंदी विभाग में शिक्षक के तौर पर भी काम किया.

ये भी पढ़ें:- अलीगढ़: दो प्रेमियों को ग्रामीणों ने बांधा शादी के बंधन में, वीडियो हुआ वायरल

मालवीय जी हिंदी सागर के संपादन से जुड़े हुए थे. हिंदी की प्रकृति, हिंदी का स्वभाव, हिंदी का शब्द भंडार इस सब कुछ पर इनकी बहुत जबरदस्त पकड़ थी और उन्होंने हिंदी साहित्य के इतिहास की आवश्यकता का अनुभव किया. क्योंकि उच्च शिक्षा में एक व्यवस्थित हिंदी साहित्य का इतिहास लिखित रूप में उससे पहले उपलब्ध नहीं था.
-प्रोफेसर अवधेश प्रधान, काशी हिंदू विश्वविद्यालय

वाराणसी: काशी हिंदू विश्वविद्यालय का हिंदी के विकास में बहुत योगदान रहा है. ऐसे में हम बात करें तो बीएचयू के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय हिंदी भाषा विकास के लिए बहुत कार्य किया. बीएचयू की स्थापना 1916 में मालवीय जी ने की. इसका उद्देश्य था कि हिंदी के साथ-साथ हिंदुस्तान की लड़ाई और हिंदी भाषा को बढ़ावा दिया जाए.

जानकारी देते प्रोफेसर अवधेश प्रधान

पंडित मदन मोहन मालवीय ने की हिंदी नवजागरण की शुरुआत

मालवीय जी का मानना था कि युवा पीढ़ी लेखन के कार्य में रुचि रखे. उन्होंने अपने समय में एक शिक्षक वकील संपादक और समाज सुधारक के साथ स्वतंत्रा सेनानी की भूमिका में रहे. बहुत सी रचनाएं की. इसमें अभ्युदय लीडर, हिंदुस्तान टाइम्स, मर्यादा और सनातन धर्म संग्रह ऐसी पत्रिकाओं को लिखकर उन्होंने हिंदी नवजागरण की शुरुआत की.

हिंदी भाषा के विद्वानों का रहा यहां से नाता

हिंदी भाषा के उत्थान के लिए काम करने वाले आचार्य रामचंद्र शुक्ल, बाबू श्याम सुंदर दास, आचार्य नरेंद्र देव, हजारी प्रसाद द्विवेदी ऐसे विद्वान काशी में रहे और काशी हिंदू विश्वविद्यालय से इनका नाता रहा. आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने तो यहां पर हिंदी विभाग में शिक्षक के तौर पर भी काम किया.

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मालवीय जी हिंदी सागर के संपादन से जुड़े हुए थे. हिंदी की प्रकृति, हिंदी का स्वभाव, हिंदी का शब्द भंडार इस सब कुछ पर इनकी बहुत जबरदस्त पकड़ थी और उन्होंने हिंदी साहित्य के इतिहास की आवश्यकता का अनुभव किया. क्योंकि उच्च शिक्षा में एक व्यवस्थित हिंदी साहित्य का इतिहास लिखित रूप में उससे पहले उपलब्ध नहीं था.
-प्रोफेसर अवधेश प्रधान, काशी हिंदू विश्वविद्यालय

Intro: वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय हिंदी के विकास में बहुत भा योगदान रहा ऐसे में हम बात करें तो बीएचयू के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय। हिंदी भाषा विकास के लिए बहुत कार्य किया। बीएचयू की स्थापना 1916 में मालवीय जी ने किया इसका उद्देश्य भी था कि हिंदी के साथ साथ हिंदुस्तान की लड़ाई और हिंदी भाषा को बढ़ावा दिया जाए क्योंकि उस समय जितने भी विश्वविद्यालय थे उसमें अंग्रेजी की पढ़ाई और बंगाला पढ़ाई जाती थी।ऐसे में कोलकाता यूनिवर्सिटी, और दूसरी तरफ अलीगढ़ यूनिवर्सिटी। मालवीय जी का हिंदी के प्रति कितना बड़ा योगदान थे तो विश्वविद्यालय की स्थापना से ही स्पष्ट हो जाता है।


Body:भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय और काशी हिंदू विश्वविद्यालय हिंदी भाषा के विकास के लिए अनवरत कार्य करें ऐसे में बात करें तो मालवीय जी युवा पीढ़ी सही लेखन के कार्य में रुचि रखते हैं उन्होंने अपने समय में एक शिक्षक वकील संपादक और समाज सुधारक के साथ स्वतंत्रा सेनानी भी नहीं ऐसे में उन्होंने बहुत सी रचनाएं की जिसमें अभ्युदय लीडर हिंदुस्तान टाइम्स मर्यादा और सनातन धर्म संग्रह ऐसी पत्रिकाओं को लिखकर उन्होंने हिंदी नवजागरण की शुरुआत की।


Conclusion:हिंदी भाषा के उत्थान के लिए काम करने वाले आचार्य रामचंद्र शुक्ल बाबू श्याम सुंदर दास आचार्य नरेंद्र देव हजारी प्रसाद द्विवेदी ऐसे विद्वान काशी में रहे और काशी हिंदू विश्वविद्यालय से इनका नतारा आचार्य रामचंद्र शुक्ल तो यहां पर हिंदी विभाग में शिक्षक के तौर पर भी काम किया।

प्रोफेसर अवधेश प्रधान ने बताया काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना 1916 कि वसंत पंचमी को हुआ और उसके प्राण प्रतिष्ठा मालवीय जी स्वयं हिंदी नवजागरण का अभियान उसे बहुत गहरे प्रभावित हैं क्योंकि भारतेंदु हरिश्चंद्र के पत्र में वे समस्या पूर्ति के छंद रक्षा करते थे उस समय की दूसरी विभूति बालकृष्ण भट्ट जो हिंदी प्रदीप के संपादक थे वह भी प्रयाग में थे मालवीय जी के और उनके बहुत निकट संबंधित हैं मालवीय जी 19वीं शताब्दी में जो हिंदी नवजागरण का दौर है हिंदी पत्रकारिता है हिंदी को आगे बढ़ाने का आंदोलन है उससे बहुत गहराई से जुड़े हुए थे 18 86 में कांग्रेस के अधिवेशन में रामप्रकाश जिनसे से जो उनकी मुलाकात हुई। उनके पत्र हिंदुस्तान का मालवीय जी ने संपादन किया। स्तर हम कह सकते हैं कि मालवीय जी युवा काल से ही हिंदी भाषा और हिंदी पत्रकारिता के लिए समर्पित रहें।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के समय मालवीय जी की बहुत इच्छा थी या गहरी इच्छा थी यहां की उच्च शिक्षा भी हिंदी में हो लेकिन तत्काल ब्रिटिश गवर्नमेंट के राज्य होने के कारण या नहीं हो सका। मालवीय जी को इस बात का बहुत ही टिस आजीव रहा है। इसके बावजूद भी हिंदी के अनुकूल वातावरण बनाने के लिए इस विश्वविद्यालय में जो भी हो चुका मालवीय जी ने वह सब संभव किया। मालवीय जी ने यहां पर हिंदी विभाग की स्थापना की वह भारत के सबसे पुराने हिंदी विभागों में से एक हैं। कोलकाता के हिंदी विभाग में इसी तरह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग और उसके साथ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग ने हिंदी भाषा में बहुत बड़ा योगदान दिया।


प्रोफ़ेसर प्रधान ने बताया इस तरह हिंदी विभाग ने विश्वविद्यालय में अनुसंधान के लिए जो पहली जोत हिंदी कि वह जलाया गया। विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग का सबसे बड़ा योगदान दिया है कि उच्च शिक्षा के लिए एक व्यवस्थित पाठ्यक्रम से छात्रों को शिक्षा दी जाती है। लाला भगवान के पहले पहले अध्यापक हुए। आचार्य रामचंद्र शुक्ल जो यहां से जुड़ गए उनकी विशेषता यह थी वही हिंदी शब्द सागर के कार्य करके आए थे तो आप देखेंगे कि नागरी प्रचारिणी सभा इस हिंदी विभाग का गहरा नाता रहा यहां पर हिंदी का पहला शब्दकोश बनाया गया।


प्रोफेसर अवधेश ने बताया कि मालवीय जी हिंदी सागर के संपादन से जुड़े हुए थे तो हिंदी की प्रकृति हिंदी का स्वभाव हिंदी का शब्द भंडार इस सब कुछ पर इनकी बहुत जबरदस्त पकड़ थी और उन्होंने हिंदी साहित्य के इतिहास की आवश्यकता का अनुभव किया क्योंकि उच्च शिक्षा में एक व्यवस्थित हिंदी साहित्य का इतिहास लिखित रूप में उसे पहले उपलब्ध नहीं था। ऐसे में वर्तमान समय में बात करें तो हिंदी भाषी के साथ ही अन्य भाषाओं के जानकारों के लिए यहां पर हिंदी डिप्लोमा अलग से क्लास चलाई जा रही है तो हम यह बात कह सकते हैं कि हिंदी के अनुरोध विकास के लिए काशी हिंदू विश्वविद्यालय का हिंदी विभाग मालवीय जी के सपनों को साकार करने का काम कर रहा है।

बाईट:-- प्रोफेसर अवधेश प्रधान, काशी हिंदू विश्वविद्यालय


नोट संबंधित खबर की एडिटिंग गोपाल सर ने बोला है ऑफिस होगी इसलिए मैंने वॉइसओवर नहीं किया है

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