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BHU ने खोजा गंभीर संंक्रमण का इलाज, बैक्टीरियोफेज थेरेपी कारगर - BHU

बीएचयू ने गंभीर संक्रमण से लड़ने का रास्ता तलाश लिया है. बैक्टीरियोफेज थेरेपी के जरिए इसका इलाज संभव हुआ है. चलिए जानते हैं इस शोध के बारे में.

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बीएचयू खोज गंभीर संक्रमण का इलाज.बैक्टीरियोफेज द्वारा करने में सीवेज (मलजल) मानव जीवन के लिए वरदान भी साबित हो सकता है
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Published : Aug 8, 2022, 9:37 PM IST

वाराणसी: काशी हिंदू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संस्थान काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, चिकित्सा विज्ञान संस्थान, माइक्रोबायोलॉजी विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रोफेसर गोपाल नाथ की प्रयोगशाला में बैक्टीरियोफेज थेरेपी के जरिए अहम शोध हुआ है. यह शोध बीते 17 वर्षों से चल रहा है.

उनके मुताबिक खरगोशों में हड्डी के संक्रमण को पूरी तरह से बैक्टीरियोफेज के माध्यम से इलाज किया जा सकता है. चूहों में सूडोमोनास एयरूजिनोजा , एसिनेटोबैक्टर, क्लेबसिएला निमोनिया के गंभीर संक्रमणों को ठीक किया गया है. साथ ही यह भी पाया गया है कि कम या अधिक खुराक दोनों के लिए खतरनाक होंगे

प्रोफेसर गोपाल नाथ ने बताया कि सेप्सिस और सेप्टीसीमिया (रक्त परिवहन का संक्रमण) एक गंभीर बीमारी है. इसकी गंभीरता और भी बढ़ जाती है, जब संक्रमण एंटीबायोटिक रेजिस्टेंट बैक्टीरिया के द्वारा हो जाए. कभी कभी ऐसा भी होता है कि कोई भी दवा इस गंभीर संक्रमण में काम नहीं करती. इसके इलाज में बैक्टीरियोफेज थेरेपी काफी कारगर मिली है. इस थेरेपी में सीवर या नदियों के पानी से बैक्टीरिया के विषाणु निकालकर और उनकी संख्या प्रयोगशाला में बढ़ाकर एवं परिष्कृत करके इन हठी बैक्टीरिया को मारकर मानव जीवन को बचाया जा सकता है. हालांकि अभी इसकी खुराक समेत कई सूचनाएं सीमित हैं.

प्रोफेसर गोपालनाथ ने बताया कि चूहों और खरगोशों पर शोध में यह पाया गया कि अधिक मात्रा में 105 PFU बैक्टीरियोफेज को देने से मानव जीवन बचाया जा सकता है. यहीं नहीं टाइफाइड के बुखार में भी यह काफी असरकारक दिखी है. कहा कि बैक्टीरियोफेज के प्रयोग की अनुमति दी जाए तो टाइफाइड को पूरी दुनिया से समाप्त किया जा सकता है.

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वाराणसी: काशी हिंदू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संस्थान काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, चिकित्सा विज्ञान संस्थान, माइक्रोबायोलॉजी विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रोफेसर गोपाल नाथ की प्रयोगशाला में बैक्टीरियोफेज थेरेपी के जरिए अहम शोध हुआ है. यह शोध बीते 17 वर्षों से चल रहा है.

उनके मुताबिक खरगोशों में हड्डी के संक्रमण को पूरी तरह से बैक्टीरियोफेज के माध्यम से इलाज किया जा सकता है. चूहों में सूडोमोनास एयरूजिनोजा , एसिनेटोबैक्टर, क्लेबसिएला निमोनिया के गंभीर संक्रमणों को ठीक किया गया है. साथ ही यह भी पाया गया है कि कम या अधिक खुराक दोनों के लिए खतरनाक होंगे

प्रोफेसर गोपाल नाथ ने बताया कि सेप्सिस और सेप्टीसीमिया (रक्त परिवहन का संक्रमण) एक गंभीर बीमारी है. इसकी गंभीरता और भी बढ़ जाती है, जब संक्रमण एंटीबायोटिक रेजिस्टेंट बैक्टीरिया के द्वारा हो जाए. कभी कभी ऐसा भी होता है कि कोई भी दवा इस गंभीर संक्रमण में काम नहीं करती. इसके इलाज में बैक्टीरियोफेज थेरेपी काफी कारगर मिली है. इस थेरेपी में सीवर या नदियों के पानी से बैक्टीरिया के विषाणु निकालकर और उनकी संख्या प्रयोगशाला में बढ़ाकर एवं परिष्कृत करके इन हठी बैक्टीरिया को मारकर मानव जीवन को बचाया जा सकता है. हालांकि अभी इसकी खुराक समेत कई सूचनाएं सीमित हैं.

प्रोफेसर गोपालनाथ ने बताया कि चूहों और खरगोशों पर शोध में यह पाया गया कि अधिक मात्रा में 105 PFU बैक्टीरियोफेज को देने से मानव जीवन बचाया जा सकता है. यहीं नहीं टाइफाइड के बुखार में भी यह काफी असरकारक दिखी है. कहा कि बैक्टीरियोफेज के प्रयोग की अनुमति दी जाए तो टाइफाइड को पूरी दुनिया से समाप्त किया जा सकता है.

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