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दुर्गा पूजा 2020: काशी के इस आश्रम में निभाई जाएगी 100 सालों पुरानी परंपरा

काशी के दुर्गा पूजा को आध्यात्मिक उत्सव का स्वरूप प्रदान करने का सर्वाधिक श्रेय भारत सेवाश्रम संघ को है. यह शहर का एकमात्र पूजनोत्सव है, जिसमें मां की प्रतिमा को पंडाल में लाने के लिए भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है. करीब 100 सालों से इस संघ में बंगिया रीति-रिवाज से दुर्गा पूजा मनाया जाता है.

स्पेशल रिपोर्ट.
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Published : Oct 8, 2020, 7:21 PM IST

वाराणसी: काशीनगरी में कलकल बहती मोक्षदायिनी गंगा लोगों को मोक्ष और मुक्ति दिलाने का काम करती है, वहीं बाबा भोलेनाथ काशी को अविनाशी बनाए रखने के लिए खुद यहां विराजमान है. शिव की नगरी हमेशा भोले की आराधना में लीन रहती है, लेकिन नवरात्रि में काशी का एक अलग ही रूप देखने को मिलता है.

बंगिया रीति-रिवाज से होती है दुर्गा पूजा.
भारत सेवाश्रम संघ में बंगिया रीति-रिवाज से होती है दुर्गा पूजा.

मिनी कोलकाता के नाम से मशहूर इस नगरी में 9 दिनों तक शक्ति की आराधना बड़ी ही भव्यता के साथ होती है. हालांकि इस बार कोरोना के चलते यह भव्यता नहीं दिखाई देगी, लेकिन कुछ परंपरागत समितियां बड़े ही सादे और श्रद्धा भावपूर्ण तरीके से दुर्गा पूजा का आयोजन करेंगी. इनमें से एक है काशी का भारत सेवाश्रम संघ. जहां पुरातन और परंपरागत तरीके से दुर्गा पूजा मनाई जाती है.

स्पेशल रिपोर्ट.

वाराणसी के सिगरा इलाके में भारत सेवाश्रम संघ का भव्य भवन स्थित है. लाल रंग में रंगे इस भवन को देखकर ही श्रद्धा और भक्ति का एहसास होगा. आश्रम के अंदर प्रवेश करते ही मंदिरों में बजने वाले घण्टे-घड़ियाल हर किसी को काशी में उपस्थित होने का एहसास करा देंगे. नवरात्रि में यह स्थान किसी दूसरे रंग में ही नजर आता है. इस आश्रम में षष्टी से नवमी तक मां दुर्गा की आराधना करने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं.

इस बार वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण ने त्योहारों का रंग फीका कर दिया है. सरकार भी त्योहारों पर उमड़ने वाली भीड़ को लेकर फूंक-फूंककर कदम रख रही है. वाराणसी प्रशासन ने भी पूजा पंडाल बनाने की अनुमति नहीं दी है, लेकिन भारत सेवाश्रम संघ में लगभग 100 सालों से दुर्गा पूजा करने की पुरानी परंपरा रही है. इसके लिए इस बार दुर्गा पूजा पहले की तरह भव्य तो नहीं होगा, लेकिन आयोजन संपन्न जरूर होगा.

1939 से काशी में भारत सेवा संघ ने शुरू की दुर्गा पूजा
भारत सेवाश्रम संघ के सेक्रेटरी स्वामी प्रणवानंद जी महाराज के मुताबिक, सन् 1939 में काशी के पश्चिम बंगाल की तर्ज पर भारत सेवाश्रम संघ में दुर्गा पूजा की भव्य शुरुआत हुई थी. हालांकि यहां दुर्गा पूजा पहले से ही शुरू हो चुकी थी, लेकिन इसकी भव्यता सन् 1939 में देखने को मिली. बंगिया समाज के लोगों ने अपने शहर का माहौल देने और काशी में शक्ति की आराधना के उद्देश्य से यह प्रयास लगभग 100 साल पहले शुरू किया था.

स्वामी प्रणवानंद ने बताया कि इस आश्रम में पश्चिम बंगाल समेत देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग नवरात्रि में आते हैं और चार दिवसीय भव्य आयोजन में शामिल होकर लोग माता की अराधना करते हैं. उन्होंने बताया कि इस बार कोविड-19 की वजह से यह आयोजन सीमित रहेगा. माता की प्रतिमा हर साल की अपेक्षा इस बार छोटी स्थापित होगी और बड़े ही सादगी के साथ आगमन और विसर्जन भी किया जाएगा.

पर्यटक डॉ. हेमंत मनीषी शुक्ला के अनुसार, काशी की दुर्गा पूजा और खासतौर पर भारत सेवाश्रम संघ की पूजा के बारे में बहुत सुना है. वे अपने परिवार के साथ काशी आए हैं. इस बार अपने परिवार के साथ वे इस आश्रम में होने वाली दुर्गा पूजा में शामिल होंगे. हालांकि इस बार सिर्फ परंपरागत पूजा होगी, भव्यता कम रहेगी, लेकिन काशी में रहकर माता दुर्गा का बंगाली परंपरा से पूजा करने का अवसर यहीं पर मिलेगा.

विदेश में भी मौजूद हैं भारत सेवाश्रम संघ की साखाएं

भारत सेवाश्रम संघ के सेक्रेटरी का कहना है कि भारत सेवाश्रम सिर्फ काशी में नहीं, बल्कि देश-विदेश में भी मौजूद है. भारत के अलग-अलग राज्यों में इस आश्रम की कुल 51 शाखाएं हैं, जबकि 12 शाखाएं साउथ अफ्रीका, लंदन, कोलंबिया समेत कई जगहों पर मौजूद है. काशी में स्थित इस आश्रम में भी लगभग 100 से ज्यादा कमरे हैं और 500 से ज्यादा लोगों के रहने की व्यवस्था की जा सकती है. इसके अलावा निःशुल्क अस्पताल, निःशुल्क लाइब्रेरी, खाने-पीने की बेहद कम दर पर उत्तम व्यवस्था सहित अन्य सुविधाएं आश्रम की तरफ से दी जाती हैं. शिव की नगरी में आने वाला हर शख्स बंगाली रीति रिवाज से शक्ति की आराधना को देखने के लिए यहां जरूर आता है.

वाराणसी: काशीनगरी में कलकल बहती मोक्षदायिनी गंगा लोगों को मोक्ष और मुक्ति दिलाने का काम करती है, वहीं बाबा भोलेनाथ काशी को अविनाशी बनाए रखने के लिए खुद यहां विराजमान है. शिव की नगरी हमेशा भोले की आराधना में लीन रहती है, लेकिन नवरात्रि में काशी का एक अलग ही रूप देखने को मिलता है.

बंगिया रीति-रिवाज से होती है दुर्गा पूजा.
भारत सेवाश्रम संघ में बंगिया रीति-रिवाज से होती है दुर्गा पूजा.

मिनी कोलकाता के नाम से मशहूर इस नगरी में 9 दिनों तक शक्ति की आराधना बड़ी ही भव्यता के साथ होती है. हालांकि इस बार कोरोना के चलते यह भव्यता नहीं दिखाई देगी, लेकिन कुछ परंपरागत समितियां बड़े ही सादे और श्रद्धा भावपूर्ण तरीके से दुर्गा पूजा का आयोजन करेंगी. इनमें से एक है काशी का भारत सेवाश्रम संघ. जहां पुरातन और परंपरागत तरीके से दुर्गा पूजा मनाई जाती है.

स्पेशल रिपोर्ट.

वाराणसी के सिगरा इलाके में भारत सेवाश्रम संघ का भव्य भवन स्थित है. लाल रंग में रंगे इस भवन को देखकर ही श्रद्धा और भक्ति का एहसास होगा. आश्रम के अंदर प्रवेश करते ही मंदिरों में बजने वाले घण्टे-घड़ियाल हर किसी को काशी में उपस्थित होने का एहसास करा देंगे. नवरात्रि में यह स्थान किसी दूसरे रंग में ही नजर आता है. इस आश्रम में षष्टी से नवमी तक मां दुर्गा की आराधना करने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं.

इस बार वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण ने त्योहारों का रंग फीका कर दिया है. सरकार भी त्योहारों पर उमड़ने वाली भीड़ को लेकर फूंक-फूंककर कदम रख रही है. वाराणसी प्रशासन ने भी पूजा पंडाल बनाने की अनुमति नहीं दी है, लेकिन भारत सेवाश्रम संघ में लगभग 100 सालों से दुर्गा पूजा करने की पुरानी परंपरा रही है. इसके लिए इस बार दुर्गा पूजा पहले की तरह भव्य तो नहीं होगा, लेकिन आयोजन संपन्न जरूर होगा.

1939 से काशी में भारत सेवा संघ ने शुरू की दुर्गा पूजा
भारत सेवाश्रम संघ के सेक्रेटरी स्वामी प्रणवानंद जी महाराज के मुताबिक, सन् 1939 में काशी के पश्चिम बंगाल की तर्ज पर भारत सेवाश्रम संघ में दुर्गा पूजा की भव्य शुरुआत हुई थी. हालांकि यहां दुर्गा पूजा पहले से ही शुरू हो चुकी थी, लेकिन इसकी भव्यता सन् 1939 में देखने को मिली. बंगिया समाज के लोगों ने अपने शहर का माहौल देने और काशी में शक्ति की आराधना के उद्देश्य से यह प्रयास लगभग 100 साल पहले शुरू किया था.

स्वामी प्रणवानंद ने बताया कि इस आश्रम में पश्चिम बंगाल समेत देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग नवरात्रि में आते हैं और चार दिवसीय भव्य आयोजन में शामिल होकर लोग माता की अराधना करते हैं. उन्होंने बताया कि इस बार कोविड-19 की वजह से यह आयोजन सीमित रहेगा. माता की प्रतिमा हर साल की अपेक्षा इस बार छोटी स्थापित होगी और बड़े ही सादगी के साथ आगमन और विसर्जन भी किया जाएगा.

पर्यटक डॉ. हेमंत मनीषी शुक्ला के अनुसार, काशी की दुर्गा पूजा और खासतौर पर भारत सेवाश्रम संघ की पूजा के बारे में बहुत सुना है. वे अपने परिवार के साथ काशी आए हैं. इस बार अपने परिवार के साथ वे इस आश्रम में होने वाली दुर्गा पूजा में शामिल होंगे. हालांकि इस बार सिर्फ परंपरागत पूजा होगी, भव्यता कम रहेगी, लेकिन काशी में रहकर माता दुर्गा का बंगाली परंपरा से पूजा करने का अवसर यहीं पर मिलेगा.

विदेश में भी मौजूद हैं भारत सेवाश्रम संघ की साखाएं

भारत सेवाश्रम संघ के सेक्रेटरी का कहना है कि भारत सेवाश्रम सिर्फ काशी में नहीं, बल्कि देश-विदेश में भी मौजूद है. भारत के अलग-अलग राज्यों में इस आश्रम की कुल 51 शाखाएं हैं, जबकि 12 शाखाएं साउथ अफ्रीका, लंदन, कोलंबिया समेत कई जगहों पर मौजूद है. काशी में स्थित इस आश्रम में भी लगभग 100 से ज्यादा कमरे हैं और 500 से ज्यादा लोगों के रहने की व्यवस्था की जा सकती है. इसके अलावा निःशुल्क अस्पताल, निःशुल्क लाइब्रेरी, खाने-पीने की बेहद कम दर पर उत्तम व्यवस्था सहित अन्य सुविधाएं आश्रम की तरफ से दी जाती हैं. शिव की नगरी में आने वाला हर शख्स बंगाली रीति रिवाज से शक्ति की आराधना को देखने के लिए यहां जरूर आता है.

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