वाराणसी: भगवान शिव की पूजा-अर्चना अपनी-अपनी परंपरा के अनुसार हर आस्थावान धर्मावलंबी मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए करते हैं. जी हां क्योंकि भगवान शिवजी को तैंतीस कोटि देवी- देवताओं में देवाधिदेव महादेव माना गया है और इनकी पूजा-अर्चना से जीवन में अलौकिक शान्ति के साथ ही सुख-समृद्धि, खुशहाली बनी रहती है. व्रत उपवास रखकर विधि-विधानपूर्वक भगवान शिवजी की पूजा-अर्चना करने की विशेष महिमा है. वैसे तो भगवान शिव जी की पूजा कभी भी की जा सकती हैं, लेकिन प्रदोष व्यापिनी त्रयोदशी तिथि के दिन पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है. प्रत्येक मास के दोनों पक्षों को त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखने की धार्मिक परंपरा है.
आईए जानें इस व्रत से जुड़ी कुछ खास बातें: इस बार 7 अक्टूबर शुक्रवार को प्रदोष व्रत है. कलियुग में प्रदोष व्रत को शीघ्र फलदायी माना गया है. ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि आश्विन मास के शुक्लपक्ष की त्रयोदशी तिथि 7 अक्टूबर, शुक्रवार को प्रातः 7 बजकर 27 मिनट पर लगेगी, जो कि उसी दिन 7 अक्टूबर शुक्रवार को 5 बजकर 26 मिनट तक रहेगी, जिसके फलस्वरूप प्रदोष व्रत 7 अक्टूबर शुक्रवार को रखा जाएगा. प्रदोषकाल का समय सूर्यास्त से 48 मिनट या 72 मिनट का माना जाता है. सम्पूर्ण दिन निराहार रहते हुए सायंकाल पुनः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करके प्रदोषकाल में भगवान शिवजी की पूजा-अर्चना उत्तराभिमुख होकर करने का विधान है.
वार (दिनों) के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ: ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि प्रत्येक दिन के प्रदोष व्रत का अलग-अलग प्रभाव है. जैसे- रवि प्रदोष आयु और आरोग्य लाभ, सोम प्रदोष शान्ति और रक्षा, भौम प्रदोष कर्ज से मुक्ति, बुध प्रदोष- मनोकामना की पूर्ति, गुरु प्रदोष विजय प्राप्ति, शुक्र प्रदोष-आरोग्य, सौभाग्य और मनोकामना की पूर्ति, शनि प्रदोष पुत्र सुख की प्राप्ति मनोरथ की पूर्ति के लिए 11 प्रदोष व्रत या वर्ष के समस्त त्रयोदशी तिथियों का व्रत और अभीष्ट की पूर्ति होने तक प्रदोष व्रत रखने की धार्मिक मान्यता है.
प्रदोष व्रत का विधान: ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नान-ध्यान, पूजा- अर्चना के पश्चात अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध और कुश लेकर प्रदोष व्रत का संकल्प लेना चाहिए. दिनभर निराहार रहकर सायंकाल पुनः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहन कर प्रदोष काल में भगवान शिवजी की विधि-विधान पूर्वक पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार श्रद्धा-भक्तिभाव के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए. देवाधिदेव शिवजी का अभिषेक करके उन्हें वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव्य के साथ बेलपत्र, कनेर, धतूरा, मदार, ऋतुपुष्प, नैवेद्य आदि अर्पित करके धूप-दीप के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए. ऐसी धार्मिक मान्यता है कि व्रतकर्ता अपने मस्तिष्क पर भस्म और तिलक लगाकर देवाधिदेव शिव की पूजा करें तो पूजा शीघ्र फलित होती है.
देवाधिदेव महादेव की महिमा में प्रदोष स्तोत्र का पाठ और स्कन्दपुराण में वर्णित प्रदोष व्रत कथा (Shukra Pradosh Vrat 2022) का पठन या श्रवण अवश्य करना चाहिए. प्रदोष व्रत से संबंधित कथाएं भी सुननी चाहिए. यह व्रत महिला और पुरुष दोनों के लिए समानरूप से फलदायी है. प्रदोष व्रत से जीवन के समस्त दोषों के शमन के साथ ही जीवन में सुख, समृद्धि और खुशहाली मिलती है.
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