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बनारस में 1940 से इस खास मिठाई के साथ चल रहा है हर घर तिरंगा अभियान - sweets in name of revolutionaries

बनारस पुरातन शहर है.इस पुराने शहर की कई पुरानी कहानियां भी हैं. बनारस में 1940 से एक खास मिठाई के साथ हर घर तिरंगा अभियान चल रहा है. इस बर्फी ने अंग्रेजों की हुकूमत हिलाने का काम किया था. देखिये यह रिपोर्ट

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तिरंगी बर्फी का आविष्कार
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Published : Aug 10, 2022, 2:33 PM IST

वाराणसी: इन दिनों पूरा देश आजादी के 75 साल के जश्न में डूबा हुआ है. हर घर पर गंगा अभियान के जरिए घर-घर तिरंगा पहुंचा कर इसका सम्मान और तिरंगे के साथ देशभक्ति की भावना लोगों में जागृत करने की कोशिश सरकार कर रही है. लेकिन बनारस में गंगा अभियान की शुरुआत अभी नहीं बल्कि 1940 में ही हो गई थी. और बनारस की एक मिठाई की दुकान के जरिए तिरंगे को घर घर पहुंचाने के लिए एक ऐसा नायाब तरीका ढूंढा गया था, जिसमें लोगों के मुंह में मिठाई का स्वाद घोलते हुए अंग्रेजों की जड़ों को हिलाने का काम किया था. देखिये बनारस के तिरंगी बर्फी की कहानी. इसने हर घर तिरंगा अभियान को 1940 में ही अंग्रेजी हुकूमत को कमजोर करने में बड़ी भूमिका निभाई थी.

बनारस पुरातन शहर है. पूरी दुनिया में बनारस सबसे पुराने जीवंत शहरों में गिना जाता है. इस पुराने शहर की कई ऐसी पुरानी कहानियां भी हैं जो बनारस को और भी ज्यादा खास बना देती हैं. ऐसी ही एक कहानी बनारस की सकरी और पतली गलियों में चलने वाली मिठाई की दुकान से भी जुड़ी है. दरअसल, इस वर्ष 75वीं वर्षगांठ के साथ पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. इस मौके पर हमने बनारस के ठठेरी बाजार इलाके के उस कहानी को जानने की कोशिश की जिसने कुछ अलग अंदाज में हर घर तिरंगा पहुंचा कर अंग्रेजों की टेंशन को बढ़ाने का काम किया था.

मिठाई शॉप के ओनर अरुण गुप्ता ने दी जानकारी
हम बात कर रहे हैं बनारस के ठठेरी बाजार में स्थित डेढ़ सौ साल पुरानी मिठाई की दुकान श्री राम भंडार की. इस मिठाई की दुकान में 1940 के दौरान जब आजादी की लड़ाई पूरी तरह से संघर्षों के साथ आगे बढ़ाई जा रही थी, उस वक्त इस प्रतिष्ठान के अधिष्ठाता रघुनाथ दास गुप्ता ने अंग्रेजी हुकूमत के फरमान के बाद एक ऐसा तरीका निकाला था जिसने तिरंगे को घर-घर पहुंचाने का काम किया था. उस वक्त अंग्रेजों ने तिरंगे के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी. दीवारों पर तिरंगा बनाना, कागजों में तिरंगे बनाकर इधर-उधर देना और हाथों में तिरंगा लेकर चलना इन सभी पर रोक थी. लेकिन, इन सबके बीच रघुनाथ दास गुप्ता ने अपनी मिठाई की दुकान पर तिरंगी बर्फी का आविष्कार किया था.
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इसे भी पढ़े-बनारस का कबीरचौरा, जहां हर घर में गूंजते हैं संगीत के सातों सुर


तिरंगे की तरह तीन रंगों में यह बर्फी दिखाई देती थी. सबसे ऊपर केसरिया रंग जिसमें खोवा और काजू का स्वाद था. बीच में सफेद रंग जिसे दूध और मावा के साथ तैयार किया गया था. सबसे नीचे हरे रंग में पिस्ता और अन्य ड्राई फ्रूट की बदौलत ऐसी मिठाई बनाई गई थी. उस समय स्वतंत्र संग्राम सेनानी और क्रांतिकारियों के नाम पर भी मिठाइयां बनाई गई. इसमें तिरंगी बर्फी के अलावा जवाहर लड्डू, गांधी गौरव, बल्लभ संदेश जैसी मिठाइयां बनारस के घर घर में पहुंचने का काम शुरू हुआ.

मकसद सिर्फ इतना था कि, अंग्रेजों के खिलाफ होने वाली बैठक और अंग्रेजो के खिलाफ निकाले जाने वाले मोर्चे की जानकारी हर किसी को हो सके. तिरंगी बर्फी के साथ इन मिठाइयों को छोटे-छोटे संदेशों की पर्चियां छिपाकर क्रांतिकारियों तक पहुंचाई जाने लगी. घरों में अभियान को तेज करने के लिए और तिरंगे के सम्मान को बढ़ाने के उद्देश्य से हर घर इन मिठाइयों को मुफ्त में भेजा जाने लगा.

वर्तमान समय में इस मिठाई की दुकान में यह मिठाइयां आज भी बनाई जा रही है. दुकान के मालिक का साफ तौर पर कहना है कि, हमारे पूर्वजों ने जिस तरह से हर घर तिरंगा अभियान को एक अलग तरीके से गति दी थी. उसने अंग्रेजों की हुकूमत को हिलाने का काम किया था. मुंह मीठा करते हुए लोग अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आगाज करके मोर्चा खोलते थे. आज भी 15 अगस्त और 26 जनवरी जैसे महत्वपूर्ण मौकों पर तिरंगी बर्फी की जबरदस्त डिमांड होती है. स्कूलों से लेकर कार्यालय और घरों तक में तिरंगी बर्फी का आर्डर मिलता है. इस बार 75 वीं वर्षगांठ के मौके पर कई कार्यालयों और स्कूलों से बड़ी संख्या में आर्डर आने शुरू हो गए हैं.

फिलहाल आजादी के अमृत महोत्सव पर हर घर तिरंगा अभियान सरकार भले चलाकर लोगों में देशभक्ति और तिरंगे के सम्मान के प्रति जागरूकता फैला रही हो. लेकिन, बनारस की डेढ़ सौ साल पुरानी दुकान में हर घर तिरंगा अभियान को आजादी की लड़ाई के समय ही तिरंगे को घर- घर पहुंचाने के लिए शुरू कर दिया गया था.

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वाराणसी: इन दिनों पूरा देश आजादी के 75 साल के जश्न में डूबा हुआ है. हर घर पर गंगा अभियान के जरिए घर-घर तिरंगा पहुंचा कर इसका सम्मान और तिरंगे के साथ देशभक्ति की भावना लोगों में जागृत करने की कोशिश सरकार कर रही है. लेकिन बनारस में गंगा अभियान की शुरुआत अभी नहीं बल्कि 1940 में ही हो गई थी. और बनारस की एक मिठाई की दुकान के जरिए तिरंगे को घर घर पहुंचाने के लिए एक ऐसा नायाब तरीका ढूंढा गया था, जिसमें लोगों के मुंह में मिठाई का स्वाद घोलते हुए अंग्रेजों की जड़ों को हिलाने का काम किया था. देखिये बनारस के तिरंगी बर्फी की कहानी. इसने हर घर तिरंगा अभियान को 1940 में ही अंग्रेजी हुकूमत को कमजोर करने में बड़ी भूमिका निभाई थी.

बनारस पुरातन शहर है. पूरी दुनिया में बनारस सबसे पुराने जीवंत शहरों में गिना जाता है. इस पुराने शहर की कई ऐसी पुरानी कहानियां भी हैं जो बनारस को और भी ज्यादा खास बना देती हैं. ऐसी ही एक कहानी बनारस की सकरी और पतली गलियों में चलने वाली मिठाई की दुकान से भी जुड़ी है. दरअसल, इस वर्ष 75वीं वर्षगांठ के साथ पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. इस मौके पर हमने बनारस के ठठेरी बाजार इलाके के उस कहानी को जानने की कोशिश की जिसने कुछ अलग अंदाज में हर घर तिरंगा पहुंचा कर अंग्रेजों की टेंशन को बढ़ाने का काम किया था.

मिठाई शॉप के ओनर अरुण गुप्ता ने दी जानकारी
हम बात कर रहे हैं बनारस के ठठेरी बाजार में स्थित डेढ़ सौ साल पुरानी मिठाई की दुकान श्री राम भंडार की. इस मिठाई की दुकान में 1940 के दौरान जब आजादी की लड़ाई पूरी तरह से संघर्षों के साथ आगे बढ़ाई जा रही थी, उस वक्त इस प्रतिष्ठान के अधिष्ठाता रघुनाथ दास गुप्ता ने अंग्रेजी हुकूमत के फरमान के बाद एक ऐसा तरीका निकाला था जिसने तिरंगे को घर-घर पहुंचाने का काम किया था. उस वक्त अंग्रेजों ने तिरंगे के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी. दीवारों पर तिरंगा बनाना, कागजों में तिरंगे बनाकर इधर-उधर देना और हाथों में तिरंगा लेकर चलना इन सभी पर रोक थी. लेकिन, इन सबके बीच रघुनाथ दास गुप्ता ने अपनी मिठाई की दुकान पर तिरंगी बर्फी का आविष्कार किया था.
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तिरंगे की तरह तीन रंगों में यह बर्फी दिखाई देती थी. सबसे ऊपर केसरिया रंग जिसमें खोवा और काजू का स्वाद था. बीच में सफेद रंग जिसे दूध और मावा के साथ तैयार किया गया था. सबसे नीचे हरे रंग में पिस्ता और अन्य ड्राई फ्रूट की बदौलत ऐसी मिठाई बनाई गई थी. उस समय स्वतंत्र संग्राम सेनानी और क्रांतिकारियों के नाम पर भी मिठाइयां बनाई गई. इसमें तिरंगी बर्फी के अलावा जवाहर लड्डू, गांधी गौरव, बल्लभ संदेश जैसी मिठाइयां बनारस के घर घर में पहुंचने का काम शुरू हुआ.

मकसद सिर्फ इतना था कि, अंग्रेजों के खिलाफ होने वाली बैठक और अंग्रेजो के खिलाफ निकाले जाने वाले मोर्चे की जानकारी हर किसी को हो सके. तिरंगी बर्फी के साथ इन मिठाइयों को छोटे-छोटे संदेशों की पर्चियां छिपाकर क्रांतिकारियों तक पहुंचाई जाने लगी. घरों में अभियान को तेज करने के लिए और तिरंगे के सम्मान को बढ़ाने के उद्देश्य से हर घर इन मिठाइयों को मुफ्त में भेजा जाने लगा.

वर्तमान समय में इस मिठाई की दुकान में यह मिठाइयां आज भी बनाई जा रही है. दुकान के मालिक का साफ तौर पर कहना है कि, हमारे पूर्वजों ने जिस तरह से हर घर तिरंगा अभियान को एक अलग तरीके से गति दी थी. उसने अंग्रेजों की हुकूमत को हिलाने का काम किया था. मुंह मीठा करते हुए लोग अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आगाज करके मोर्चा खोलते थे. आज भी 15 अगस्त और 26 जनवरी जैसे महत्वपूर्ण मौकों पर तिरंगी बर्फी की जबरदस्त डिमांड होती है. स्कूलों से लेकर कार्यालय और घरों तक में तिरंगी बर्फी का आर्डर मिलता है. इस बार 75 वीं वर्षगांठ के मौके पर कई कार्यालयों और स्कूलों से बड़ी संख्या में आर्डर आने शुरू हो गए हैं.

फिलहाल आजादी के अमृत महोत्सव पर हर घर तिरंगा अभियान सरकार भले चलाकर लोगों में देशभक्ति और तिरंगे के सम्मान के प्रति जागरूकता फैला रही हो. लेकिन, बनारस की डेढ़ सौ साल पुरानी दुकान में हर घर तिरंगा अभियान को आजादी की लड़ाई के समय ही तिरंगे को घर- घर पहुंचाने के लिए शुरू कर दिया गया था.

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