वाराणसीः काशी हिंदू विश्वविद्यालय विज्ञान संस्थान में दांत न बनने की समस्या को दूर करने के लिए नए अध्ययन किया गया है. जिसमें दांत न बनने की समस्या को दूर किया गया है. गौरतलब है कि भारत में 11% लोग दांत ना बनने की समस्या का सामना कर रहे हैं. टूथ एजेनेसिस के कारणों और समस्या के संभावित इलाज को लेकर दुनिया भर में कई शोध कार्य किए जा रहे हैं. बीएचयू के शोधकर्ताओं ने इस संबंध में अपनी तरह की पहली खोज की है. सेंटर फॉर जेनेटिक डिसऑर्डर्स, विज्ञान संस्थान, के समन्वयक प्रो. परिमल दास और उनके पीएचडी छात्र प्रशांत रंजन ने बच्चों में टूथ एजेनेसिस की समस्या के निदान के लिए एक नई चिकित्सीय विधि सुझाई है.
वैज्ञानिकों का दावा है कि पहली बार है कि इस तरह की विधि पर शोध किया गया है. PAX9 दांतों के विकास के लिए जिम्मेदार एक महत्वपूर्ण जीन है. PAX9 में म्यूटेशन से टूथ एजेनेसिस हो सकता है. शोध दल ने सैकड़ों ऐसे म्युटेंट PAX9 प्रकारों का अध्ययन किया, जिनमें टूथ एजेनेसिस हो सकता था. इस दौरान छह सबसे अधिक पैथोजेनिक पाए गए. जिसका परिणाम टूथ एजेनेसिस था.
वैज्ञानिक प्रो. परिमल दास ने बताया कि इन सबसे पैथोजेनिक PAX9 वेरिएंट का अध्ययन किया. 6 म्युटेंट प्रोटीन का स्ट्रक्चर कंप्यूटर सॉफ्टवेयर से डिजाइन किया. उन्होंने पाया कि सारे 6 म्युटेंट के प्रोटीन स्ट्रक्चर में एक ही जगह पर बदलाव है. बाद में उसी जगह का विस्तृत अध्ययन किया गया, जिसके बाद पता चला कि वहां कुछ ऐसे स्थान थे, जो प्रोटीन इंटरेक्शन तथा डीएनए प्रोटीन इंटरेक्शन मे भागीदार नहीं थे.
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गौरतलब है कि दांत के विकास के लिए प्रोटीन–प्रोटीन इंटरएक्शन तथा डीएनए-प्रोटीन इंटरएक्शन आवश्यक है. शोध दल ने ऐसे स्थानों को दवा से जोड़ा और पाया कि दवा उस म्युटेंट प्रोटीन के स्ट्रक्चर की मरम्मत कर करके म्युटेंट प्रोटीन के कार्य को भी सक्रिय करेगा. यह अध्ययन बच्चों में टूथ एजेनेसिस के निराकरण के लिए दवा के विकास की दिशा में नए कार्यों का मार्ग प्रशस्त करता है.
पीएचडी स्कॉलर प्रशांत रंजन ने कहा मानव सेल लाइन का उपयोग करते हुए इस अध्ययन के परिणामों के आधार पर दवा के अणु को खोज पर काम कर रहे हैं. यह अध्ययन हाई इम्पैक्ट फैक्टर वाले जर्नल "इंटरनेशनल जर्नल ऑफ बायोलॉजिकल मैक्रोमोलेक्यूल्स" में प्रकाशित हुए हैं.
अध्ययन का ऑनलाइन लिंकः https://www.sciencedirect.com/science/article/pii/S0141813023002611?dgcid=author