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इसी ज्ञानव्यापी कुएं में डाला गया था बाबा विश्वनाथ का शिवलिंग...जानिए महत्व और इतिहास

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Published : Dec 12, 2021, 10:12 PM IST

काशी के ज्ञानव्यापी कुएं का संबंध भी बाबा विश्वनाथ से हैं. औरंगजेब के हमले से बाबा के शिवलिंग को बचाने के लिए इसी कुएं में डाल दिया गया था. चलिए जानते हैं इस कुएं के महत्व और इतिहास के बारे में...

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वाराणसी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उम्मीदों के साथ ही विश्वनाथ धाम सज-धज कर तैयार हो चुका है. हर कोई विश्वनाथ धाम के उस पहलू से तो रूबरू करवा रहा है, जो शायद हर कोई जान चुका है लेकिन आज ईटीवी भारत आपको विश्वनाथ धाम के इस अनछुए पहलू के बारे में बताने जा रहा है. जिसका 1669 में मुगल सेना से सीधा नाता है और आज भी यह स्थान उसी रूप में मौजूद है जैसा उस समय हुआ करता था.

सब कुछ बदला लेकिन अब तक विश्वनाथ धाम कैंपस में मौजूद इस पवित्र स्थान की स्थिति नहीं बदली या यूं कहें परंपरा के अनुरूप इसे आज भी इसे सुरक्षित और संरक्षित रखा गया है, क्योंकि यह वही स्थान है जहां औरंगजेब से बचाने के लिए मंदिर के पुजारियों और संतों ने बाबा विश्वनाथ के तत्कालीन शिवलिंग को कुएं में स्थापित कर दिया था.

इसी ज्ञानव्यापी कुएं में डाला गया था बाबा विश्वनाथ का शिवलिंग.
दरअसल, 18 अप्रैल 1669 में औरंगजेब के फरमान के बाद जब श्री काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ा जाने लगा तब उस वक्त मौजूद संत और पुजारियों ने बाबा विश्वनाथ के शिवलिंग को बचाने के उद्देश्य उन्हें ज्ञानवापी कूप में डाल दिया था. ऐसा कहा जाता है कि स्वयंभू ज्योतिर्लिंग विश्वेश्वर आज भी इसी कुएं में मौजूद है. जिसकी पूजा तो होती ही है साथ ही इस कुएं का जल पीने मात्र से ही मोक्ष और मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त होता है.

ये भी पढ़ेंः Kashi Vishwanath Corridor Inauguration: नया इतिहास रचने से चंद घड़ी दूर बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी...



इस बारे में इस कुएं के इतिहास और धार्मिक बातों की जानकारी देते हुए स्कूल की देखरेख करने वाले पुजारी पंडित शरद कुमार व्यास ने बताया कि ऐसा धर्म ग्रंथों में लिखा है. शिव धन शिव धन शिवकाशी गंगा विश्वेश्वर ज्ञानवापी यानी गंगा का स्नान विश्वनाथ का दर्शन और ज्ञानवापी का आचमन यह तीनों चीजें इंसान को सुख शांति समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति दिलाती हैं.

यही वजह है कि ज्ञानवापी कूप आज भी अपने आप में काशी की अलग पहचान है. इस पूरे कूप की विस्तृत जानकारी स्कंद पुराण में भी वर्णित है. महारानी अहिल्याबाई ने 1777 में जब काशी विश्वनाथ मंदिर की पुनर्स्थापना करवायी, उसके पहले से यह कुआं यहां पर मौजूद है.

जब धरती पर बारिश नहीं होती थी नदियां नहीं थी तब भी यह कुआं लोगों की प्यास बुझाने के लिए मौजूद था. ऐसा माना जाता है कि काशी में इस कुएं का निर्माण भगवान शिव के त्रिशूल के वेग से हुआ था इसलिए माता पार्वती और भगवान शिव का यहां पर वास बताया जाता है. इस का जल इतना मीठा और लाभकारी है कि इसका आचमन काशी यात्रा के पूर्ण होने के साथ ही मोक्ष की राह को भी प्रशस्त करता है.




हालांकि नए प्लान के मुताबिक अब 351 सालों के बाद ज्ञानवापी कुआं एक बार फिर से विश्वनाथ मंदिर परिसर में शामिल होने जा रहा है. विशाल नंदी के साथ ही इस कुएं के दर्शन के अलावा इसके भव्य रूप को निखारने की तैयारी भी की जा रही है.

विस्तारीकरण पूरा होने के साथ ही विश्वनाथ धाम परिक्रमा पथ में इसे जोड़ा जा रहा है. जिसके लिए थोड़ा परिवर्तन करते हुए 80 फीट लंबे और 40 फीट चौड़े परिक्रमा पथ की डिजाइन को बदलने के साथ ही पूरे लाल पत्थर से इस परिसर को सजाने की तैयारी की जा रही है.

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वाराणसी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उम्मीदों के साथ ही विश्वनाथ धाम सज-धज कर तैयार हो चुका है. हर कोई विश्वनाथ धाम के उस पहलू से तो रूबरू करवा रहा है, जो शायद हर कोई जान चुका है लेकिन आज ईटीवी भारत आपको विश्वनाथ धाम के इस अनछुए पहलू के बारे में बताने जा रहा है. जिसका 1669 में मुगल सेना से सीधा नाता है और आज भी यह स्थान उसी रूप में मौजूद है जैसा उस समय हुआ करता था.

सब कुछ बदला लेकिन अब तक विश्वनाथ धाम कैंपस में मौजूद इस पवित्र स्थान की स्थिति नहीं बदली या यूं कहें परंपरा के अनुरूप इसे आज भी इसे सुरक्षित और संरक्षित रखा गया है, क्योंकि यह वही स्थान है जहां औरंगजेब से बचाने के लिए मंदिर के पुजारियों और संतों ने बाबा विश्वनाथ के तत्कालीन शिवलिंग को कुएं में स्थापित कर दिया था.

इसी ज्ञानव्यापी कुएं में डाला गया था बाबा विश्वनाथ का शिवलिंग.
दरअसल, 18 अप्रैल 1669 में औरंगजेब के फरमान के बाद जब श्री काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ा जाने लगा तब उस वक्त मौजूद संत और पुजारियों ने बाबा विश्वनाथ के शिवलिंग को बचाने के उद्देश्य उन्हें ज्ञानवापी कूप में डाल दिया था. ऐसा कहा जाता है कि स्वयंभू ज्योतिर्लिंग विश्वेश्वर आज भी इसी कुएं में मौजूद है. जिसकी पूजा तो होती ही है साथ ही इस कुएं का जल पीने मात्र से ही मोक्ष और मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त होता है.

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इस बारे में इस कुएं के इतिहास और धार्मिक बातों की जानकारी देते हुए स्कूल की देखरेख करने वाले पुजारी पंडित शरद कुमार व्यास ने बताया कि ऐसा धर्म ग्रंथों में लिखा है. शिव धन शिव धन शिवकाशी गंगा विश्वेश्वर ज्ञानवापी यानी गंगा का स्नान विश्वनाथ का दर्शन और ज्ञानवापी का आचमन यह तीनों चीजें इंसान को सुख शांति समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति दिलाती हैं.

यही वजह है कि ज्ञानवापी कूप आज भी अपने आप में काशी की अलग पहचान है. इस पूरे कूप की विस्तृत जानकारी स्कंद पुराण में भी वर्णित है. महारानी अहिल्याबाई ने 1777 में जब काशी विश्वनाथ मंदिर की पुनर्स्थापना करवायी, उसके पहले से यह कुआं यहां पर मौजूद है.

जब धरती पर बारिश नहीं होती थी नदियां नहीं थी तब भी यह कुआं लोगों की प्यास बुझाने के लिए मौजूद था. ऐसा माना जाता है कि काशी में इस कुएं का निर्माण भगवान शिव के त्रिशूल के वेग से हुआ था इसलिए माता पार्वती और भगवान शिव का यहां पर वास बताया जाता है. इस का जल इतना मीठा और लाभकारी है कि इसका आचमन काशी यात्रा के पूर्ण होने के साथ ही मोक्ष की राह को भी प्रशस्त करता है.




हालांकि नए प्लान के मुताबिक अब 351 सालों के बाद ज्ञानवापी कुआं एक बार फिर से विश्वनाथ मंदिर परिसर में शामिल होने जा रहा है. विशाल नंदी के साथ ही इस कुएं के दर्शन के अलावा इसके भव्य रूप को निखारने की तैयारी भी की जा रही है.

विस्तारीकरण पूरा होने के साथ ही विश्वनाथ धाम परिक्रमा पथ में इसे जोड़ा जा रहा है. जिसके लिए थोड़ा परिवर्तन करते हुए 80 फीट लंबे और 40 फीट चौड़े परिक्रमा पथ की डिजाइन को बदलने के साथ ही पूरे लाल पत्थर से इस परिसर को सजाने की तैयारी की जा रही है.

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