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टूटते तारे नहीं देख पाए हैं तो अफसोस न करें, एक सितंबर तक दिखेगा अद्भुत नजारा

अगर आप बीते सप्ताह तारों के टूटने की अद्भुत खगोलीय घटना के गवाह नहीं बन सके हैं तो इसे लेकर अफसोस न करें. वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसा नजारा एक सितंबर तक दिखेगा. चलिए जानते हैं इस बारे में.

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Published : Aug 21, 2023, 9:24 AM IST

प्रो. अभय सिंह ने दी यह जानकारी.

वाराणसीः अगस्त का महीना खगोलीय घटनाओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण महीना माना जा रहा है. इस महीने में तमाम खगोलीय घटनाएं हुईं. इन घटनाओं में बीते दिनों हुए उल्कापात की घटना बेहद खास रही. यूं तो यह उल्कापात 1 दिन होने वाली घटना रही, लेकिन नासा ने इस बात का दावा किया है कि यह उल्कापात आगामी 1 सितंबर तक होगा. इसको लेकर काशी हिंदू विश्वविद्यालय के खगोलविद ने बताया कि बीते सप्ताह हुए उल्कापात की गति ज्यादा थी. बड़ी संख्या में उल्कापात हो रहा था. 1 सितंबर तक प्रतिदिन रात 10:00 बजे के बाद कोई भी उल्कापात को देख सकता है.

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एक नजर.

इस साल अगस्त से शुरू हुआ उल्कापात: उल्कापात हर साल जुलाई के मध्य से अगस्त के अंत तक होता है. इस साल भी अगस्त में उल्कापात हो रहा है. नासा के अनुसार ये उल्कापात एक सितंबर तक आकाश में देखा जा सकेगा. इनकी संख्या 50 से 100 के बीच होगी. इसके साथ ही धीरे-धीरे इनकी संख्या में कमी आती जाएगी. इस बारे में बीएचयू के खगोलविद का कहना है कि इन उल्कापिंड की संख्या करीब 10 के आस-पास हो जाएगी, लेकिन सितंबर तक उल्कापात की घटनाएं जारी रहेंगी. इसे कोई भी सामान्य आंखों से भी देख सकता है. उन्होंने बताया कि यह घटनाएं हर साल देखने को मिलती हैं.

एक घंटे में 50 से 100 उल्कापिंड दिखाई देते: काशी हिंदू विश्वविद्यालय के खगोलविद प्रो अभय सिंह ने बताया कि पिछले सप्ताह यह घटना काफी चर्चा में थी. इसे पर्सिडीज उल्कापात कहते हैं. पर्सिडस उल्कापात पिछले हफ्ते काफी सक्रिय था. इसमें सामान्य से अधिक उल्काएं निकलती हैं. होता क्या है कि 50 से 100 उल्का पिंड एक घंटे के अंदर दिखाई देते हैं. लोगों ने इसे देखा भी है. सामान्य तौर पर अपनी आंखों से भी लोगों ने इसे देखा था. सामान्यत: रात के 10 से लेकर 1:30 बजे तक यह घटना अधिक दिखाई दी. नासा के अनुसार ये घटनाएं अभी भी हो रही हैं. घटनाओं की संख्या में कमी आ गई है. अभी भी यह घटना रात 10 से एक बजे के बीच में दिखाई दे रही है.

आकाश में चमकीली रेखा में दिखते हैं उल्कापिंड: उन्होंने बताया कि अभी ये घटनाएं एक सितंबर तक होने की संभावना है. इसमें कमी जरूर दिखाई देगी. इसमें 50 से 60 की संख्या में उल्का थे तो अब 4 से 10 की संख्या में उल्का दिखाई देंगी. यह कण जब वायुमण्डल में आते हैं तो जल जाते हैं. आकाश में चमकीली रेखाओं की तरह दिखाई देते हैं. लोग इसे तारों का टूटना भी कहते हैं इसीलिए यह महीना खगोलीय घटनाओं के लिए काफी अच्छा है. उनका कहना है कि उल्कापात करीब-करीब हर साल होता है. उल्कापात की अलग-अलग घटनाएं होती हैं.

आर्बिट में घूमते रहते हैं क्षुद्ग ग्रह के कण: उन्होनें बताया कि खगोलीय घटनाओं में लियोनर्ड उल्कापात भी प्रसिद्ध रहा है. पर्सिडीज उल्कापात भी जाना जाता है. इस तरह की घटनाएं हर साल होती रहती हैं. जब उल्कापात सामान्य से ज्यादा यानी 25 से 100 की संख्या में होने लगता है तो इसे हम इवेंट के रूप में दर्ज करते हैं. वायुमण्डल में बहुत से क्षुद्र ग्रह हैं. इन क्षुद्र ग्रहों के कण आर्बिट में घूमते रहते हैं. ये कभी-कभी घूमते हुए पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण में आ जाते हैं. गुरुत्वाकर्षण में आने के बाद वह पृथ्वी की तरफ तेजी से बढ़ने लगते हैं. ऐसे में यह कण पृथ्वी के वायुमण्डल में प्रवेश कर जाते हैं.

पृथ्वी के वायुमण्डल में आते ही जल जाते हैं कण: उन्होंने बताया कि क्षुद्र ग्रह के कण जब वायुमण्डल में पहुंचते हैं तो तेजी से पृथ्वी की तरफ बढ़ते हैं. इनकी गति और वायुमण्डल में घर्षण होने के कारण ये जल जाते हैं. जलने के कारण ये पृथ्वी पर आते-आते खत्म हो जाते हैं. सामान्य तौर पर ये छोटे-छोटे कण रहते हैं, इसलिए ये आकाश में ही जल जाते हैं. ये घटनाएं अगले साल भी देखी जा सकती हैं.



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प्रो. अभय सिंह ने दी यह जानकारी.

वाराणसीः अगस्त का महीना खगोलीय घटनाओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण महीना माना जा रहा है. इस महीने में तमाम खगोलीय घटनाएं हुईं. इन घटनाओं में बीते दिनों हुए उल्कापात की घटना बेहद खास रही. यूं तो यह उल्कापात 1 दिन होने वाली घटना रही, लेकिन नासा ने इस बात का दावा किया है कि यह उल्कापात आगामी 1 सितंबर तक होगा. इसको लेकर काशी हिंदू विश्वविद्यालय के खगोलविद ने बताया कि बीते सप्ताह हुए उल्कापात की गति ज्यादा थी. बड़ी संख्या में उल्कापात हो रहा था. 1 सितंबर तक प्रतिदिन रात 10:00 बजे के बाद कोई भी उल्कापात को देख सकता है.

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इस साल अगस्त से शुरू हुआ उल्कापात: उल्कापात हर साल जुलाई के मध्य से अगस्त के अंत तक होता है. इस साल भी अगस्त में उल्कापात हो रहा है. नासा के अनुसार ये उल्कापात एक सितंबर तक आकाश में देखा जा सकेगा. इनकी संख्या 50 से 100 के बीच होगी. इसके साथ ही धीरे-धीरे इनकी संख्या में कमी आती जाएगी. इस बारे में बीएचयू के खगोलविद का कहना है कि इन उल्कापिंड की संख्या करीब 10 के आस-पास हो जाएगी, लेकिन सितंबर तक उल्कापात की घटनाएं जारी रहेंगी. इसे कोई भी सामान्य आंखों से भी देख सकता है. उन्होंने बताया कि यह घटनाएं हर साल देखने को मिलती हैं.

एक घंटे में 50 से 100 उल्कापिंड दिखाई देते: काशी हिंदू विश्वविद्यालय के खगोलविद प्रो अभय सिंह ने बताया कि पिछले सप्ताह यह घटना काफी चर्चा में थी. इसे पर्सिडीज उल्कापात कहते हैं. पर्सिडस उल्कापात पिछले हफ्ते काफी सक्रिय था. इसमें सामान्य से अधिक उल्काएं निकलती हैं. होता क्या है कि 50 से 100 उल्का पिंड एक घंटे के अंदर दिखाई देते हैं. लोगों ने इसे देखा भी है. सामान्य तौर पर अपनी आंखों से भी लोगों ने इसे देखा था. सामान्यत: रात के 10 से लेकर 1:30 बजे तक यह घटना अधिक दिखाई दी. नासा के अनुसार ये घटनाएं अभी भी हो रही हैं. घटनाओं की संख्या में कमी आ गई है. अभी भी यह घटना रात 10 से एक बजे के बीच में दिखाई दे रही है.

आकाश में चमकीली रेखा में दिखते हैं उल्कापिंड: उन्होंने बताया कि अभी ये घटनाएं एक सितंबर तक होने की संभावना है. इसमें कमी जरूर दिखाई देगी. इसमें 50 से 60 की संख्या में उल्का थे तो अब 4 से 10 की संख्या में उल्का दिखाई देंगी. यह कण जब वायुमण्डल में आते हैं तो जल जाते हैं. आकाश में चमकीली रेखाओं की तरह दिखाई देते हैं. लोग इसे तारों का टूटना भी कहते हैं इसीलिए यह महीना खगोलीय घटनाओं के लिए काफी अच्छा है. उनका कहना है कि उल्कापात करीब-करीब हर साल होता है. उल्कापात की अलग-अलग घटनाएं होती हैं.

आर्बिट में घूमते रहते हैं क्षुद्ग ग्रह के कण: उन्होनें बताया कि खगोलीय घटनाओं में लियोनर्ड उल्कापात भी प्रसिद्ध रहा है. पर्सिडीज उल्कापात भी जाना जाता है. इस तरह की घटनाएं हर साल होती रहती हैं. जब उल्कापात सामान्य से ज्यादा यानी 25 से 100 की संख्या में होने लगता है तो इसे हम इवेंट के रूप में दर्ज करते हैं. वायुमण्डल में बहुत से क्षुद्र ग्रह हैं. इन क्षुद्र ग्रहों के कण आर्बिट में घूमते रहते हैं. ये कभी-कभी घूमते हुए पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण में आ जाते हैं. गुरुत्वाकर्षण में आने के बाद वह पृथ्वी की तरफ तेजी से बढ़ने लगते हैं. ऐसे में यह कण पृथ्वी के वायुमण्डल में प्रवेश कर जाते हैं.

पृथ्वी के वायुमण्डल में आते ही जल जाते हैं कण: उन्होंने बताया कि क्षुद्र ग्रह के कण जब वायुमण्डल में पहुंचते हैं तो तेजी से पृथ्वी की तरफ बढ़ते हैं. इनकी गति और वायुमण्डल में घर्षण होने के कारण ये जल जाते हैं. जलने के कारण ये पृथ्वी पर आते-आते खत्म हो जाते हैं. सामान्य तौर पर ये छोटे-छोटे कण रहते हैं, इसलिए ये आकाश में ही जल जाते हैं. ये घटनाएं अगले साल भी देखी जा सकती हैं.



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