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2 नवंबर से कर सकेंगे मां अन्नपूर्णा की पूजा, साल में केवल चार दिन ही होते हैं दर्शन

मां अन्नपूर्णा का मंदिर काशी के प्रसिद्ध मंदिरों में शुमार है. मंदिर के अंदर अन्नपूर्णा और भगवान शंकर की स्वर्णिमय प्रतिमा है. इसके दर्शन वर्ष में केवल 4 दिनों के लिए होते हैं. इस बार दर्शन 2 नवंबर से लेकर 5 नवंबर तक होंगे.

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Published : Oct 31, 2021, 7:15 AM IST

मां अन्नपूर्णा की पूजा
मां अन्नपूर्णा की पूजा

वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी में विभिन्न प्रकार के मंदिर और मठ हैं. मां अन्नपूर्णा का मंदिर भी काशी के प्रसिद्ध मंदिरों में शुमार है. मंदिर के अंदर लगभग 300 अधिक वर्ष से मां अन्नपूर्णा और भगवान शंकर की स्वर्णिमय प्रतिमा है. इस प्रतिमा का दर्शन वर्ष में केवल 4 दिनों के लिए होता है, जो इस बार 2 नवंबर से शुरू होकर 5 नवंबर तक होगा. अद्भुत मूर्ति का दर्शन करने के लिए देश के कोने-कोने से लाखों की संख्या में भक्त आते हैं.

धनतेरस से लेकर अन्नकूट तक मां अन्नपूर्णा और बाबा श्री काशी विश्वनाथ की स्वर्ण प्रतिमा का दर्शन होता है. मान्यता यह है कि यहां से प्रसाद स्वरूप खजाना मिलता है. इसमें लावे के दाने और कुछ सिक्के रहते हैं, जिसे लोग अपने घरों में ले जाकर उस स्थान पर रखते हैं, जहां पूजा-पाठ किया जाता है. इसे लोग अपने लॉकर में भी रखते हैं. मान्यता है कि इसे अपने लॉकर में रखने से धन की वृद्धि होती है. सभी प्रकार के दुखों का नाश होता है. मां अन्नपूर्णा सभी प्रकार के सुख, संपत्ति और वैभव देती हैं.

2 नवंबर से कर सकेंगे मां अन्नपूर्णा की पूजा

मां अन्नपूर्णा के स्वर विग्रह का दर्शन 2 नवंबर को धनतेरस से शुरू होगा, जोकि 5 नंबर तक चलेगा. इस संदर्भ में जिले के अधिकारियों ने मंदिर परिक्षेत्र का निरीक्षण किया. मंदिर सभागार में महंत शंकरपुरी से मुलाकात की और व्यवस्थाओं का हाल जाना. लाखों की संख्या में भक्त मां की इस अद्भुत प्रतिमा का दर्शन करने के लिए आएंगे. इसके लिए मंदिर प्रशासन द्वारा पहले सैनिटाइज किया जाएगा. थर्मल स्क्रीनिंग की जाएगी. सभी को मास के साथ ही मंदिर में प्रवेश दिया जाएगा.

यह भी पढ़ें: गायों के गोबर से बने दीपों से जगमग होगी रामनगरी, 11 हजार दीपों के वाहन को CM योगी ने किया रवाना

महंत शंकरपुरी ने बताया कि 2 नवंबर को सुबह 4 बजे से मंगला कपाट खोला जाएगा. सबसे पहले महाआरती होगी. उसके बाद खजाने की पूजा-अर्चना की जाएगी. इसके बाद खजाना बंटेगा. सभी भक्तों से आग्रह है कि वह आएं और मां का दर्शन करें. इसके साथ ही खजाना को अपने घर ले जाए. मान्यता है कि खजाने को घर में रखने से बरकत होती है. हर प्रकार की समस्या का समाधान होता है. मां का आशीर्वाद उसके घर और परिवार पर हमेशा रहता है.

वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी में विभिन्न प्रकार के मंदिर और मठ हैं. मां अन्नपूर्णा का मंदिर भी काशी के प्रसिद्ध मंदिरों में शुमार है. मंदिर के अंदर लगभग 300 अधिक वर्ष से मां अन्नपूर्णा और भगवान शंकर की स्वर्णिमय प्रतिमा है. इस प्रतिमा का दर्शन वर्ष में केवल 4 दिनों के लिए होता है, जो इस बार 2 नवंबर से शुरू होकर 5 नवंबर तक होगा. अद्भुत मूर्ति का दर्शन करने के लिए देश के कोने-कोने से लाखों की संख्या में भक्त आते हैं.

धनतेरस से लेकर अन्नकूट तक मां अन्नपूर्णा और बाबा श्री काशी विश्वनाथ की स्वर्ण प्रतिमा का दर्शन होता है. मान्यता यह है कि यहां से प्रसाद स्वरूप खजाना मिलता है. इसमें लावे के दाने और कुछ सिक्के रहते हैं, जिसे लोग अपने घरों में ले जाकर उस स्थान पर रखते हैं, जहां पूजा-पाठ किया जाता है. इसे लोग अपने लॉकर में भी रखते हैं. मान्यता है कि इसे अपने लॉकर में रखने से धन की वृद्धि होती है. सभी प्रकार के दुखों का नाश होता है. मां अन्नपूर्णा सभी प्रकार के सुख, संपत्ति और वैभव देती हैं.

2 नवंबर से कर सकेंगे मां अन्नपूर्णा की पूजा

मां अन्नपूर्णा के स्वर विग्रह का दर्शन 2 नवंबर को धनतेरस से शुरू होगा, जोकि 5 नंबर तक चलेगा. इस संदर्भ में जिले के अधिकारियों ने मंदिर परिक्षेत्र का निरीक्षण किया. मंदिर सभागार में महंत शंकरपुरी से मुलाकात की और व्यवस्थाओं का हाल जाना. लाखों की संख्या में भक्त मां की इस अद्भुत प्रतिमा का दर्शन करने के लिए आएंगे. इसके लिए मंदिर प्रशासन द्वारा पहले सैनिटाइज किया जाएगा. थर्मल स्क्रीनिंग की जाएगी. सभी को मास के साथ ही मंदिर में प्रवेश दिया जाएगा.

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महंत शंकरपुरी ने बताया कि 2 नवंबर को सुबह 4 बजे से मंगला कपाट खोला जाएगा. सबसे पहले महाआरती होगी. उसके बाद खजाने की पूजा-अर्चना की जाएगी. इसके बाद खजाना बंटेगा. सभी भक्तों से आग्रह है कि वह आएं और मां का दर्शन करें. इसके साथ ही खजाना को अपने घर ले जाए. मान्यता है कि खजाने को घर में रखने से बरकत होती है. हर प्रकार की समस्या का समाधान होता है. मां का आशीर्वाद उसके घर और परिवार पर हमेशा रहता है.

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