वाराणसी: गंगा नदी में पिछले कुछ दिनों से लगातार रंग बिरंगी मछलियां मिलने से लोग हैरत में पड़ गए हैं. रामनगर क्षेत्र में गुरुवार को एक ऐसी मछली मिली है, जो चर्चा का विषय बनी हुई है. गंगा प्रहरी ने इस मछली को पकड़कर बीएचयू के जंतु विज्ञान के वैज्ञानियों को सौंप दिया. वैज्ञानिक अभी इस मछली पर अध्ययन कर रहे हैं. हालांकि मछली का नाम सकर माउथ कैटफिश बताया जा रहा है.
गंगा प्रहरी दर्शन निषाद ने बताया कि इस समय मछुआरों के जाल में कुछ अजीब मछलियां पकड़ में आ रही हैं. इससे पहले एक गोल्डन कलर की मछली मिली थी. गोल्डन कलर की मछली को भारतीय वन्यजीव संस्थान में जांच के लिए भेज दिया गया. संस्थान की रिपोर्ट में पता चला कि यह सकर माउथ कैटफिश है, जोकि अमेरिका के अमेजन नदी में पाई जाती है. गुरुवार को फिर से एक सकर माउथ कैटफिश एक मछुआरे के जाल में आ गई.
गंगा प्रहरी निषाद के अनुसार, ये मछलियां देखने में भले ही आकर्षक लगें, लेकिन बाजार में इनका कोई मोल भी नहीं है. इनकी पीठ पर स्कल्स नहीं होता, बल्कि कांटे ही कांटे हैं. अमेजन नदी की इन मछलियों से गंगा की जैव विविधता पर बेहद हानिकारक असर पड़ रहा है.
प्रो. बेचन लाल ने बताया कि इस मछली का स्वभाव मांसाहारी है. इस मछली के आस-पास जो भी छोटी मछली जाएंगी, यह सब को खा जाती है. अगर यह मछलियां ज्यादा दिन तक नदी में मौजूद रहीं तो अन्य छोटी मछलियां पूरी तरह खत्म हो जाएंगी.
जानकारी के मुताबिक, इन मछलियों का कोई फूड वैल्यू नहीं है. मछली की खाद्य वैल्यू भी नहीं है. यह मछली साउथ अमेरिकन के ब्राजील, गुयाना जैसे देशों में पाई जाती है, इसीलिए इस फिश का नाम सकर माउथ कैटफिश रखा गया है. यह मछली अमेरिका के दक्षिणी गोलार्ध में मूल रूप से पाई जाती है.
प्रो. बेचन लाल ने कहा कि एक्वेरियम की जो मछलियां बड़ी हो जाती हैं, उन्हें गंगा में छोड़ देते हैं. धीरे-धीरे इनका इतना ज्यादा विकास हो गया है कि अब अमूमन हर जगह मछलियां पकड़ ली जा रही हैं. बहते पानी में से इस फिश को समाप्त करना मुश्किल है. ये गंगा के सहारे कई धाराओं और सहायक नदियों में भी घुस गई हैं. इसी कारण मछलियों को खत्म कर पाना अब हमारे वश में नहीं है.