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लावारिस, असहाय के लिए देवदूत बना काशी का ये युवा

वाराणसी में कोरोना की इस कठिन घड़ी में लोगों की मदद के लिए एक युवा अपनी बाइक एंबुलेंस लेकर सड़कों पर दौड़ रहा है. यह युवा जरूरतमंद, गरीब असहाय लोगों की मदद कर रहा है. कोरोना के दौरान शवों का दाह संस्कार हो चाहे अस्पताल में मरीजों को मदद पहुंचाना ऐसे सभी मामलों में यह युवा दिन रात लगा हुआ है.

लावारिस, असहाय के लिए देवदूत बना काशी का ये युवा
लावारिस, असहाय के लिए देवदूत बना काशी का ये युवा
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Published : May 8, 2021, 1:24 PM IST

वाराणसी: अपनों से अपनों की दूरी इंसान को तोड़ देती है और इस वक्त कोरोना की इस बीमारी ने बेटे को बाप से, मां को बेटी से, पति को पत्नी से और भाई को बहन से दूर करने का काम किया है. इस खतरनाक वायरस की चपेट में आने के बाद 14 दिनों तक बंद कमरे में खुद को अकेला रखना मजबूरी है और यदि इस दौरान अस्पताल जाना पड़े तो फिर मुसीबत और बड़ी है और कहीं वायरस ने जान ले ली तो फिर ईश्वर जाने क्या होगा, क्योंकि इस वक्त एक खतरनाक वायरस से बचने के लिए हर कोई लोगों से दूरी बनाकर चल रहा है.

लावारिसों का मददगार अमन देखिए ये स्पेशल रिपोर्ट

यही वजह है कि अस्पतालों से लेकर श्मशान घाट पर कई ऐसी तस्वीरें सामने आ रही हैं जो मानवता को झकझोर दे रही है, लेकिन इन सबके बीच वाराणसी में ऐसे लोगों का मसीहा अमन बना है. महज 26 साल का यह युवा समाज सेवा की एक अद्भुत मिसाल है, क्योंकि इस संक्रमण काल में जब लोग अपनों से दूर हो रहे हैं, तब अमन अपनी जान की परवाह किए बिना ऐसे लोगों की मदद के लिए आगे आ रहा है, जिनका कहने को तो समाज में लंबा चौड़ा परिवार है, दोस्त हैं, यार हैं लेकिन इस संक्रमण की वजह से सबने हाथ खींच लिया है. यहां तक कि लावारिस और बेघर लोगों के लिए भी मसीहा है अमन, तो आइए जानिए इस अमन को जिसके बारे में कहा जाता है जिसका कोई नहीं उसका तो अमन है यारों.

भगवान से कम नहीं

बनारस के रहने वाले गिरजेश सिंह की कोरोना संक्रमण से हुई मौत के बाद जब मदद को कोई आगे नहीं आया तब उनकी बेटी की अस्पताल से गई मदद के लिए अमन खड़ा हुआ और घाट पर शव को ले जाकर दाह संस्कार की पूरी रस्म अदा की. इतना ही नहीं एक महिला की अस्पताल में मौत के बाद उसके शव को न सिर्फ घाट तक पहुंचाया, बल्कि बेटा बनकर मुखाग्नि भी दी. कुछ दिन पहले वाराणसी के मैदागिन इलाके में एक आश्रम में कोरोना संक्रमण से एक वृद्ध साध्वी की मौत हो गई. शव 6 घंटे तक पड़ा रहा, किसी ने हाथ नहीं लगाया, लेकिन जब अमन को सूचना लगी तो अमन ने यहां पहुंचकर इस शव का न सिर्फ दाह संस्कार किया, बल्कि एक बेटे की तरह मुखाग्नि भी दी. यह तो अमन के बारे में कुछ हाल की जानकारियां हैं, लेकिन अमन की समाज सेवा का किस्सा कई सालों से जारी है.

बचपन से था दिल में सेवा भाव

अमन का मानना है कि बचपन में गरीब असहाय और लाचार लोगों को सड़क किनारे तड़पता देख कर उसे बहुत दर्द होता था. कुछ साल पहले गंगा स्वच्छता अभियान के दौरान साधु-संतों पर हुए लाठीचार्ज के दौरान अस्पताल में उनका इलाज जारी था. इस दौरान उसने कई असहाय और गरीब लोगों को अस्पताल के वार्ड में तड़पते देखा. उनकी मदद के लिए कोई नहीं आ रहा था. तब से उसने लोगों की मदद करने की ठानी और निकल पड़ा साइकिल लेकर सड़कों से गलियों तक, लेकिन लोगों ने मदद को देखते हुए बाइक दी और अमन ने अपनी बाइक को एंबुलेंस में तब्दील कर दिया.

बाइक एंबुलेंस लेकर चलता है अमन

अमन की यह बाइक एंबुलेंस आज बनारस ही नहीं बल्कि पूरे पूर्वांचल और यूपी में एक अलग पहचान रखती है. बाइक एंबुलेंस लेकर अमन सुबह से रात तक सड़कों पर निकलता है और गरीब असहाय और लाचार लोगों के साथ हर उस व्यक्ति की मदद करता है. जिसे मदद की जरूरत होती है. इस संक्रमण काल में जब हर कोई एक दूसरे से दूरी बना रहा है, तब अमन लोगों की मदद कर रहा है. लोगों को अस्पताल तक पहुंचाना. कोरोना संक्रमित मरीजों की सेवा करना और कोविड वार्ड में जाकर मरीजों की देखरेख करना. यह सब अमन का रोज का काम है.

गैर होकर किया अपनों ने मुंह फेरा

यहां तक कि किसी की संक्रमण से मौत के बाद जब अपने घाट पर नहीं पहुंचे तो शव को कंधा देना और उसका दाह संस्कार करने तक का काम अमन पूरा करता है. अमन के यह प्रयास अनवरत जारी हैं, जिनकी सेवा किया वह तो बेहद खुश हैं साथ ही साथ वह भी खुश हैं जो अमन को जानते हैं. लोगों का कहना है कि अमन एक मिसाल है समाज सेवा की और वह भी इस संक्रमण काल में,

अमन ने बताया कि अब तक उन्होंने 20 से ज्यादा लावारिस शवों का दाह संस्कार किया है. इस संक्रमण काल में अब तक 30 से ज्यादा लोगों को अस्पताल पहुंचाना और दर्जनों लोगों की अस्पताल में मदद करने का काम नियमित रूप से कर रहा है. लोगों को ऑक्सीजन सिलेंडर दिलवाने से लेकर अन्य आवश्यक चीजें उपलब्ध कराने का काम भी अमन करता है. फिलहाल अमन का यह प्रयास निश्चित तौर पर आज के युवाओं के लिए एक प्रेरणा है जो सिर्फ अपने लिए जीते हैं.

वाराणसी: अपनों से अपनों की दूरी इंसान को तोड़ देती है और इस वक्त कोरोना की इस बीमारी ने बेटे को बाप से, मां को बेटी से, पति को पत्नी से और भाई को बहन से दूर करने का काम किया है. इस खतरनाक वायरस की चपेट में आने के बाद 14 दिनों तक बंद कमरे में खुद को अकेला रखना मजबूरी है और यदि इस दौरान अस्पताल जाना पड़े तो फिर मुसीबत और बड़ी है और कहीं वायरस ने जान ले ली तो फिर ईश्वर जाने क्या होगा, क्योंकि इस वक्त एक खतरनाक वायरस से बचने के लिए हर कोई लोगों से दूरी बनाकर चल रहा है.

लावारिसों का मददगार अमन देखिए ये स्पेशल रिपोर्ट

यही वजह है कि अस्पतालों से लेकर श्मशान घाट पर कई ऐसी तस्वीरें सामने आ रही हैं जो मानवता को झकझोर दे रही है, लेकिन इन सबके बीच वाराणसी में ऐसे लोगों का मसीहा अमन बना है. महज 26 साल का यह युवा समाज सेवा की एक अद्भुत मिसाल है, क्योंकि इस संक्रमण काल में जब लोग अपनों से दूर हो रहे हैं, तब अमन अपनी जान की परवाह किए बिना ऐसे लोगों की मदद के लिए आगे आ रहा है, जिनका कहने को तो समाज में लंबा चौड़ा परिवार है, दोस्त हैं, यार हैं लेकिन इस संक्रमण की वजह से सबने हाथ खींच लिया है. यहां तक कि लावारिस और बेघर लोगों के लिए भी मसीहा है अमन, तो आइए जानिए इस अमन को जिसके बारे में कहा जाता है जिसका कोई नहीं उसका तो अमन है यारों.

भगवान से कम नहीं

बनारस के रहने वाले गिरजेश सिंह की कोरोना संक्रमण से हुई मौत के बाद जब मदद को कोई आगे नहीं आया तब उनकी बेटी की अस्पताल से गई मदद के लिए अमन खड़ा हुआ और घाट पर शव को ले जाकर दाह संस्कार की पूरी रस्म अदा की. इतना ही नहीं एक महिला की अस्पताल में मौत के बाद उसके शव को न सिर्फ घाट तक पहुंचाया, बल्कि बेटा बनकर मुखाग्नि भी दी. कुछ दिन पहले वाराणसी के मैदागिन इलाके में एक आश्रम में कोरोना संक्रमण से एक वृद्ध साध्वी की मौत हो गई. शव 6 घंटे तक पड़ा रहा, किसी ने हाथ नहीं लगाया, लेकिन जब अमन को सूचना लगी तो अमन ने यहां पहुंचकर इस शव का न सिर्फ दाह संस्कार किया, बल्कि एक बेटे की तरह मुखाग्नि भी दी. यह तो अमन के बारे में कुछ हाल की जानकारियां हैं, लेकिन अमन की समाज सेवा का किस्सा कई सालों से जारी है.

बचपन से था दिल में सेवा भाव

अमन का मानना है कि बचपन में गरीब असहाय और लाचार लोगों को सड़क किनारे तड़पता देख कर उसे बहुत दर्द होता था. कुछ साल पहले गंगा स्वच्छता अभियान के दौरान साधु-संतों पर हुए लाठीचार्ज के दौरान अस्पताल में उनका इलाज जारी था. इस दौरान उसने कई असहाय और गरीब लोगों को अस्पताल के वार्ड में तड़पते देखा. उनकी मदद के लिए कोई नहीं आ रहा था. तब से उसने लोगों की मदद करने की ठानी और निकल पड़ा साइकिल लेकर सड़कों से गलियों तक, लेकिन लोगों ने मदद को देखते हुए बाइक दी और अमन ने अपनी बाइक को एंबुलेंस में तब्दील कर दिया.

बाइक एंबुलेंस लेकर चलता है अमन

अमन की यह बाइक एंबुलेंस आज बनारस ही नहीं बल्कि पूरे पूर्वांचल और यूपी में एक अलग पहचान रखती है. बाइक एंबुलेंस लेकर अमन सुबह से रात तक सड़कों पर निकलता है और गरीब असहाय और लाचार लोगों के साथ हर उस व्यक्ति की मदद करता है. जिसे मदद की जरूरत होती है. इस संक्रमण काल में जब हर कोई एक दूसरे से दूरी बना रहा है, तब अमन लोगों की मदद कर रहा है. लोगों को अस्पताल तक पहुंचाना. कोरोना संक्रमित मरीजों की सेवा करना और कोविड वार्ड में जाकर मरीजों की देखरेख करना. यह सब अमन का रोज का काम है.

गैर होकर किया अपनों ने मुंह फेरा

यहां तक कि किसी की संक्रमण से मौत के बाद जब अपने घाट पर नहीं पहुंचे तो शव को कंधा देना और उसका दाह संस्कार करने तक का काम अमन पूरा करता है. अमन के यह प्रयास अनवरत जारी हैं, जिनकी सेवा किया वह तो बेहद खुश हैं साथ ही साथ वह भी खुश हैं जो अमन को जानते हैं. लोगों का कहना है कि अमन एक मिसाल है समाज सेवा की और वह भी इस संक्रमण काल में,

अमन ने बताया कि अब तक उन्होंने 20 से ज्यादा लावारिस शवों का दाह संस्कार किया है. इस संक्रमण काल में अब तक 30 से ज्यादा लोगों को अस्पताल पहुंचाना और दर्जनों लोगों की अस्पताल में मदद करने का काम नियमित रूप से कर रहा है. लोगों को ऑक्सीजन सिलेंडर दिलवाने से लेकर अन्य आवश्यक चीजें उपलब्ध कराने का काम भी अमन करता है. फिलहाल अमन का यह प्रयास निश्चित तौर पर आज के युवाओं के लिए एक प्रेरणा है जो सिर्फ अपने लिए जीते हैं.

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