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आज है अक्षय नवमी का पर्व, जानिए क्या करना होगा श्री हरि की कृपा पाने को - Akshay Navami 2023 significance

अक्षय नवमी 2023: अक्षय नवमी को आँवला नवमी या कुष्माण्ड नवमी के नाम से भी जाना जाता है. ज्योतिषविद विमल जैन के अनुसार अक्षय नवमी का व्रत-उपवास और पूजा करने का विशेष महत्व (Akshay Navami 2023 significance and auspicious time) है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Nov 21, 2023, 8:43 AM IST

Updated : Nov 21, 2023, 8:51 AM IST

वाराणसी: अक्षय पुण्य फल की कामना के संग मनाया जाने वाला पर्व अक्षय नवमी कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन हर्ष, उमंग एवं उल्लास के साथ मनाया जाता है. अक्षय नवमी को आँवला नवमी या कुष्माण्ड नवमी के नाम से भी जाना जाता है. अक्षय नवमी जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि इस दिन किए गए पुण्य और पाप, शुभ-अशुभ समस्त कार्यों का फल अक्षय (स्थायी) हो जाता है. तीन वर्ष तक लगातार अक्षय नवमी का व्रत-उपवास एवं पूजा करने से अभीष्ट की प्राप्ति ( Akshay Navami 2023 significance and auspicious time) बतलाई गई है.

ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि इस बार यह पर्व आज मनाया जायेगा. कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 20 नवम्बर, सोमवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात 3 बजकर 17 मिनट पर लग गई है, जो कि अगले दिन 21 नवम्बर, मंगलवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात 01 बजकर 10 मिनट तक रहेगी. शतभिषा नक्षत्र 20 नवम्बर, सोमवार को रात्रि 9 बजकर 26 मिनट से 21 नवम्बर, मंगलवार को रात्रि 8 बजकर 02 मिनट तक रहेगा. अक्षय नवमी का व्रत 21 नवम्बर, मंगलवार को रखा जायेगा.

अक्षय नवमी के दिन व्रत रखकर भगवान श्रीलक्ष्मीनारायण- श्रीविष्णु की पूजा अर्चना तथा आँवले के वृक्ष के समीप या नीचे बैठकर भोजन करने की पौराणिक व धार्मिक मान्यता है. पूजा करने वाले का मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए. व्रत करने वाले को अपने दैनिक कृत्यों से निवृत्त हो स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए. तत्पश्चात् अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के बाद अक्षय नवमी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए.

भगवान श्रीलक्ष्मीनारायण की पंचोपचार, दशोपचार या षोडशोपचार पूजा की जाती है. आज के दिन भगवान श्रीविष्णु का प्रिय मंत्र "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" का जप करने पर भगवान शीघ्र प्रसन्न होकर भक्त को उसकी अभिलाषा-पूर्ति का आशीर्वाद देते हैं.

पूजा का विधान: ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार इस पर्व पर आँवले के वृक्ष की पूजा से अक्षय फल (कभी न खत्म होने वाले पुण्यफल) की प्राप्ति होती है. साथ ही सौभाग्य में अभिवृद्धि होती है. इस पर्व पर आँवले के वृक्ष की पूजा पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से की जाती है. पूजन करने के पश्चात् वृक्ष की आरती करके परिक्रमा करनी चाहिए. कुष्माण्ड (कोहड़ा) का दान भी किया जाता है.

आँवले के वृक्ष के समीप या नीचे ब्राह्मण को सात्विक भोजन कराकर यथाशक्ति दान-दक्षिणा देकर पुण्य अर्जित करना चाहिए. कोहड़े में अपनी सामर्थ्य के अनुसार सोना, चाँदी व नगद द्रव्य रखकर भूदेव कर्मनिष्ठ ब्राह्मण को दान देने का भी विधान है. इसके अलावा अन्न, घी एवं अन्य जरूरी वस्तुओं का दान देना भी अक्षय फल की प्राप्ति कराता है. आज के दिन गोदान करने की भी महिमा है.

धार्मिक पौराणिक मान्यता: इस दिन किए गए दान से जीवन में जाने-अनजाने में हुए समस्त पापों का शमन हो जाता है. इस दिन पितृलोक में विराजित पितरों को शीत (ठण्ड) से बचाने के लिए संकल्प करके भूदेव (ब्राह्मण) को ऊनी वस्त्र, कम्बल देने की शास्त्रीय मान्यता है. ज्योर्तिविद विमल जैन के अनुसार आँवले के पूजन के लिए यदि आँवले का वृक्ष उपलब्ध न हो तो मिट्टी के नए गमले में आँवले का पौधा लगाकर उसकी विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना करनी चाहिए जिससे जीवन में मंगल- कल्याण होता रहे.

आँवले के पूजन से सुहागिन महिलाओं का अखण्ड सौभाग्य के साथ ही निःसन्तान को सन्तान की प्राप्ति भी बतलाई गई है. आँवला नवमी पर्व पर तन-मन-धन से पूर्णतया शुचिता के साथ व्रत आदि करना चाहिए. व्रतकर्ता को व्यर्थ की वार्तालाप से बचना चाहिए तथा दिन में शयन नहीं करना चाहिए. साथ ही मन-वचन-कर्म से शुभ कृत्यों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए.

ये भी पढ़ें- अयोध्या में 14 कोसी परिक्रमा शुरू: लाखों श्रद्धालुओं पहुंचे, सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम

वाराणसी: अक्षय पुण्य फल की कामना के संग मनाया जाने वाला पर्व अक्षय नवमी कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन हर्ष, उमंग एवं उल्लास के साथ मनाया जाता है. अक्षय नवमी को आँवला नवमी या कुष्माण्ड नवमी के नाम से भी जाना जाता है. अक्षय नवमी जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि इस दिन किए गए पुण्य और पाप, शुभ-अशुभ समस्त कार्यों का फल अक्षय (स्थायी) हो जाता है. तीन वर्ष तक लगातार अक्षय नवमी का व्रत-उपवास एवं पूजा करने से अभीष्ट की प्राप्ति ( Akshay Navami 2023 significance and auspicious time) बतलाई गई है.

ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि इस बार यह पर्व आज मनाया जायेगा. कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 20 नवम्बर, सोमवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात 3 बजकर 17 मिनट पर लग गई है, जो कि अगले दिन 21 नवम्बर, मंगलवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात 01 बजकर 10 मिनट तक रहेगी. शतभिषा नक्षत्र 20 नवम्बर, सोमवार को रात्रि 9 बजकर 26 मिनट से 21 नवम्बर, मंगलवार को रात्रि 8 बजकर 02 मिनट तक रहेगा. अक्षय नवमी का व्रत 21 नवम्बर, मंगलवार को रखा जायेगा.

अक्षय नवमी के दिन व्रत रखकर भगवान श्रीलक्ष्मीनारायण- श्रीविष्णु की पूजा अर्चना तथा आँवले के वृक्ष के समीप या नीचे बैठकर भोजन करने की पौराणिक व धार्मिक मान्यता है. पूजा करने वाले का मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए. व्रत करने वाले को अपने दैनिक कृत्यों से निवृत्त हो स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए. तत्पश्चात् अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के बाद अक्षय नवमी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए.

भगवान श्रीलक्ष्मीनारायण की पंचोपचार, दशोपचार या षोडशोपचार पूजा की जाती है. आज के दिन भगवान श्रीविष्णु का प्रिय मंत्र "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" का जप करने पर भगवान शीघ्र प्रसन्न होकर भक्त को उसकी अभिलाषा-पूर्ति का आशीर्वाद देते हैं.

पूजा का विधान: ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार इस पर्व पर आँवले के वृक्ष की पूजा से अक्षय फल (कभी न खत्म होने वाले पुण्यफल) की प्राप्ति होती है. साथ ही सौभाग्य में अभिवृद्धि होती है. इस पर्व पर आँवले के वृक्ष की पूजा पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से की जाती है. पूजन करने के पश्चात् वृक्ष की आरती करके परिक्रमा करनी चाहिए. कुष्माण्ड (कोहड़ा) का दान भी किया जाता है.

आँवले के वृक्ष के समीप या नीचे ब्राह्मण को सात्विक भोजन कराकर यथाशक्ति दान-दक्षिणा देकर पुण्य अर्जित करना चाहिए. कोहड़े में अपनी सामर्थ्य के अनुसार सोना, चाँदी व नगद द्रव्य रखकर भूदेव कर्मनिष्ठ ब्राह्मण को दान देने का भी विधान है. इसके अलावा अन्न, घी एवं अन्य जरूरी वस्तुओं का दान देना भी अक्षय फल की प्राप्ति कराता है. आज के दिन गोदान करने की भी महिमा है.

धार्मिक पौराणिक मान्यता: इस दिन किए गए दान से जीवन में जाने-अनजाने में हुए समस्त पापों का शमन हो जाता है. इस दिन पितृलोक में विराजित पितरों को शीत (ठण्ड) से बचाने के लिए संकल्प करके भूदेव (ब्राह्मण) को ऊनी वस्त्र, कम्बल देने की शास्त्रीय मान्यता है. ज्योर्तिविद विमल जैन के अनुसार आँवले के पूजन के लिए यदि आँवले का वृक्ष उपलब्ध न हो तो मिट्टी के नए गमले में आँवले का पौधा लगाकर उसकी विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना करनी चाहिए जिससे जीवन में मंगल- कल्याण होता रहे.

आँवले के पूजन से सुहागिन महिलाओं का अखण्ड सौभाग्य के साथ ही निःसन्तान को सन्तान की प्राप्ति भी बतलाई गई है. आँवला नवमी पर्व पर तन-मन-धन से पूर्णतया शुचिता के साथ व्रत आदि करना चाहिए. व्रतकर्ता को व्यर्थ की वार्तालाप से बचना चाहिए तथा दिन में शयन नहीं करना चाहिए. साथ ही मन-वचन-कर्म से शुभ कृत्यों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए.

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Last Updated : Nov 21, 2023, 8:51 AM IST
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