वाराणसीः काशी में बाबा विश्वनाथ का भव्य धाम बनने के बाद अब उनके साले सारंगनाथ महादेव के मंदिर को भी भव्य रूप से विकसित करने की योजना बन रही है. प्रदेश सरकार ने बाकायदा विश्वनाथ धाम के तर्ज पर सारंगनाथ महादेव कॉरिडोर का निर्माण कराने पर विचार कर रही है. यहां पर मूल सुविधाओं के साथ दर्शनार्थियों और पर्यटकों के लिए एक भव्य टूरिस्ट प्लेस बनाने का प्लान है. इसको लेकर पर्यटन विभाग तैयारियों में जुट गया है. विभाग के अधिकारियों का कहना है कि मंदिर की विरासत को देखते हुए इसे विकसित किए जाने की योजना है.
बता दें कि सारंगनाथ महादेव बाबा विश्वनाथ के साथ पूजे जाते हैं. उनकी पूजा की अपनी अलग मान्यता है. लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां दर्शन को आते हैं. इस बात को ध्यान में रखते हुए इस मंदिर को विकसित किए जाने की योजना है. जल्द ही एक यह नए कॉरिडोर के रूप में दर्शनार्थी और पर्यटकों के सामने होगा. पर्यटन विभाग इस मंदिर को भव्य रूप देने के प्रयास में है, जिसके लिए योजना तैयार कर ली गई है.
टूरिस्ट्स को दी जाएंगी मूलभूत सुविधाएंः इस योजना पर पर्यटन उप निदेशक आरके रावत ने कहा आज के समय में टूरिस्ट जब वाराणसी आता है, तो यहां के हैरिटेज को जरूर देखता है. वाराणसी सबसे पुराना जीवित शहर माना जाता है. आज के समय में यह विश्व प्रसिद्ध टूरिस्ट स्पॉट हो चुका है. आंकड़ों के हिसाब से देखें तो यहां का कॉरिडोर देखने के लिए रोजाना लगभग एक लाख से अधिक टूरिस्ट आते हैं. इसी क्रम में वाराणसी में जो सारंगनाथ महादेव हैरिटेज है. इस मंदिर को भी हम ध्यान में रखते हुए यहां पर मूलभूत सुविधाओं का सृजन करेंगे. यहां पर टूरिस्ट कैसे आ सकते हैं. इसके लिए भी कई सुविधाएं दी जाएंगी.
मंदिर को दिया जाएगा भव्य स्वरूपः पर्यटन अधिकारी ने बताया कि सारंगनाथ महादेव मंदिर का सुन्दरीकरण, पुनर्विकास का काम भी किया जाएगा. विभाग की कोशिश रहेगी कि अगर यहां पर टूरिस्ट आता है, तो यहां का इतिहास भी जान सके. सारंगनाथ महादेव मंदिर एक हैरिटेज है. इसको ध्यान में रखते हुए इसे भव्य रूप दिया जाएगा. इसके द्वार सहित तमाम निर्माण कार्य इसकी विरासत को ध्यान में रखते हुए किया जाएगा.
सारंगनाथ महादेव मंदिर के पीछे ये है मान्यताः कहा जाता है कि सावन के महीने में भगवान शिव काशी छोड़कर देवी सती के साथ अपने साले सारंगनाथ महादेव के यहां मेहमान बनकर रहते थे. इसके पीछे एक मान्यता ये भी है कि जब देवी सती की शादी भगवान शिव के साथ हुई थी. उस दौरान उनके भाई ऋषि सारंग तपस्या करने के लिए गए थे. वह जब वापस लौटे तो उन्हें पता लगा कि उनकी बहन की शादी कैलाश पर्वत पर रहने वाले शिव से हुई है. ऋषि सारंग दुखी हो गए कि उनकी बहन एक औघड़ के साथ कैसे रहेगी. उन्हें पता चला कि देवी सती और भगवान शिव काशी में हैं, तो वो उनसे मिलने चले पड़े.
ऋषि सारंग ने सारनाथ में की थी तपस्याः कहा जाता है कि ऋषि सारंग अपने साथ ढेर सारे सोने के गहने और स्वर्ण मुद्राएं लेकर गए थे. उन्हें यह लग रहा था कि एक अघोरी के साथ उनकी बहन का जीवन कैसे कटेगा. मगर जब वह काशी पहुंचे तो हैरान रह गए. उन्होंने सारनाथ में विश्राम के दौरान सपना देखा कि काशी सोने की बनी हुई है. वह काशी को देखकर मुग्ध हो गए. इसके साथ ही उन्हें अपने आप पर ग्लानि हुई और सारनाथ में रहकर तपस्या करने लगे. इसके बाद शिव और सती ने उन्हें दर्शन दिए और साथ चलने के लिए कहा, लेकिन वह यहीं रहने का मन बना चुके थे.
हर सावन के महीने महादेव यहां आते हैंः मान्यता है कि माता सती और भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया था कि वह सारंगनाथ महादेव कहलाएंगे. ऋषि सारंग ने भी भोलेनाथ से यहीं रहने के लिए कहा. उस समय महादेव ने ऋषि सारंग से कहा कि सावन के महीने में वह काशी छोड़कर देवी सती के साथ उनके यहां रहने आएंगे. कहा जाता है कि तब से हर सावन के महीने में महादेव काशी छोड़कर माता सती से साथ अपने साले सारंगनाथ महादेव के घर मेहमान बनकर रहने आते हैं. इसीलिए इस मंदिर पर हर सावन के महीने में शिवभक्तों की भीड़ लगी रहती है.
सारंगनाथ और बाबा विश्वनाथ की होती है पूजाः मंदिर में सारंगनाथ महादेव व बाबा विश्वनाथ की एक साथ पूजा होती है. मंदिर में एक ही जगह पर दो शिवलिंग है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि सारंगनाथ का शिवलिंग लम्बा है और सोमनाथ का गोला आकार में ऊंचा है. मान्यता है कि यहां पर महाशिवरात्रि और सावन में दर्शन करने से चर्म रोग ठीक हो जाता है. विवाह के बाद यहां पर दर्शन करने से ससुराल और मायके का संबंध अच्छा बना रहता है. किसी दंपति को संतान नहीं हो रही है तो यहां पर दर्शन करने से संतान सुख मिलता है.
ये भी पढ़ेंः ट्रेन के किराए में 25 फीसदी कटौती का प्लान स्थगित, रेलवे बोर्ड ने दिया था आदेश