वाराणसी : देवी श्रृंगार गौरी, आदि विशेश्वर, श्रीकाशी काशीविश्वनाथ जी बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया के मामले में दाखिल याचिका में सिविल जज सीनियर डिविजन, वाराणसी के जज महेंद्र कुमार सिंह की कोर्ट ने बृहस्पतिवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया. कहा कि चूंकि मुख्य मामला पूजा के अधिकार से संबंधित है जो कि सिविल अधिकार के अंतर्गत आता है, अतः सिविलवाद द्वारा ही इसका निस्तारण किया जाना न्यायोचित होगा. विवेचना के आधार पर पत्रावली को मूलवाद के रूप में दर्ज करने का पर्याप्त आधार है.
10 मार्च को अधिवक्ता ने मामले में रखा था पक्ष
बता दें कि 10 मार्च को माता श्रृंगार गौरी आदि विशेश्वर के पूजा के अधिकार पर अधिवक्ता मदनमोहन यादव ने संविधान के अनुच्छेद-25 का हवाला देते हुए कहा कि स्तवन-पूजन-दर्शन हिंदूओं का मौलिक अधिकार है. हमारे मौलिक अधिकार से हमें कोई वंचित नहीं कर सकता है. भगवान आदि विशेश्वर व भगवती श्रृंगार गौरी के ऊपर से कथित मस्जिद हटाया जाए. कोर्ट द्वारा दोनों पक्षों को सुनने के बाद निर्णय की अगली तिथि 18 मार्च मुकर्रर की थी.
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18 फरवरी को हुआ था दावा दाखिल
दरसअल, काशी विश्वनाथ के मूल मंदिर स्थान, मां श्रृंगार गौरी, मां गंगा, भगवान हनुमान व नंदी की पूजा-अर्चना और अधिकार को लेकर हरिशंकर जैन एडवोकेट, रंजना अग्निहोत्री एडवोकेट सहित अन्य ने 18 फरवरी 2021 को यह दावा दाखिल किया था. प्रभारी सिविल जज (सीनियर डिवीजन) ने इसे प्रकीर्णवाद के रूप में दर्ज करते हुए याचिका की पोषणीयता पर सुनवाई के लिए उसे पीठासीन अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करने का आदेश दिया था. वहीं, अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने याचिका से संबंधित सभी तथ्यों को विस्तारपूर्वक 9 मार्च को कोर्ट के समक्ष रख दिया था.
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याचिका खारिज करने के लिए दी गई थी दलील
10 मार्च को अंजुमन इंतजामिया मसाजिद ने मामले मे कोर्ट के समक्ष अपने पक्ष में कहा था कि यह अपील 1991 के पूजा स्थल उपलब्ध विधेयक से बाधित है. यह श्री विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट अधिनियम की संपदा होने के कारण किस हैसियत से आए हैं. ज्ञानवापी मस्जिद सेंट्रल वक्फ की संपदा होने के कारण 1995- वक्फ एक्ट से बार्ड करता है. चूंकि इस याचिका में यूपी सेंट्रल बोर्ड पार्टी बनाया गया है और अंजुमन इंतजामिया मसाजिद उसी का अंग है. अतः हमारे खिलाफ जो भी मुकदमा होगा, वह वक्फ बोर्ड ट्रिब्यूनल को जाएगा. इसलिए यह याचिका पोषणीयता पर खारिज की जाए.
इस मामले में सिविल जज सीनियर डिविजन, वाराणसी के महेंद्र कुमार सिंह की कोर्ट ने निर्णय देते हुए कहा कि चूंकि मुख्य मामला पूजा के अधिकार से संबंधित है (जो कि सिविल अधिकार के अन्तर्गत आता है) अतः सिविल वाद द्वारा ही इसका निस्तारण किया जाना न्यायोचित होगा. विवेचना के आधार पर पत्रावली को मूलवाद के रूप में दर्ज करने का पर्याप्त आधार बताया गया है.