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क्या खत्म हो जाएगी 350 साल पुरानी काशी विश्वनाथ की यह परंपरा ?

वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर क्षेत्र में बुधवार की सुबह भवनों के ध्वस्तीकरण का कार्य चल रहा है. इस दौरान सिंहासन के रंगभरी एकादशी के मंच का बड़ा हिस्‍सा क्षतिग्रस्त हो गया.

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गिरा मलबा
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Published : Jan 22, 2020, 8:19 PM IST

वाराणसी: काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर क्षेत्र में बुधवार की सुबह भवनों के ध्वस्तीकरण के दौरान बड़ा हादसा हो गया. मंदिर के पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी के मकान का एक हिस्सा गिरने से उसमें रखा बाबा विश्वनाथ का रंगभरी एकादशी का मंच क्षतिग्रस्त हो गया. रंगभरी मंच क्षतिग्रस्त होने से एकादशी के मौके पर बाबा की रजत पालकी की निकलने पर संशय की स्थिति है.

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हर साल आयोजित होती है रंगभरी एकादशी.

भवनों को खाली कराने और गिराने का काम चल रहा है:

  • विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण के लिए भवनों को खाली करा कर गिराने का काम चल रहा है.
  • पूर्व महंत कुलपति तिवारी के आवास को छोड़कर सभी मकान खाली हो चुके हैं.
  • मकान में महंत जी के साथ उनका परिवार भी रहता है.
  • महंत के परिवार को भी रंगभरी एकादशी के बाद मकान खाली करना था.
  • इसी आवास से बाबा विश्वनाथ का तिलकोत्सव होता है.
  • इसके लिए यहां बाबा विश्वनाथ का रजत सिंहासन भी है.
  • लगभग 350 साल पहले से सिंहासन पर रंगभरी एकादशी को पंच बदन को बिठाकर विश्वनाथ दरबार ले जाया जाता है.

यह है मान्यता:
मान्यता है कि इस दिन भगवान भोलेनाथ शिवरात्रि के बाद माता पार्वती का गौना कराके अपने घर लेकर जाते हैं. इस परंपरा को चांदी के सिंहासन पर पूरा किया जाता है. लेकिन आज सुबह लगभग 5:00 बजे विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण के लिए महंत आवास के पीछे तोड़े जा रहे एक मकान को जेसीबी से गिराए जाने के दौरान महंत आवास का वह हिस्सा भी गिर गया. जहां पर यह पालकी और रजत छत्र रखा था. रंगभरी एकादशी पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम का मंच भी इसी मलबे में दब गया. इसके बाद अब यह सवाल उठने लगा है कि क्या इस बार रंगभरी पर बाबा की प्रतिमा नहीं निकलेगी और कई सालों की परंपरा भी थम जाएगी.

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प्राचीन रजत सिंहासन.

इसे भी पढ़ें - वाराणसी: काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत आवास की छत गिरी

महंत कुछ भी बोलने को नहीं हुए तैयार
इस बारे में कैमरे पर महंत कुलपति तिवारी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हुए. उनका कहना है कि मैं आहत हूं, मेरा घर विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर में चला गया है और उसके साथ परंपरा भी खत्म होने जा रही है. शासन-प्रशासन एक नहीं सुन रहा. इस बार कैसे रंगभरी एकादशी का पर्व होगा. जानकारी के मुताबिक कुलपति तिवारी ने अन्न जल त्याग देने की बात कही है.

कुल मिलाकर महंत आवास के एक हिस्से के गिर जाने की वजह से इसके मलबे में न सिर्फ रजत सिंहासन और रजत छत्र दबा है. बल्कि उस परंपरा और पौराणिकता का भी मलबे में दबकर खत्म होना दिख रहा है, जो सैकड़ों सालों से काशी में निभाई जा रही थी.

वाराणसी: काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर क्षेत्र में बुधवार की सुबह भवनों के ध्वस्तीकरण के दौरान बड़ा हादसा हो गया. मंदिर के पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी के मकान का एक हिस्सा गिरने से उसमें रखा बाबा विश्वनाथ का रंगभरी एकादशी का मंच क्षतिग्रस्त हो गया. रंगभरी मंच क्षतिग्रस्त होने से एकादशी के मौके पर बाबा की रजत पालकी की निकलने पर संशय की स्थिति है.

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हर साल आयोजित होती है रंगभरी एकादशी.

भवनों को खाली कराने और गिराने का काम चल रहा है:

  • विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण के लिए भवनों को खाली करा कर गिराने का काम चल रहा है.
  • पूर्व महंत कुलपति तिवारी के आवास को छोड़कर सभी मकान खाली हो चुके हैं.
  • मकान में महंत जी के साथ उनका परिवार भी रहता है.
  • महंत के परिवार को भी रंगभरी एकादशी के बाद मकान खाली करना था.
  • इसी आवास से बाबा विश्वनाथ का तिलकोत्सव होता है.
  • इसके लिए यहां बाबा विश्वनाथ का रजत सिंहासन भी है.
  • लगभग 350 साल पहले से सिंहासन पर रंगभरी एकादशी को पंच बदन को बिठाकर विश्वनाथ दरबार ले जाया जाता है.

यह है मान्यता:
मान्यता है कि इस दिन भगवान भोलेनाथ शिवरात्रि के बाद माता पार्वती का गौना कराके अपने घर लेकर जाते हैं. इस परंपरा को चांदी के सिंहासन पर पूरा किया जाता है. लेकिन आज सुबह लगभग 5:00 बजे विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण के लिए महंत आवास के पीछे तोड़े जा रहे एक मकान को जेसीबी से गिराए जाने के दौरान महंत आवास का वह हिस्सा भी गिर गया. जहां पर यह पालकी और रजत छत्र रखा था. रंगभरी एकादशी पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम का मंच भी इसी मलबे में दब गया. इसके बाद अब यह सवाल उठने लगा है कि क्या इस बार रंगभरी पर बाबा की प्रतिमा नहीं निकलेगी और कई सालों की परंपरा भी थम जाएगी.

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प्राचीन रजत सिंहासन.

इसे भी पढ़ें - वाराणसी: काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत आवास की छत गिरी

महंत कुछ भी बोलने को नहीं हुए तैयार
इस बारे में कैमरे पर महंत कुलपति तिवारी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हुए. उनका कहना है कि मैं आहत हूं, मेरा घर विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर में चला गया है और उसके साथ परंपरा भी खत्म होने जा रही है. शासन-प्रशासन एक नहीं सुन रहा. इस बार कैसे रंगभरी एकादशी का पर्व होगा. जानकारी के मुताबिक कुलपति तिवारी ने अन्न जल त्याग देने की बात कही है.

कुल मिलाकर महंत आवास के एक हिस्से के गिर जाने की वजह से इसके मलबे में न सिर्फ रजत सिंहासन और रजत छत्र दबा है. बल्कि उस परंपरा और पौराणिकता का भी मलबे में दबकर खत्म होना दिख रहा है, जो सैकड़ों सालों से काशी में निभाई जा रही थी.

Intro:नोट- महंत आवास विश्वनाथ मंदिर रेड जोन में मौजूद है। वहां कैमरा या मोबाइल ले जाना अलाउड नहीं है। कोशिश की गई लेकिन महंत बात करने को तैयार नहीं है। इसलिये स्टोरी dry फाइल करनी पड़ी।

वाराणसी: देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी जहां पर हर त्यौहार का एक अलग मजा है लेकिन होली पर बाबा विश्वनाथ धाम में निकलने वाली बाबा की चल प्रतिमा और रजत सिंहासन काशी की उस पुरानी परंपरा के वाहक हैं, जो शायद कई 100 सालों से आज भी निभाई जाती रही है, लेकिन इस बार होली से पहले रंगभरी एकादशी के मौके पर बाबा की रजत पालकी की निकलने पर अब संशय की स्थिति है. ऐसा इसलिए क्योंकि एक तरफ जहां कॉरिडोर के निर्माण में रजत प्रतिमा निकलने वाले महंत परिवार के मकान का भी अधिग्रहण मंदिर प्रशासन करने जा रहा है. वहीं आज महंत आवास का एक हिस्सा गिर जाने की वजह से यह पौराणिक रजत पालकी और बाबा विश्वनाथ के ऊपर लगाए जाने वाला चांदी का छत्र भी मलबे में दबकर खराब हो गया.Body:वीओ-01 दरअसल लगभग 350 साल पहले से बाबा विश्वनाथ मंदिर में महंत आवास से बाबा विश्वनाथ की चल रजत प्रतिमा रंगभरी एकादशी पर निकलकर बाबा विश्वनाथ के मंदिर के गर्भ गृह में जाकर स्थापित होती है. जहां भक्त उनका दर्शन करते हैं. बाबा विश्वनाथ की इस चल प्रतिमा के साथ माता पार्वती और भगवान गणेश भी होते हैं. मान्यता है कि इस दिन भगवान भोलेनाथ शिवरात्रि के बाद माता पार्वती का गौना कराके अपने घर लेकर जाते हैं इस परंपरा को चांदी के सिंहासन पर पूरा किया जाता है, लेकिन आज सुबह लगभग 5:00 बजे विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण के लिए महंत आवास के पीछे तोड़े जा रहे एक मकान को जेसीबी से गिराए जाने के दौरान महंत आवास का वह हिस्सा भी गिर गया. जहां पर यह पालकी और रजत छत्र रखा था यहां तक कि रंगभरी एकादशी पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम का मंच भी इसी मलबे में दब गया. जिसके बाद अब यह सवाल उठने लगा है कि क्या इस बार रंगभरी पर बाबा की प्रतिमा नहीं निकलेगी और कई सालों की परंपरा भी थम जाएगी.Conclusion:वीओ-02 इस बारे में कैमरे पर महंत कुलपति तिवारी कुछ बोलने को तैयार नहीं हुए, लेकिन उनका कहना है कि मैं आहत हूं मेरा घर विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर में चला गया है और उसके साथ परंपरा भी खत्म होने जा रही है. शासन-प्रशासन एक नहीं सुन रहा इस बार कैसे रंगभरी एकादशी का पर्व होगा यह देखने वाली बात होगी यहां तक कि कुलपति तिवारी ने अन्न जल त्याग देने की बात कही है. कुल मिलाकर आज महंत आवास के एक हिस्से के गिर जाने की वजह से इसके मलबे में नशे रजत सिंहासन और रजत छत्र दबा है. बल्कि उस परंपरा और पौराणिकता का भी मलबे में दबकर खत्म होना दिख रहा है जो सैकड़ों सालों से काशी में निभाई जा रही थी.
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