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आचार्य रामचंद्र शुक्ल की 135वीं जयंती आज, काशी से जुड़ी हैं तमाम यादें

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Published : Oct 4, 2019, 4:56 PM IST

हिंदी के महान आलोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल की आज 135वीं जयंती है. शुक्ल जी का जन्म 4 अक्टूबर सन् 1884 को यूपी के बस्ती जिले में हुआ था. हिंदी के इस महान साहित्यकार की तमाम यादें धर्मनगरी काशी से भी जुड़ी हुई हैं.

आज है आचार्य रामचंद्र शुक्ल की 135वीं जयंती.

वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी जितनी कबीर की है, उतनी ही तुलसी की है. साथ ही उतनी ही रहीम की और शिक्षा-साहित्य की भी है. यह शहर भारतेंदु हरिश्चंद्र से लेकर आचार्य रामचंद्र शुक्ल का भी है. हिंदी के महान आलोचक और बनारस से गहरा नाता रखने वाले आचार्य रामचंद्र शुक्ल की आज 135वीं जयंती है.

आचार्य रामचंद्र शुक्ल की 135वीं जयंती.

इसे भी पढ़ें-वाराणसी में आज भी मौजूद है शास्त्री जी का पैतृक आवास

धर्मनगरी काशी से जुड़े हैं आचार्य शुक्ल
4 अक्टूबर सन 1884 में बस्ती जिले के अगोनां गांव में जन्मे आचार्य शुक्ल ने काशी में हिंदी को समृद्ध करने का काम किया. उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन काल में हिंदी संरक्षण के लिए स्थापित संस्थान नागरी प्रचारिणी सभा के हिंदी शब्द सागर में बतौर सहायक संपादक काम किया. यह जिम्मेदारी उन्हें सन् 1908 में उनकी योग्यता से प्रभावित होकर दी गई थी.

महानायक आचार्य रामचंद्र शुक्ल की प्रतिमा
वाराणसी के भेलूपुर थाना अंतर्गत रविंद्रपुरी पर प्रतिमा किसी और की नहीं बल्कि हिंदी जगत के आचार्य रामचंद्र शुक्ल की है. आज भले ही इस संस्थान की दशा कुछ भी हो लेकिन हिंदी प्रेमी जब भी इस चौराहे से गुजरते हैं तो श्रद्धा के साथ एक बार अपने सिर को जरूर आचार्य जी के सामने नतमस्तक करते हैं.

हिंदी विभाग का सुव्यवस्थित पाठ्यक्रम
आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित मदन मोहन मालवीय और काशी हिंदू विश्वविद्यालय का हिंदी विभाग जो हमारे सामने सुव्यवस्थित पाठ्यक्रम चल रहा है, यह आचार्य राम प्रसाद शुक्ल की ही देन है. आचार्य जी सन् 1903 से लेकर 1908 तक आनंद कादंबिनी के सहायक संपादक थे. तो 1904 से लेकर 1908 तक लंदन मिशन स्कूल में ड्राइंग के अध्यापक रहे. आचार्य रामचंद्र शुक्ल शानदार ड्राइंग भी बनाते थे. उन्होंने माता सीता के वन गमन के साथ बहुत से चित्र बनाए.

नागरी प्रचारिणी पत्रिका के संपादक
समय बीतता गया और धीरे-धीरे उनकी व्यथा पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगी, जिससे उनका यश चारों और फैलने लगा. उन्होंने उस समय हिंदी शब्दकोश का निर्माण किया और उसमें महत्वपूर्ण योगदान निभाया. इसके बाद उन्हें नागरी प्रचारिणी पत्रिका का संपादक भी बना दिया गया.

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में अध्यापक पद पर नियुक्त
मालवीय जी लगातार आचार्य रामचंद्र शुक्ल के लेखों को पढ़ रहे थे. जिससे उन्हें 1919 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी का अध्यापक नियुक्त किया गया, उसके बाद बाबू श्याम सुंदर दास के साथ उन्होंने काम किया. बाबू श्याम सुंदर दास के 1937 में निधन के बाद अपने अंतिम काल तक 1941 तक काशी हिंदू विश्वविद्यालय हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष रहे हैं. यहां पर इन्होंने हिंदी के पाठ्यक्रम को तैयार किया. भारत में जब भी हिंदी की बात तो आचार्य राम प्रसाद शुक्ल की बात जरूर होगी. क्योंकि इन्होंने हिंदी को एक व्यवस्थित ढंग से हमारे सामने प्रस्तुत किया हैं.

हिंदी पाठ्यक्रम के लिखे लेख
आचार्य शुक्ल के सामने सबसे बड़ी जिम्मेदारी यह थी की उन दिनों हिंदी पाठ्यक्रम की कोई पुस्तक नहीं हुआ करती थी. उन्होंने बहुत से लेख हिंदी पाठ्यक्रम के लिखे. हिंदी पाठ्यक्रम को किस तरह से व्यवस्थित किया जाए और भावी पीढ़ी को ध्यान में रखकर पुस्तकों की रचना की जानी चाहिए, क्योंकि भारतेंदु, प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल ये सारे लोग स्वतंत्रता संग्राम की उपज हैं. ऐसे में आने वाली पीढ़ी को आचार्य रामचंद्र शुक्ल के बारे में पढ़ना चाहिए और जानना चाहिए.

आचार्य रामचंद्र शुक्ल नागरी प्रचारिणी सभा में आते-जाते रहे. हिंदी के 11 खंडों में शब्दकोश बनाया. उससे पहले हिंदी का कोई शब्दकोश नहीं था. उसके बाद नागरी प्रचारिणी पत्रिका का भी संपादन शुरू किया और लेख लिखे, जिसमें हिंदी को आगे बढ़ाए जाने की बात निहित थी. तब मालवीय जी ने प्रभावित होकर आचार्य रामचंद्र शुक्ल से आग्रह कर उन्हें हिंदी विभाग में शिक्षक नियुक्त किया. 1919 में बीएचयू के हिंदी विभाग में आचार्य जी ने शिक्षक के रूप में देश को अपनी सेवाएं दी.
-डॉ. मुक्ता, प्रपौत्री, आचार्य रामचंद्र शुक्ल

वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी जितनी कबीर की है, उतनी ही तुलसी की है. साथ ही उतनी ही रहीम की और शिक्षा-साहित्य की भी है. यह शहर भारतेंदु हरिश्चंद्र से लेकर आचार्य रामचंद्र शुक्ल का भी है. हिंदी के महान आलोचक और बनारस से गहरा नाता रखने वाले आचार्य रामचंद्र शुक्ल की आज 135वीं जयंती है.

आचार्य रामचंद्र शुक्ल की 135वीं जयंती.

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धर्मनगरी काशी से जुड़े हैं आचार्य शुक्ल
4 अक्टूबर सन 1884 में बस्ती जिले के अगोनां गांव में जन्मे आचार्य शुक्ल ने काशी में हिंदी को समृद्ध करने का काम किया. उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन काल में हिंदी संरक्षण के लिए स्थापित संस्थान नागरी प्रचारिणी सभा के हिंदी शब्द सागर में बतौर सहायक संपादक काम किया. यह जिम्मेदारी उन्हें सन् 1908 में उनकी योग्यता से प्रभावित होकर दी गई थी.

महानायक आचार्य रामचंद्र शुक्ल की प्रतिमा
वाराणसी के भेलूपुर थाना अंतर्गत रविंद्रपुरी पर प्रतिमा किसी और की नहीं बल्कि हिंदी जगत के आचार्य रामचंद्र शुक्ल की है. आज भले ही इस संस्थान की दशा कुछ भी हो लेकिन हिंदी प्रेमी जब भी इस चौराहे से गुजरते हैं तो श्रद्धा के साथ एक बार अपने सिर को जरूर आचार्य जी के सामने नतमस्तक करते हैं.

हिंदी विभाग का सुव्यवस्थित पाठ्यक्रम
आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित मदन मोहन मालवीय और काशी हिंदू विश्वविद्यालय का हिंदी विभाग जो हमारे सामने सुव्यवस्थित पाठ्यक्रम चल रहा है, यह आचार्य राम प्रसाद शुक्ल की ही देन है. आचार्य जी सन् 1903 से लेकर 1908 तक आनंद कादंबिनी के सहायक संपादक थे. तो 1904 से लेकर 1908 तक लंदन मिशन स्कूल में ड्राइंग के अध्यापक रहे. आचार्य रामचंद्र शुक्ल शानदार ड्राइंग भी बनाते थे. उन्होंने माता सीता के वन गमन के साथ बहुत से चित्र बनाए.

नागरी प्रचारिणी पत्रिका के संपादक
समय बीतता गया और धीरे-धीरे उनकी व्यथा पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगी, जिससे उनका यश चारों और फैलने लगा. उन्होंने उस समय हिंदी शब्दकोश का निर्माण किया और उसमें महत्वपूर्ण योगदान निभाया. इसके बाद उन्हें नागरी प्रचारिणी पत्रिका का संपादक भी बना दिया गया.

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में अध्यापक पद पर नियुक्त
मालवीय जी लगातार आचार्य रामचंद्र शुक्ल के लेखों को पढ़ रहे थे. जिससे उन्हें 1919 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी का अध्यापक नियुक्त किया गया, उसके बाद बाबू श्याम सुंदर दास के साथ उन्होंने काम किया. बाबू श्याम सुंदर दास के 1937 में निधन के बाद अपने अंतिम काल तक 1941 तक काशी हिंदू विश्वविद्यालय हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष रहे हैं. यहां पर इन्होंने हिंदी के पाठ्यक्रम को तैयार किया. भारत में जब भी हिंदी की बात तो आचार्य राम प्रसाद शुक्ल की बात जरूर होगी. क्योंकि इन्होंने हिंदी को एक व्यवस्थित ढंग से हमारे सामने प्रस्तुत किया हैं.

हिंदी पाठ्यक्रम के लिखे लेख
आचार्य शुक्ल के सामने सबसे बड़ी जिम्मेदारी यह थी की उन दिनों हिंदी पाठ्यक्रम की कोई पुस्तक नहीं हुआ करती थी. उन्होंने बहुत से लेख हिंदी पाठ्यक्रम के लिखे. हिंदी पाठ्यक्रम को किस तरह से व्यवस्थित किया जाए और भावी पीढ़ी को ध्यान में रखकर पुस्तकों की रचना की जानी चाहिए, क्योंकि भारतेंदु, प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल ये सारे लोग स्वतंत्रता संग्राम की उपज हैं. ऐसे में आने वाली पीढ़ी को आचार्य रामचंद्र शुक्ल के बारे में पढ़ना चाहिए और जानना चाहिए.

आचार्य रामचंद्र शुक्ल नागरी प्रचारिणी सभा में आते-जाते रहे. हिंदी के 11 खंडों में शब्दकोश बनाया. उससे पहले हिंदी का कोई शब्दकोश नहीं था. उसके बाद नागरी प्रचारिणी पत्रिका का भी संपादन शुरू किया और लेख लिखे, जिसमें हिंदी को आगे बढ़ाए जाने की बात निहित थी. तब मालवीय जी ने प्रभावित होकर आचार्य रामचंद्र शुक्ल से आग्रह कर उन्हें हिंदी विभाग में शिक्षक नियुक्त किया. 1919 में बीएचयू के हिंदी विभाग में आचार्य जी ने शिक्षक के रूप में देश को अपनी सेवाएं दी.
-डॉ. मुक्ता, प्रपौत्री, आचार्य रामचंद्र शुक्ल

Intro:धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी जितनी कबीर की है उतनी ही तुलसी की और उतना ही रहीम की शिक्षा और साहित्य यह शहर भारतेंदु हरिश्चंद्र से लेकर आचार्य रामचंद्र शुक्ल का है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल 135 वी जयंती है ऐसे में हिंदी के महान आलोचक को कौन नहीं जानता लेकिन बनारस से इनका गहरा नाता रहा है।

5 अक्टूबर सन 1884 में बस्ती जिले के अगोनां गांव में जन्मे आचार्य शुक्ल ने काशी में हिंदी को समृद्ध किया उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन काल में हिंदी संरक्षण के लिए स्थापित संस्थान नागरी प्रचारिणी सभा के हिंदी शब्द सागर को बतौर सहायक संपादक समृद्ध किया यह जिम्मेदारी उन्होंने 1908 में उनकी योग्यता से प्रभावित होकर दी गई थी।


Body:वाराणसी के भेलूपुर थाना अंतर्गत रविंद्रपुरी पर एक आदम कद प्रतिमा किसी और की नहीं बल्कि हिंदी को संरक्षण करने वाले इस महानायक आचार्य रामचंद्र शुक्ल की है चौराहे पर इनकी प्रतिमा भी लगी है आज भले ही इस संस्थान की दशा कुछ हो लेकिन हिंदी प्रेमियों जब भी इस चौराहे से गुजरते हैं व श्रद्धा के साथ एक बार अपने सिर को जरूर आचार्य जी के सामने नतमस्तक कर लेते हैं।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल और पंडित मदन मोहन मालवीय और काशी हिंदू विश्वविद्यालय का हिंदी विभाग आज हमारे सामने जो हिंदी का एक सुव्यवस्थित पाठ्यक्रम है यह आचार्य राम प्रसाद शुक्ल की देन है। आचार्य जी 1903 से लेकर 1908 तक आनंद कादंबिनी के सहायक संपादक थे तो 1904 से लेकर 1908 तक लंदन मिशन स्कूल में ड्राइंग के अध्यापक रहे। आचार्य रामचंद्र शुक्ल एक शानदार ड्राइंग भी बनाते थे उन्होंने माता सीता के वन गमन के साथ बहुत से चित्र बनाएं जो विश्व पटल भी आज भी उनकी व्यक्तित्व को निखारती है

समय बीतता गया और धीरे-धीरे उनकी व्यथा पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगी जिससे उनका यशचारों और फैलने लगा ऐसे में उन्होंने शब्द सागर में गागर भरने का जिम्मा दिया गया जिससे वह सफलतापूर्वक उन्होंने पूरा किया। श्यामसुंदर दास के सानिध्य में उन्होंने उस समय हिंदी शब्दकोश का निर्माण किया और उसमें महत्वपूर्ण योगदान निभाया। इसके बाद उन्हें नागणी प्रचारिणी पत्रिका का संपादक भी बना दिया गया।

मालवीय जी लगातार आचार्य रामचंद्र शुक्ल के लेखों को पढ़ रहे थे जिसे उन्होंने 1919 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय मैं हिंदी का अध्यापक नियुक्त किया उसके बाद बाबू श्याम सुंदर दास के साथ उन्होंने काम किया बाबू श्याम सुंदर दास की 1937 में निधन काल के बाद अपने अंतिम काल तक 1941 तक काशी हिंदू विश्वविद्यालय हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष रहे हैं और यहां पर इन्होंने हिंदी के पाठ्यक्रम को तैयार किया। भारत में जब भी हिंदी की बात होगी हिंदुस्तान की बात होगी तो आचार्य राम प्रसाद शुक्ल की बात जरूर होगी क्योंकि इन्होंने हिंदी को एक व्यवस्थित ढंग से हमारे सामने प्रस्तुत किया।


Conclusion:आचार्य रामचंद्र शुक्ल 135 वी जयंती पर ईटीवी भारत अपनी विशेष कार्यक्रम के तक पहुंचा उनकी प्रपौत्री साहित्यकार डॉ मुक्ता के पास। उन्होंने बताया आचार्य रामचंद्र शुक्ल नागरी प्रचारिणी सभा में आते जाते रहे। हिंदी शब्द सागर का उन्होंने उसमें संपादन का पदभार संभाला श्यामसुंदर दास जी के साथ इस कार्य को उन्होंने पूरा किया।

साहित्यकार मुक्ता ने बताया यहां पर हिंदी 11 खंडों में शब्दकोश उससे पहले हिंदी का कोई शब्दकोश नहीं था। उसके बाद नागरी प्रचारिणी पत्रिका का भी संपादन शुरू किया।उन्होंने लेख लिखा। जिसमें हिंदी को किस तरह से आगे बढ़ाया जाए। तब मालवीय जी प्रभावित होकर आचार्य रामचंद्र शुक्ल से आग्रह किया। उन्हें हिंदी विभाग में शिक्षक नियुक्त किया। 1919 में बीएचयू के हिंदी विभाग में आचार्य जी ने शिक्षक के रूप में देश को अपनी सेवा दिया।

आचार्य शुक्ल के सामने सबसे बड़ी जिम्मेदारी उन दिनों हिंदी पाठ्यक्रम की कोई पुस्तक नहीं हुआ करती थी। उन्होंने बहुत से लेख हिंदी पाठ्यक्रम को ले करके लिखा। हिंदी पाठ्यक्रम को किस तरह से व्यवस्थित किया जाए। भावी पीढ़ी को किस तरह से हिंदी के ध्यान में रखकर की पुस्तकों की रचना हुई। क्योंकि देखिए भारतेंदु, प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल यह सारे लोग स्वतंत्र संग्राम की उपज है। ऐसे में आने वाली पीढ़ी को आचार्य रामचंद्र शुक्ल के बारे में पढ़ना चाहिए और जाना चाहिए।

बाईट :--- डॉ मुक्ता,प्रपौत्री,
आचार्य रामचंद्र शुक्ल

नोट आचार्य रामचंद्र शुक्ल की जयंती पर यह खबर विशेष कहां गया था करने को।

अशुतोष उपाध्याय। 9005099685
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