वाराणसी: जिले के काशी हिंदू विश्वविद्यालय के विज्ञान संस्थान स्थित जंतु विज्ञान विभाग में शताब्दी वर्ष पुरातन छात्र सम्मेलन का आयोजन किया गया. यह कार्यक्रम 2 दिनों तक चला. इसका समापन रविवार को हो गया. 6 मार्च और 7 मार्च को यह कार्यक्रम हुआ. जंतु विज्ञान विभाग की स्थापना 1921 में हुई थी. विश्व पटल पर विज्ञान एवं अन्य प्रशासनिक क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान के रूप में जाना जाता है. इस विभाग से जुड़े हुए कई विभूतियों को पद्मश्री एसएस भटनागर पुरस्कार, जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार, हरिओम ट्रस्ट पुरस्कार, विज्ञान रत्न प्रतिष्ठित राष्ट्रीय विज्ञान और चिकित्सा की फेलोशिप से सम्मानित भी किया जा चुका है.
उद्घाटन सत्र को नोबेल पुरस्कार विजेता ने किया संबोधित
कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर ब्रूस ए बटलर ने संबोधन दिया. उनका विषय ह्यूमन प्रतिरोधक क्षमता था. जिसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला था. आज भी लोग इस पर कार्य कर रहे हैं. नोबेल पुरस्कार विजेता ने अपने शोध की बारीकियों से लेकर उसके विभिन्न चरणों पर विस्तार से चर्चा की और बताया कि कैसे उनका शोध अंजाम तक पहुंचा.
ऑनलाइन जुड़ें छात्र
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राकेश भटनागर ने प्रोफेसर बटलर का परिचय दिया. उन्होंने उनकी उपलब्धियों पर भी चर्चा की. वैज्ञानिक व नोबेल विजेता के व्याख्यान से निश्चित तौर पर संस्थान के छात्रों एवं शिक्षकों को नई ऊर्जा का प्रोत्साहन मिला. कार्यक्रम में जंतु विज्ञान विभाग के वरिष्ठ सहायक सदस्य, शिक्षक, छात्र व देश-विदेश से सैकड़ों छात्र ऑनलाइन माध्यम से जुड़े.
कोविड के नियमों का हुआ पालन
प्रोफेसर एस के त्रिगुन ने बताया कि यह शताब्दी वर्ष है. 1921 में इस डिपार्टमेंट की स्थापना हुई थी. शताब्दी वर्ष को लेकर हमारे मन में बहुत ही उत्साह रहा. दुर्भाग्य से इस कार्यक्रम को ऑनलाइन करना पड़ रहा है. विदेशों से ऑनलाइन माध्यम से कई छात्र जुड़े. यहां के छात्र कोविड गाइड लाइन का पालन करते हुए ऑफलाइन भी जुड़े रहे.
छात्रों में भरा उत्साह
प्रोफेसर त्रिगुन ने बताया कि नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर ब्रूस का संबोधन 1 घंटे का था. पूरा हॉल उनको सुनने के लिए भरा हुआ था. बीएससी एमएससी के छात्रों को उनको सुनने का मौका मिला. बहुत कुछ सीखने का मौका मिला. उनका विषय इम्यूनिटी पर था. इसमें बताया गया कि हम अपनी इम्यूनिटी को कैसे बढ़ा सकते हैं. कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से कैसे लड़ सकते हैं. इसी विषय पर उनको नोबेल पुरस्कार भी मिला था.