उन्नाव: जीवन जीने के लिए सबसे मूलभूत चीजों में पीने का साफ पानी सबसे पहले आता है और ये सबका मूलभूत अधिकार है. उन्नाव में आज भी कई गांव ऐसे हैं, जहां के बाशिंदे पीने के साफ पानी के लिए आज भी कई किलोमीटर पैदल चलने के लिए मजबूर हैं. आजादी के 74 साल बीत जाने के बाद भी इन गांवों के लोग पीने के साफ पानी के लिए तरस रहे हैं. 4 से 5 किलोमीटर चलकर जल निगम के एक मात्र स्टैंडपोस्ट पर कई गांव के बाशिंदे आज भी साफ पानी के लिए लाइन लगाने को मजबूर हैं.
हैण्डपम्प से पानी निकालते ही पड़ जाता है पीला
उन्नाव मुख्यालय से महज 8 किलोमीटर दूर बाबाखेड़ा, फत्तेपुर, कुशाल खेड़ा, हैबतपुर, कटहादल नरायणपुर, पपरिया, घोंघी रौतापुर और मसवासी जैसे कई गांव के लोगों को आज भी पीने का साफ पानी मयस्सर नहीं हो सका है. इन सभी गांवों में और लोगों के घरों में हैण्डपम्प तो लगे हैं, लेकिन इन सभी हैण्डपम्प से पानी के नाम पर सिर्फ जहर ही निकलता है, जिसे पीकर इंसान सिर्फ बीमार होता है. इन हैण्डपम्पों से निकलने वाला पानी इतना खतरनाक है कि कई ग्रामीण तो दिव्यांग तक हो चुके हैं. हैण्डपम्प से निकलने वाला पानी ऐसा कि बर्तन में भरते ही पीले रंग का निशान आ जाता है. अगर इस पानी को थोड़ी देर किसी बर्तन में भरकर रख दिया जाए तो उस बर्तन में पीले रंग की एक मोटी परत जम जाती है. हैण्डपम्प से निकलने वाले इस पानी में फ्लोराइड के साथ ही क्रोमियम आर्सेनिक जैसे खतरनाक तत्व भी मौजूद हैं, जो एक अच्छे खासे आदमी को बीमार बना सकते हैं.
औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला गंदा पानी है समस्या
यहां का पानी खराब होने का सबसे बड़ा कारण आस-पास बनी औद्योगिक इकाइयों द्वारा छोड़ा गया गंदा पानी है, जो इन गांवों के खेतों में भरा रहता है. इन सभी गांव के लोगों ने बताया कि सैकड़ों बार उन्होंने इस समस्या को लेकर जिम्मेदारों को अवगत करवाया है, लेकिन किसी ने उनकी इस समस्या की ओर ध्यान देना उचित नहीं समझा. इन सभी गांवों के हैंडपंपों से निकलने वाले पानी ने अब तक कई लोगों को दिव्यांग बना दिया है.
जहरीला पानी पीने से ये लोग हो चुके हैं दिव्यांग
हैबतपुर गांव के रहने वाले हनुमान प्रसाद बताते हैं कि लगातार हैण्डपम्प का पानी इस्तेमाल करने के कारण अब वह बिना डंडे का सहारा लिए चल नहीं सकते हैं. उन्होंने बताया कि उनके पैर की हड्डियां टेढ़ी होकर मुड़ गई हैं और पंजे सिकुड़ कर विकृत हो गए हैं. जिस कारण अब चलने- फिरने में उन्हें दिक्कत होती है. हनुमान बताते हैं कि पानी खराब होने का जब उन्हें एहसास हुआ तब तक बहुत देर हो चुकी थी. डॉक्टर भी अब जवाब दे चुके हैं. इस गांव की रहने वाली कुसुमा भी ऐसी ही एक समस्या से ग्रसित हैं. कुसुमा को भी इसी वजह से चलने फिरने में दिक्कत होती है. कुसुमा के गले में घेंघा जैसी बीमारी ने घर कर लिया हैं, जिस कारण गर्दन में लगातार सूजन बनी रहती है. कुसुमा ने बताया कि जब वह इस गांव में ब्याह कर आई थीं तब सब कुछ सही था, लेकिन आज शादी के इतने दिनों बाद अपने पैरों पर खड़ा होना भी मुश्किल हो गया है. हनुमान प्रसाद और कुसुमा तो इन गांवों में रहने वालों लोगों की एक बानगी मात्र हैं. इन गांवों में कई घरों के बच्चे ऐसे हैं जो जन्म से ही दिव्यांगता की तरफ जा रहे हैं.
5 से 6 किलोमीटर दूर आकर लेना पड़ता है पानी
इन गांवों के लोगों के लिए साल 2010 में बाबाखेड़ा गांव के बाहर जलनिगम ने एक स्टैंडपोस्ट लगाया था, जो आज भी इन गांवों के लोगों के लिए पीने के पानी का एकमात्र साधन है. जहां पीने का साफ पानी भरने के लिए सैकड़ों की संख्या में ग्रामीणों की लाइन लगती है. जलनिगम के इस स्टैंडपोस्ट पर लोग कतार में खड़े होकर पानी लेने के लिए अपनी बारी का इंतजार करते हैं. लोग पैदल या साइकिल से 5 से 6 किलोमीटर दूर आकर पानी ले जाते हैं. जिस दिन इस स्टैंडपोस्ट की टोंटी से जलधार नहीं निकलती तो फिर लोग मजबूरन पानी खरीदकर पीने के लिए मजबूर हो जाते हैं.
समस्या का जल्द होगा निस्तारण
इन गांवों में रहने वालों की इस दयनीय हालत को लेकर जब मुख्य विकास अधिकारी उन्नाव से इस बारे में बात की गई तो उन्होंने बताया कि जल निगम के एक्सईएन से बात हुई है. उन्होंने बताया है कि 2003-04 में इसका सर्वे करवाया गया था, जिसमें 1455 बस्तियां पाई गई थीं, जहां पर फ्लोराइड की समस्या है. उनका कहना था कि सर्विस वाटर स्कीम के माध्यम से इसका निस्तारण किया जा सकता है. मुख्य विकास अधिकारी ने बताया कि इसके लिए पत्राचार भी किया गया है और स्कीम भी बनी हुई है, जिससे इसका जो भी निस्तारण जल्द से जल्द किया जा सके.