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उन्नाव: लकड़ी के पुल के सहारे नदी पार करने को मजबूर ग्रामीण - unnao news

उन्नाव जिले के मियागंज के बनौनी रामपुर गांव में कोई पुल न होने के कारण लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था. गांव वालों ने मिलकर गांव के किनारे शारदा नहर पर एक लकड़ी का पुल बनाया और उसी से नदी पार करते हैं.

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लकड़ी के पुल के सहारे नदी पार करने को मजबूर ग्रामीण
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Published : Jan 17, 2020, 6:51 AM IST

उन्नाव: सूबे के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ भले ही प्रदेश में चौमुखी विकास कराने का दावा कर रहे हों, लेकिन उन्नाव के मियागंज के बनौनी रामपुर गांव को देखने के बाद मुख्यमन्त्री के सभी दावों की पोल खुलती नजर आती है. गांव में आज भी यहां के लोग अपनी जान जोखिम में डालकर लकड़ी के पुल के सहारे ही आवागमन करते हैं.

लकड़ी के पुल के सहारे नदी पार करने को मजबूर ग्रामीण.

लकड़ी का यह पुल गांव के लोगों ने मिलकर बनाया है. गांव के किनारे शारदा नहर पर बने लकड़ी के पुल से रोजाना स्कूली छात्र से लेकर महिलाएं और नौकरी पेशा लोग रोजमर्रा के काम से निकलते हैं, लेकिन हैरत की बात तो यह की इनकी सुनने वाला कोई नहीं.

जिले के मियागंज ब्लॉक का बनौनी रामपुर एक ऐसा गांव है, जो ठीक शारदा नदी के मुहाने पर बसा है. नदी के किनारे बसे होने की वजह से गांव के लोगों को अपने रोजमर्रा के कामों के लिए नदी पार करके जाना पड़ता था. जो कि किसी जोखिम से कम नहीं था.

शायद ही कोई ऐसा आलाधिकारी या नेता बचा हो जिसके चौखट पर ग्रामीणों ने नाक न रगड़ी हो.किसी को इनकी बेबसी पर दया नहीं आई. आखिरकार थक हारकर ग्रामीणों ने ठानी की वह पुल खुद ही बनाएंगे. महज 12 दिनों में इन ग्रामीणों ने चंदा इकट्ठा कर लकड़ी का ये पुल तैयार कर डाला.

900 परिवारों ने खुद बांस का पुल बना डाला और अपने रोजमर्रा के काम शुरु कर दिए. बांस का पुल भी महज खानापूर्ति से ज्यादा कुछ नहीं. जान जोखिम में डालकर निकलते लोगों को इस बात का इल्म है कि यह पुल कभी भी टूट सकता है. ग्रामीण आज भी पुल बनाने की मांग कर रहे हैं.

उन्नाव: सूबे के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ भले ही प्रदेश में चौमुखी विकास कराने का दावा कर रहे हों, लेकिन उन्नाव के मियागंज के बनौनी रामपुर गांव को देखने के बाद मुख्यमन्त्री के सभी दावों की पोल खुलती नजर आती है. गांव में आज भी यहां के लोग अपनी जान जोखिम में डालकर लकड़ी के पुल के सहारे ही आवागमन करते हैं.

लकड़ी के पुल के सहारे नदी पार करने को मजबूर ग्रामीण.

लकड़ी का यह पुल गांव के लोगों ने मिलकर बनाया है. गांव के किनारे शारदा नहर पर बने लकड़ी के पुल से रोजाना स्कूली छात्र से लेकर महिलाएं और नौकरी पेशा लोग रोजमर्रा के काम से निकलते हैं, लेकिन हैरत की बात तो यह की इनकी सुनने वाला कोई नहीं.

जिले के मियागंज ब्लॉक का बनौनी रामपुर एक ऐसा गांव है, जो ठीक शारदा नदी के मुहाने पर बसा है. नदी के किनारे बसे होने की वजह से गांव के लोगों को अपने रोजमर्रा के कामों के लिए नदी पार करके जाना पड़ता था. जो कि किसी जोखिम से कम नहीं था.

शायद ही कोई ऐसा आलाधिकारी या नेता बचा हो जिसके चौखट पर ग्रामीणों ने नाक न रगड़ी हो.किसी को इनकी बेबसी पर दया नहीं आई. आखिरकार थक हारकर ग्रामीणों ने ठानी की वह पुल खुद ही बनाएंगे. महज 12 दिनों में इन ग्रामीणों ने चंदा इकट्ठा कर लकड़ी का ये पुल तैयार कर डाला.

900 परिवारों ने खुद बांस का पुल बना डाला और अपने रोजमर्रा के काम शुरु कर दिए. बांस का पुल भी महज खानापूर्ति से ज्यादा कुछ नहीं. जान जोखिम में डालकर निकलते लोगों को इस बात का इल्म है कि यह पुल कभी भी टूट सकता है. ग्रामीण आज भी पुल बनाने की मांग कर रहे हैं.

Intro:उन्नाव--सूबे के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ भले की प्रदेश में चौमुखी विकास कराने का दावा कर रहे हो लेकिन उन्नाव के मियागंज के बनौनी रामपुर गांव को देखने के बाद मुख्यमन्त्री के सभी दांवे बेमानी लगने लगेंगे क्योकि आज भी यहां के लोग अपनी जान जोखिम में डालकर लकड़ी के पुल के सहारे ही आवागमन करते है और लकड़ी का ये पुल भी किसी सरकार ने नही बल्कि गांव के लोगो ने मिलकर बनाया है गांव के किनारे शारदा नहर पर बने लकड़ी कर पुल से रोजाना स्कूली छात्र से लेकर महिलाये और नौकरी पेशा लोग रोजमर्रा के काम से जान जोखिम में डालकर निकलते है लेकिन हैरत की बात तो ये की इनकी सुनने वाला कोई नही है।
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उन्नाव के मियागंज ब्लाक का बनौनी रामपुर एक ऐसा गाँव है जो ठीक शारदा नदी के मुहाने पर बसा है और नदी के किनारे बसे होने की वजह से गांव के लोगो को अपने रोज मर्रा के कामो के लिए नदी पार करके जाना पड़ता था जो कि किसी जोखिम से कम नही था पिछले 10 सालों में नदी पार करते समय ना जाने कितनो ने अपने अज़ीज़ों को गवां दिया शायद ही कोई ऐसा आलाधिकारी या नेता बचा हो जिसके चौखट पर ग्रामीणों ने नाक न रगड़ी हो लेकिन किसी को इनकी बेबसी पर दया नही आई आखिरकार थक हारकर ग्रामीणों ने ठानी की वह अपने सपनो का पुल खुद ही बनाएंगे और महज 12 दिनों में इन ग्रामीणों ने चंदा इकट्ठा कर लकड़ी का ये पुल तैयार कर डाला।

बाईट--शिवप्यारी (ग्रामीण)Conclusion:
-इस बात का अंदाजा आप इसी से लगा सकते है जिस ठंड में लोगो को पानी मे हाँथ डालने की हिम्मत नही होती उसी नदी को दिन में 4 बार तैर कर पर करना पड़ता था आखिर बर्दाश्त की जब इंतहा हो गई तो इन 900 परिवारों ने खुद बाँस का पल बना डाला और सुरु किये अपने रोज मर्रा के काम हालांकि इन ग्रामीणों के हौसले को सलाम करने का मन करता है लेकिन बाँस का पुल भी महज खानापूर्ति से ज्यादा कुछ नहीं जान जोखिम में डालकर निकलते लोगो को इस बात का ईल्म है कि ये कभी भी धरसाई हो सकता है लेकिन इसे बनाकर ग्रामीणों ने नेताओ और प्रशासन के मुंह पर करारा तमाचा जरूर मारा है हालांकि ग्रामीण आज भी पुल बनाने की मांग कर रहे है।

बाईट--भिखारी (ग्रामीण)

वीरेंद्र यादव
उन्नाव
मो-9839757000
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