उन्नाव: जिले में यूपी का पहला और देश का दूसरा एफएसटीपी (अपशिष्ट शोधन संयंत्र) प्लांट बनकर तैयार हो चुका है. इस प्लांट के बनने के बाद अब जिले को साफ और स्वच्छ रखने में बड़ी मदद मिलेगी. यह प्लांट घरों में बने सीवर टैंक के स्लज को ट्रीट करता है और सॉलिड और लिक्विड को अलग करता है, जिसके बाद बचे सॉलिड वेस्ट का इस्तेमाल किसान खाद के रूप में कर रहे हैं, जबकि बचे लिक्विड का इस्तेमाल खेतों की सिंचाई के लिए किया जा रहा है.
सौर ऊर्जा से होगा प्लांट का संचालन
इस प्लांट की खास बात यह है कि इसके संचालन के लिए बिजली का नहीं बल्कि सौर ऊर्जा का इस्तेमाल किया जा रहा है. इस प्लांट में जब स्लज जाता है तो उसका बीओडी 10 हजार मिलीग्राम प्रति लीटर होता है, जबकि ट्रीट होने के बाद 10 मिलीग्राम प्रति लीटर रह जाता है. इस प्लांट का निर्माण अमृत कार्यक्रम के तहत 4.55 करोड़ की लागत से जल निगम के द्वारा किया गया है. इस प्लांट का निर्माण जनवरी 2019 में शुरू हुआ, जो अगस्त 2019 में बनकर तैयार हो चुका था.
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FSTP प्लांट कैसे करता है काम
उन्नाव के हुसैन नगर गांव में बने इस एफएसटीपी प्लांट का सफल ट्रायल हो चुका है. जनपद में कहीं भी सीवर लाइन नहीं है, जिस कारण लोगों ने अपने घरों में ही सेफ्टी टैंक बनवा रखे हैं, जब घरों में बने यह टैंक भर जाते हैं तो उन्हें खाली करने के लिए नगरपालिका से या निजी कंपनियों से टैंकर मंगवा कर घरों के टैंक से टैंकर में स्लज स्टोर किया जाता है, जिसके बाद यह टैंकर उस स्लज को ले जाकर नाले नालियों और खेतों में फेंक कर गंदगी फैलाते हैं.
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इस प्लांट के बनने के बाद अब सभी टैंकर उस घरों से निकलने वाले स्लज को लाकर यहां बने स्क्रीन चेंबर में खाली करते हैं. इसके बाद इसे थिकनिंग टैंक में ट्रांसफर कर 3 दिन तक रखा जाता है, जिसके बाद इस स्लज को थिकनिंग टैंक से स्टेबलाइजेशन रिएक्टर में भेजकर चार दिन तक ट्रीट किया जाता है. अगले स्टेप में स्क्रू प्रेस के द्वारा ट्रीट किया जाता है. इस माध्यम में लिक्विड और सॉलिड पूरी तरह से अलग हो जाता है.
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वहीं अगले स्टेप में स्लज ड्राइंग बेड में अलग हुए सॉलिड को 8 से 10 दिन तक रखा जाता है. इस प्रक्रिया के बाद स्लज को इक्वालाईजेशन टैंक में एक दिन तक ट्रीट किया जाता है. वहीं दूसरी और बचे लिक्विड को अगले चेंबर इंटीग्रेटेड स्टेलर में भेजकर इसे और ट्रीट किया जाने के बाद लिक्विड स्लज को प्लांटेड ग्रेवल फिल्टर में ट्रीट किया जाता है.
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इस स्टेप में स्लज को ट्रीट करने के लिए पेड़ों का इस्तेमाल किया जाता है. यहां से ट्रीट होकर आगे बढ़ रहे लिक्विड को प्रेशर सैंड फिल्टर से होकर गुजार जाता है, जिसके बाद एक्टीवेटेड कार्बन फिल्टर से लिक्विड वेस्ट गुजरता है. अंत में पॉलिशिंग पाउंड में इस बचे लिक्विड को स्टोर कर सिंचाई में इस्तेमाल किया जा रहा है. इस प्लांट में कई तरह के पेड़-पौधे लगाए गए हैं, जिनकी सिंचाई टपक सिंचाई प्रणाली के तहत इस ट्रीटेड लिक्विड स्लज से की जा रही है. साथ ही अलग हुए सॉलिड का इस्तेमाल खाद के रूप में हो रहा है.
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इस प्लांट की सबसे खास बात यह है कि इस प्लांट के संचालन में किसी तरह की बिजली का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है. करीब 13 किलो वाट के इस प्लांट का संचालन सौर ऊर्जा के माध्यम से किया जा रहा है. इस प्लांट के संचालन के लिए प्लांट के अंदर ही 25 किलो वाट का सोलर प्लांट लगाया गया है. इस प्लांट के संचालन के लिए 8 कर्मियों को तैनात किया गया है.