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सरकार...'100 शैय्या' पर लेटा है अस्पताल, बस 'नाम' पर रुका इलाज

कोरोना संक्रमण काल के दौरान एक ओर जहां प्रत्येक नागरिक बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की बाट जोह रहा है तो वहीं दूसरी ओर उन्नाव जिले के मौरावां में करीब 40 करोड़ की लागत से बना 100 बेड का अस्पताल बनने के बाद विवादों से घिर चुका है. अस्पताल के नाम को लेकर प्रशासन और जमीन देने वाले ट्रस्टी में ठन गई है. ट्रस्टी ने मामले को कोर्ट ले जाने को कहा है.

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Published : Jun 14, 2021, 4:39 AM IST

ट्रस्टी ने की नाम बदलने की मांग.
ट्रस्टी ने की नाम बदलने की मांग.

उन्नाव: एक ओर जहां जनपद में बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव है तो वहीं दूसरी ओर मौरावां में नवनिर्मित '100 शैय्या' अस्पताल शुरू होने से पहले ही विवादों से घिर गया है. मामला और भी ज्यादा गंभीर इसलिए हो गया कि गत 28 सितंबर 2020 में इसी अस्पताल का लोकार्पण भी खुद मुख्यमंत्री के हाथों अधिकारियों ने करवा दिया था.

बता दें कि इस अस्पताल का निर्माण मौरावां के एक तालुकेदार ट्रस्टी विवेक सेठ द्वारा दान दी गई 14 बीघे जमीन पर किया गया है. इस अस्पताल के कागजी कोरम को पूरा करने में प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही अब सरकार के गले की फांस बन गई है, क्योंकि दानदाता से 14 बीघे जमीन लेकर अस्पताल निर्माण की आजतक कोई भी कागजी कार्यवाही पूरी नहीं की गई, जबकि दान में मिली इसी जमीन पर कई वर्षों तक चले निर्माण कार्य के बाद करीब 40 करोड़ की लागत से बना यह अस्पताल अब बन कर तैयार है, लेकिन जमीन को अस्पताल के या सरकार के नाम किये जाने को कोई कार्रवाई आज तक पूरी ही नहीं की गई, जिससे बिल्डिंग निर्माण के बाद अब अस्पताल भवन के हैंडओवर की प्रक्रिया भी अधर में लटक गई है.

उन्नाव के मौरावां में बना है 100 शैय्या अस्पताल.

दरअसल, अस्पताल निर्माण के बाद अब अस्पताल के चर्चा में आने के पीछे की वजह अस्पताल का नाम है, जिसको लेकर जमीन दान देने वाले तालुकेदार और ट्रस्टी ने आपत्ति दर्ज करवाई है और आपत्ति का निराकरण न किये जाने पर न्यायालय की शरण में भी जाने की बात कही है. अब देखना यह है कि यह विवाद कब और कैसे सुलझता है और आसपास के लाखों की आबादी जो बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की आस लगा कर बैठी है, उसकी आस कब पूरी होगी.

इसलिए आया विवादों में
इस अस्पताल के विवादों से घिरने की मुख्य वजह इस अस्पताल का नाम है. दरअसल, इस अस्पताल का निर्माण स्थानीय तालुकेदार विवेक सेठ द्वारा अपने 'मेला रामलीला मौरावां ट्रस्ट' से दान दी गई जमीन पर किया गया है. जमीन दान देते समय विवेक सेठ ने सरकार और प्रशसनिक अधिकारियों के सामने दो शर्ते रखी थीं. पहली शर्त में विवेक सेठ ने अस्पताल का नाम अपने पूर्वजों के नाम पर रखे जाने की बात कही थी, जबकि दूसरी शर्त में कहा था कि अस्पताल को दान दी गई जमीन का इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ अस्पताल और स्वास्थ्य कार्यों के लिए ही किया जाएगा. ऐसा न होने पर जमीन स्वतः ही ट्रस्ट के पास वापस आ जाएगी. तत्कालीन प्रशासनिक अधिकारियों ने मौखिक सहमति देकर बिल्डिंग निर्माण कार्य शुरू करवा दिया था. समय बीतता गया अधिकारी बदलते गए, अस्पताल का निर्माण कार्य भी पूरा हो गया, लेकिन ट्रस्ट से जमीन लेने की कोई भी कागजी प्रक्रिया पूरी नहीं की गई. इसके साथ ही जो भी शर्तें दानकर्ता और सरकार के बीच हुईं थी वो भी सब हवा-हवाई हो गईं.

निर्माण पूरा होते ही ट्रस्टी ने उठाये सवाल
उन्नाव के मौरावां में 100 बेड के अस्पताल का निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका है. मेला रामलीला मौरावां ट्रस्ट से दान में मिली 14 बीघे जमीन पर अस्पताल को बनाने में करीब 40 करोड़ रुपये का खर्च हुआ है. अधिकारियों की लापरवाही का आलम यह है कि जिले के जिम्मेदार अधिकारियों ने सितंबर 2020 में इस अस्पताल का लोकार्पण भी खुद सीएम योगी से करवा दिया.

उपचुनाव से पहले कराया लगा लोकार्पण
दरअसल, बांगरमऊ विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव घोषित होने से ठीक पहले हुई जनसभा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से इस अस्पताल का लोकार्पण भी करा दिया गया था. लोकार्पण के बाद जब अस्पताल का नाम जमीन दान देने वाले ट्रस्टी विवेक सेठ के परिजनों के नाम पर नहीं रखा गया तो उन्होंने इस बात का विरोध कर दिया.

पत्र लिखकर की कागजी कार्यवाही पूरी करने की मांग
विवेक सेठ ने जिलाधिकारी को पत्र लिखकर अस्पताल को दान दी गई जमीन की कागजी कार्यवाही पूर्ण की जाए और ट्रस्ट से जमीन लेते समय जो शर्तें थी उन्हें भी पूरा करने की बात कही, लेकिन जिलाधिकारी पूरे मामले में लापरवाही बरतते दिखे. दानकर्ता तालुकेदार विवेक सेठ ने बताया कि यदि इस मामले पर जिले के प्रशासनिक अधिकारी कोई ठोस कदम नहीं उठाते तो वह मजबूरन न्यायालय की शरण लेंगे.

अस्पताल में कोविड वार्ड का किया जा चुका है उद्घाटन
बनते ही विवादों में घिरे इस 100 बेड के अस्पताल को कोविड संक्रमण काल के दौरान आनन-फानन में 30 मरीजों के लिए अस्थाई तौर पर शुरू किया गया. बीती 17 मई को प्रमुख सचिव शहरी एवं नियोजन दीपक कुमार ने निरीक्षण के बाद इस अस्पताल में बनाए गए कोविड हॉस्पिटल का फीता काटकर शुभारंभ किया गया था. इतना सब होने के बाद भी प्रशासनिक अधिकारी अस्पताल को लेकर जो भी अनुबंध किया जाना है, वो अभी तक नहीं करवा रहे हैं. यहीं नही ट्रस्टी द्वारा जमीन दान देते समय जो शर्तें रखी गईं थी वो भी नहीं पूरी की जा रही हैं, जिसको लेकर अस्पताल बनने के बाद विवादों से घिर गया है.

ट्रस्टी ने की नाम बदलने की मांग.
ट्रस्टी ने की नाम बदलने की मांग.

मांगें न मानने पर जाएंगे कोर्ट
जमीन दान देने वाले ट्रस्टी विवेक सेठ की अगर मांगें नहीं मानी जाती तो उन्होंने न्यायालय की शरण में जाने की बात कही है. यदि इस अस्पताल का मामला न्यायालय की चौखट पर पहुंचा तो बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं का इंतजार कर रहे लोगों का इंतजार और लंबा होने वाला है।

जिलाधिकारी की करनी व कथनी में फर्क
वहीं इस पूरे मामले को लेकर जब जिलाधिकारी उन्नाव रविन्द्र कुमार से बात की गई तो उन्होंने मामले पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया. वहीं कुछ दिनों पूर्व इसी ट्रस्ट की जमीन पर हो रहे अवैध निर्माण के मामले में जिलाधिकारी महोदय ने कहा था कि किसी ट्रस्ट की जमीन पर या किसी ऐसी जमीन पर जिस पर किसी का अधिकार न हो उस पर कोई भी निर्माण नहीं हो सकता, चाहे जिस प्रकार का हो.

जिलाधिकारी महोदय के इस बयान को देखें तो 40 करोड़ की लागत से बना यह पूरा अस्पताल ही अवैध निर्माण हो गया. हालाकिं जिस मामलों को त्वरित एक्शन के साथ निस्तारित किया जाना चाहिए, उस पर सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही देखने को मिल रही है. जिस कारण अस्पताल की बिल्डिंग का हैंडओवर नहीं हो पा रही है, जिसका खामियाजा सिर्फ और सिर्फ आम जनमानस को उठाना पड़ रहा है.

उन्नाव: एक ओर जहां जनपद में बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव है तो वहीं दूसरी ओर मौरावां में नवनिर्मित '100 शैय्या' अस्पताल शुरू होने से पहले ही विवादों से घिर गया है. मामला और भी ज्यादा गंभीर इसलिए हो गया कि गत 28 सितंबर 2020 में इसी अस्पताल का लोकार्पण भी खुद मुख्यमंत्री के हाथों अधिकारियों ने करवा दिया था.

बता दें कि इस अस्पताल का निर्माण मौरावां के एक तालुकेदार ट्रस्टी विवेक सेठ द्वारा दान दी गई 14 बीघे जमीन पर किया गया है. इस अस्पताल के कागजी कोरम को पूरा करने में प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही अब सरकार के गले की फांस बन गई है, क्योंकि दानदाता से 14 बीघे जमीन लेकर अस्पताल निर्माण की आजतक कोई भी कागजी कार्यवाही पूरी नहीं की गई, जबकि दान में मिली इसी जमीन पर कई वर्षों तक चले निर्माण कार्य के बाद करीब 40 करोड़ की लागत से बना यह अस्पताल अब बन कर तैयार है, लेकिन जमीन को अस्पताल के या सरकार के नाम किये जाने को कोई कार्रवाई आज तक पूरी ही नहीं की गई, जिससे बिल्डिंग निर्माण के बाद अब अस्पताल भवन के हैंडओवर की प्रक्रिया भी अधर में लटक गई है.

उन्नाव के मौरावां में बना है 100 शैय्या अस्पताल.

दरअसल, अस्पताल निर्माण के बाद अब अस्पताल के चर्चा में आने के पीछे की वजह अस्पताल का नाम है, जिसको लेकर जमीन दान देने वाले तालुकेदार और ट्रस्टी ने आपत्ति दर्ज करवाई है और आपत्ति का निराकरण न किये जाने पर न्यायालय की शरण में भी जाने की बात कही है. अब देखना यह है कि यह विवाद कब और कैसे सुलझता है और आसपास के लाखों की आबादी जो बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की आस लगा कर बैठी है, उसकी आस कब पूरी होगी.

इसलिए आया विवादों में
इस अस्पताल के विवादों से घिरने की मुख्य वजह इस अस्पताल का नाम है. दरअसल, इस अस्पताल का निर्माण स्थानीय तालुकेदार विवेक सेठ द्वारा अपने 'मेला रामलीला मौरावां ट्रस्ट' से दान दी गई जमीन पर किया गया है. जमीन दान देते समय विवेक सेठ ने सरकार और प्रशसनिक अधिकारियों के सामने दो शर्ते रखी थीं. पहली शर्त में विवेक सेठ ने अस्पताल का नाम अपने पूर्वजों के नाम पर रखे जाने की बात कही थी, जबकि दूसरी शर्त में कहा था कि अस्पताल को दान दी गई जमीन का इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ अस्पताल और स्वास्थ्य कार्यों के लिए ही किया जाएगा. ऐसा न होने पर जमीन स्वतः ही ट्रस्ट के पास वापस आ जाएगी. तत्कालीन प्रशासनिक अधिकारियों ने मौखिक सहमति देकर बिल्डिंग निर्माण कार्य शुरू करवा दिया था. समय बीतता गया अधिकारी बदलते गए, अस्पताल का निर्माण कार्य भी पूरा हो गया, लेकिन ट्रस्ट से जमीन लेने की कोई भी कागजी प्रक्रिया पूरी नहीं की गई. इसके साथ ही जो भी शर्तें दानकर्ता और सरकार के बीच हुईं थी वो भी सब हवा-हवाई हो गईं.

निर्माण पूरा होते ही ट्रस्टी ने उठाये सवाल
उन्नाव के मौरावां में 100 बेड के अस्पताल का निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका है. मेला रामलीला मौरावां ट्रस्ट से दान में मिली 14 बीघे जमीन पर अस्पताल को बनाने में करीब 40 करोड़ रुपये का खर्च हुआ है. अधिकारियों की लापरवाही का आलम यह है कि जिले के जिम्मेदार अधिकारियों ने सितंबर 2020 में इस अस्पताल का लोकार्पण भी खुद सीएम योगी से करवा दिया.

उपचुनाव से पहले कराया लगा लोकार्पण
दरअसल, बांगरमऊ विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव घोषित होने से ठीक पहले हुई जनसभा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से इस अस्पताल का लोकार्पण भी करा दिया गया था. लोकार्पण के बाद जब अस्पताल का नाम जमीन दान देने वाले ट्रस्टी विवेक सेठ के परिजनों के नाम पर नहीं रखा गया तो उन्होंने इस बात का विरोध कर दिया.

पत्र लिखकर की कागजी कार्यवाही पूरी करने की मांग
विवेक सेठ ने जिलाधिकारी को पत्र लिखकर अस्पताल को दान दी गई जमीन की कागजी कार्यवाही पूर्ण की जाए और ट्रस्ट से जमीन लेते समय जो शर्तें थी उन्हें भी पूरा करने की बात कही, लेकिन जिलाधिकारी पूरे मामले में लापरवाही बरतते दिखे. दानकर्ता तालुकेदार विवेक सेठ ने बताया कि यदि इस मामले पर जिले के प्रशासनिक अधिकारी कोई ठोस कदम नहीं उठाते तो वह मजबूरन न्यायालय की शरण लेंगे.

अस्पताल में कोविड वार्ड का किया जा चुका है उद्घाटन
बनते ही विवादों में घिरे इस 100 बेड के अस्पताल को कोविड संक्रमण काल के दौरान आनन-फानन में 30 मरीजों के लिए अस्थाई तौर पर शुरू किया गया. बीती 17 मई को प्रमुख सचिव शहरी एवं नियोजन दीपक कुमार ने निरीक्षण के बाद इस अस्पताल में बनाए गए कोविड हॉस्पिटल का फीता काटकर शुभारंभ किया गया था. इतना सब होने के बाद भी प्रशासनिक अधिकारी अस्पताल को लेकर जो भी अनुबंध किया जाना है, वो अभी तक नहीं करवा रहे हैं. यहीं नही ट्रस्टी द्वारा जमीन दान देते समय जो शर्तें रखी गईं थी वो भी नहीं पूरी की जा रही हैं, जिसको लेकर अस्पताल बनने के बाद विवादों से घिर गया है.

ट्रस्टी ने की नाम बदलने की मांग.
ट्रस्टी ने की नाम बदलने की मांग.

मांगें न मानने पर जाएंगे कोर्ट
जमीन दान देने वाले ट्रस्टी विवेक सेठ की अगर मांगें नहीं मानी जाती तो उन्होंने न्यायालय की शरण में जाने की बात कही है. यदि इस अस्पताल का मामला न्यायालय की चौखट पर पहुंचा तो बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं का इंतजार कर रहे लोगों का इंतजार और लंबा होने वाला है।

जिलाधिकारी की करनी व कथनी में फर्क
वहीं इस पूरे मामले को लेकर जब जिलाधिकारी उन्नाव रविन्द्र कुमार से बात की गई तो उन्होंने मामले पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया. वहीं कुछ दिनों पूर्व इसी ट्रस्ट की जमीन पर हो रहे अवैध निर्माण के मामले में जिलाधिकारी महोदय ने कहा था कि किसी ट्रस्ट की जमीन पर या किसी ऐसी जमीन पर जिस पर किसी का अधिकार न हो उस पर कोई भी निर्माण नहीं हो सकता, चाहे जिस प्रकार का हो.

जिलाधिकारी महोदय के इस बयान को देखें तो 40 करोड़ की लागत से बना यह पूरा अस्पताल ही अवैध निर्माण हो गया. हालाकिं जिस मामलों को त्वरित एक्शन के साथ निस्तारित किया जाना चाहिए, उस पर सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही देखने को मिल रही है. जिस कारण अस्पताल की बिल्डिंग का हैंडओवर नहीं हो पा रही है, जिसका खामियाजा सिर्फ और सिर्फ आम जनमानस को उठाना पड़ रहा है.

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