उन्नाव: शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा. कविता की यह पंक्तियां शहीदों की शहादत और उन्हें नमन करने की प्रेरणा देती हैं. आजादी के दीवानों ने ब्रिटिश हुकूमत की जंजीरों से भारत माता को आजादी दिलाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी. देश की जंग-ए-आजादी का वीर सिपाही चंद्रशेखर आजाद का नाम लिए बिना आजादी की कहानी पूरी नहीं हो सकती.
उन्नाव के बदरका गांव में जन्मे चंद्रशेखर आजाद की जन्मस्थली मूलभूत सुविधाओं से पूरी तरह वंचित है. बदरका गांव के लोग आज भी विकास की आस में बैठे हैं. गांव में चंद्रशेखर आजाद की स्मारक है, जो अभी बदहाली की स्थिति में है. मुल्क की आजादी के लिए चंद्रशेखर आजाद ने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया. उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत को जीते जी अपना शरीर भी नहीं छूने दिया. स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े क्रांतिकारी अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद का जन्म 7 जनवरी 1906 को हुआ था. आज उनके जन्मस्थली की हालत बद से बदत्तर हो गई है.
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बदहाली पर आंसू बहा रहा शहीद स्मारक-
इस अमर शहीद का स्मारक भी बदहाली के आंसू बहा रहा है. विकास के नाम पर यहां कुछ भी नहीं है. यहां गंदगी का अंबार लगा हुआ है. वहीं हाल ही में बनवाया गया सभागार भी बदहाल हो चूका है. आलम यह है कि यहां आजाद जी के जन्म दिवस पर ही साफ-सफाई होती है.
विकास की जोह बाट रहा बदरका गांव-
यहां न परिवहन विभाग की कोई बस है और न ही बिजली की ठीक व्यवस्था. पानी की किल्लत यहां हमेशा बनी रहती है. यही नहीं गांव में कोई भी इंटर कॉलेज नहीं है. स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर गांव के लोग सिर्फ झोला छाप डॉक्टरों के ही भरोसे हैं. यहां पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लेकर वर्तमान गृह मंत्री राजनाथ सिंह से लेकर कई महान हस्तियों ने शिरकत की और लोगों को विकास का आश्वासन दिया.