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वाराणसी: सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में वेब स्वाध्यायशाला का आयोजन

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में 'अद्वैत सिद्धि ग्रंथे हेतु स्वरुप विचार' विषय पर दस दिवसीय वेब स्वाध्यायशाला का आयोजन किया गया.

sampurnanand sanskrit university in varanasi
काशी का सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय
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Published : Jun 23, 2020, 6:23 PM IST

वाराणसी: काशी के सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में बुधवार को वेदान्त विभाग के अन्तर्गत 'अद्वैतसिद्धिग्रंथे हेतु स्वरुप विचार' विषय पर दस दिवसीय वेब स्वाध्यायशाला का आयोजन किया गया.

कुलपति प्रो. राजाराम शुक्ल ने 'अद्वैतसिद्धिग्रंथे हेतु स्वरुप विचार' विषय पर आयोजित दस दिवसीय वेब स्वाध्यायशाला के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता की. इस अवसर पर उन्होंने कहा कि साध्य के साधक साधन का परीक्षण आवश्यक होता है, जो साधन न होते हुए साधन जैसा प्रतीत होता है. वह हमारे उद्देश्य का पूरक नहीं होता है. अतः अपने लक्ष्य की सिद्धि के लिए प्रवृत्त मनुष्य को साधन का परीक्षण कर लेना चाहिए.

कुलपति प्रो. शुक्ल ने कहा कि दोषशून्य साधन ही लक्ष्य का साधक होता है, अतः न्याय आदि शास्त्रों में साधनस्वरूप के साथ साधन के दोषों का भी विचार किया गया है. परीक्षित तथा दोषरहित साधन को गृहीत कर जो व्यक्ति अपने लक्ष्य की सिद्धि के लिए प्रवृत्त होता है, वह सफल होता है. इस कार्यशाला में अद्वैतसिद्धिग्रन्थ में प्रतिपादित मिथ्यात्वस्वरूप के साधक हेतुस्वरूप का विचार किया जाएगा.

कार्यशाला में ग्रन्थ का अध्यापन प्रो. रामकिशोर त्रिपाठी ने किया. आचार्य वेदान्त विभाग ने कहा कि इस कार्यशाला के माध्यम से वेदान्त और दर्शन के मूल का ज्ञान प्राप्त होगा. इसमें दोष शून्य साधन ही लक्ष्य का साधक होता है. इसमें न्याय शास्त्र के विविध आयाम पर भी विचार पैदा होंगे. अन्तर्राष्ट्रीय वेब कार्यशाला के प्रारम्भ में वेदान्त के विद्यार्थियों के द्वारा मंगलाचरण, स्वागत भाषण प्रो. सुधाकर मिश्र, धन्यवाद प्रो. शंभू शुक्ल ने किया. इस कार्यशाला में नेपाल, मारीशस, महाराष्ट्र, गुजरात, हिमांचल प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार आदि के लोगों ने सहभाग किया.

वाराणसी: काशी के सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में बुधवार को वेदान्त विभाग के अन्तर्गत 'अद्वैतसिद्धिग्रंथे हेतु स्वरुप विचार' विषय पर दस दिवसीय वेब स्वाध्यायशाला का आयोजन किया गया.

कुलपति प्रो. राजाराम शुक्ल ने 'अद्वैतसिद्धिग्रंथे हेतु स्वरुप विचार' विषय पर आयोजित दस दिवसीय वेब स्वाध्यायशाला के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता की. इस अवसर पर उन्होंने कहा कि साध्य के साधक साधन का परीक्षण आवश्यक होता है, जो साधन न होते हुए साधन जैसा प्रतीत होता है. वह हमारे उद्देश्य का पूरक नहीं होता है. अतः अपने लक्ष्य की सिद्धि के लिए प्रवृत्त मनुष्य को साधन का परीक्षण कर लेना चाहिए.

कुलपति प्रो. शुक्ल ने कहा कि दोषशून्य साधन ही लक्ष्य का साधक होता है, अतः न्याय आदि शास्त्रों में साधनस्वरूप के साथ साधन के दोषों का भी विचार किया गया है. परीक्षित तथा दोषरहित साधन को गृहीत कर जो व्यक्ति अपने लक्ष्य की सिद्धि के लिए प्रवृत्त होता है, वह सफल होता है. इस कार्यशाला में अद्वैतसिद्धिग्रन्थ में प्रतिपादित मिथ्यात्वस्वरूप के साधक हेतुस्वरूप का विचार किया जाएगा.

कार्यशाला में ग्रन्थ का अध्यापन प्रो. रामकिशोर त्रिपाठी ने किया. आचार्य वेदान्त विभाग ने कहा कि इस कार्यशाला के माध्यम से वेदान्त और दर्शन के मूल का ज्ञान प्राप्त होगा. इसमें दोष शून्य साधन ही लक्ष्य का साधक होता है. इसमें न्याय शास्त्र के विविध आयाम पर भी विचार पैदा होंगे. अन्तर्राष्ट्रीय वेब कार्यशाला के प्रारम्भ में वेदान्त के विद्यार्थियों के द्वारा मंगलाचरण, स्वागत भाषण प्रो. सुधाकर मिश्र, धन्यवाद प्रो. शंभू शुक्ल ने किया. इस कार्यशाला में नेपाल, मारीशस, महाराष्ट्र, गुजरात, हिमांचल प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार आदि के लोगों ने सहभाग किया.

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