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सुलतानपुर: डेटा, नेटवर्क और एंड्रॉयड की चुनौतियों से जूझ रहा भारत का भविष्य - ऑनलाइन एजुकेशन

यूपी के सुलतानपुर में बच्चों को ऑनलाइन एजुकेशन में कई प्रकार की समस्याएं आ रही हैं. कई गरीब बच्चों के पास एंड्रॉयड फोन तक नहीं है. वहीं डेली डेटा प्लान और खराब नेटवर्क जिले की एक गंभीर समस्या बनी हुई है. इससे छात्रों की पढ़ाई खासा प्रभावित हो रही है.

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ऑनलाइन एजुकेशन में समस्याएं.
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Published : Sep 9, 2020, 2:47 PM IST

सुलतानपुर: कोविड-19 संक्रमण काल में भले ही ऑनलाइन एजुकेशन के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन सुलतानपुर जिला भारतीय मेधा डेटा नेटवर्क और एंड्रॉयड की अनुपलब्धता की चुनौतियों से आज भी जूझ रहा है. ऑनलाइन एजुकेशन शुरू हुए 6 माह बीत चुके हैं, लेकिन जिले के शिक्षण संस्थान अभी भी इन दो प्रमुख समस्याओं का हल निकालने में नाकामयाब हैं. हालांकि वेबसाइट से एजुकेशन देकर सेंट्रल स्कूल ने फौरी तौर पर मेधावी बच्चों को राहत देने का सकारात्मक प्रयास किया है.

सुलतानपुर में ऑनलाइन एजुकेशन की समस्या.

सुलतानपुर शहर में स्थित केंद्रीय विद्यालय हो या निजी संस्थान. सभी जूम, गूगल समेत विभिन्न प्रकार के एजुकेशन ऐप के जरिए बच्चों की शिक्षा-दीक्षा संपन्न करवाने का दावा कर रहे हैं. ऑनलाइन एजुकेशन के तहत बच्चों को लैपटॉप, टेबलेट और एंड्राइड मोबाइल पर यह सारी सुविधाएं दी जा रही हैं. हालांकि यह सुविधा गरीब परिवार के बच्चों तक नहीं पहुंच पा रही है.

शिक्षिका ने दी जानकारी
केंद्रीय विद्यालय की कंप्यूटर शिक्षिका निशा वर्मा कहती हैं कि गूगल मीट ऐप और ब्लू बटर ऐप के जरिए बच्चों की ऑनलाइन क्लासेस ली जा रही है. प्राय: बच्चे ऑनलाइन क्लास लेते रहते हैं और उनका डाटा खत्म हो जाता है. ऐसे बच्चों की सहूलियत के लिए केंद्रीय विद्यालय की तरफ से एक ब्लॉग डिजाइन किया गया है, जिसमें वेबसाइट पर वीडियो अपलोड कर दिए जाते हैं. बाद में बच्चे वहां से वीडियो के जरिए शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं. जनगणना 2011 की रिपोर्ट को देखें तो 10 लाख से अधिक गरीबी रेखा और इससे नीचे के परिवार हैं, जिनके पास न तो एंड्राइड फोन है और न ही टैबलेट या लैपटॉप. ऐसे में इनकी शिक्षण व्यवस्था मैनुअल तरीके से ही चल रही है.

डेटा की समस्या
छात्रा शालिनी कहती हैं कि जूम ऐप और गूगल मीट के जरिए हमें क्लास लेना होता है. प्रायः शिक्षकों की आवाज नहीं आती है. जब डेटा खत्म हो जाता है, तो क्लास नहीं हो पाती है. हमारे साथ में कई ऐसी छात्राएं भी हैं, जो आर्थिक तंगी की वजह से एंड्राइड मोबाइल नहीं खरीद पा रही हैं. ऐसे में उनकी शिक्षण व्यवस्था ऑनलाइन नहीं हो पा रही है.

दिखावे के लिए चल रही ऑनलाइन क्लास
जिले के निजी संस्थानों में दिखावे मात्र के लिए ऑनलाइन क्लास चल रही है. इंटरनेट कनेक्टिविटी और शिक्षकों के प्रशिक्षित न होने से ऑनलाइन क्लॉस मजाक बनकर रह गई है. बच्चों को इसका असल में लाभ नहीं मिल पा रहा है.

केंद्रीय विद्यालय के प्राचार्य ने बताया
वहीं केंद्रीय विद्यालय के प्राचार्य केपी यादव ने जानकारी देते हुए बताया कि गूगल के माध्यम से शिक्षण व्यवस्था चलाने की सतत निगरानी की जाती है. यह भी देखा जाता है कि बच्चे शिक्षा को ग्रहण कर पा रहे हैं या नहीं. ब्लॉग उपलब्ध कराए गए हैं, जिससे बच्चा अपने घर पर रहकर डाटा उपलब्ध होने की दशा में वीडियो के जरिए पूरा मैटर देख सकता है. बच्चों से फीडबैक लिया जाता है, जिससे देखा जाता है कि वह शिक्षा प्राप्त कर रहा है या नहीं. ऐसा नहीं होने की दशा में अलग समय सारणी बनाई जाती है. इसके बाद उन्हें अलग से प्रशिक्षित करने की व्यवस्था की जाती है.

सुलतानपुर: कोविड-19 संक्रमण काल में भले ही ऑनलाइन एजुकेशन के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन सुलतानपुर जिला भारतीय मेधा डेटा नेटवर्क और एंड्रॉयड की अनुपलब्धता की चुनौतियों से आज भी जूझ रहा है. ऑनलाइन एजुकेशन शुरू हुए 6 माह बीत चुके हैं, लेकिन जिले के शिक्षण संस्थान अभी भी इन दो प्रमुख समस्याओं का हल निकालने में नाकामयाब हैं. हालांकि वेबसाइट से एजुकेशन देकर सेंट्रल स्कूल ने फौरी तौर पर मेधावी बच्चों को राहत देने का सकारात्मक प्रयास किया है.

सुलतानपुर में ऑनलाइन एजुकेशन की समस्या.

सुलतानपुर शहर में स्थित केंद्रीय विद्यालय हो या निजी संस्थान. सभी जूम, गूगल समेत विभिन्न प्रकार के एजुकेशन ऐप के जरिए बच्चों की शिक्षा-दीक्षा संपन्न करवाने का दावा कर रहे हैं. ऑनलाइन एजुकेशन के तहत बच्चों को लैपटॉप, टेबलेट और एंड्राइड मोबाइल पर यह सारी सुविधाएं दी जा रही हैं. हालांकि यह सुविधा गरीब परिवार के बच्चों तक नहीं पहुंच पा रही है.

शिक्षिका ने दी जानकारी
केंद्रीय विद्यालय की कंप्यूटर शिक्षिका निशा वर्मा कहती हैं कि गूगल मीट ऐप और ब्लू बटर ऐप के जरिए बच्चों की ऑनलाइन क्लासेस ली जा रही है. प्राय: बच्चे ऑनलाइन क्लास लेते रहते हैं और उनका डाटा खत्म हो जाता है. ऐसे बच्चों की सहूलियत के लिए केंद्रीय विद्यालय की तरफ से एक ब्लॉग डिजाइन किया गया है, जिसमें वेबसाइट पर वीडियो अपलोड कर दिए जाते हैं. बाद में बच्चे वहां से वीडियो के जरिए शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं. जनगणना 2011 की रिपोर्ट को देखें तो 10 लाख से अधिक गरीबी रेखा और इससे नीचे के परिवार हैं, जिनके पास न तो एंड्राइड फोन है और न ही टैबलेट या लैपटॉप. ऐसे में इनकी शिक्षण व्यवस्था मैनुअल तरीके से ही चल रही है.

डेटा की समस्या
छात्रा शालिनी कहती हैं कि जूम ऐप और गूगल मीट के जरिए हमें क्लास लेना होता है. प्रायः शिक्षकों की आवाज नहीं आती है. जब डेटा खत्म हो जाता है, तो क्लास नहीं हो पाती है. हमारे साथ में कई ऐसी छात्राएं भी हैं, जो आर्थिक तंगी की वजह से एंड्राइड मोबाइल नहीं खरीद पा रही हैं. ऐसे में उनकी शिक्षण व्यवस्था ऑनलाइन नहीं हो पा रही है.

दिखावे के लिए चल रही ऑनलाइन क्लास
जिले के निजी संस्थानों में दिखावे मात्र के लिए ऑनलाइन क्लास चल रही है. इंटरनेट कनेक्टिविटी और शिक्षकों के प्रशिक्षित न होने से ऑनलाइन क्लॉस मजाक बनकर रह गई है. बच्चों को इसका असल में लाभ नहीं मिल पा रहा है.

केंद्रीय विद्यालय के प्राचार्य ने बताया
वहीं केंद्रीय विद्यालय के प्राचार्य केपी यादव ने जानकारी देते हुए बताया कि गूगल के माध्यम से शिक्षण व्यवस्था चलाने की सतत निगरानी की जाती है. यह भी देखा जाता है कि बच्चे शिक्षा को ग्रहण कर पा रहे हैं या नहीं. ब्लॉग उपलब्ध कराए गए हैं, जिससे बच्चा अपने घर पर रहकर डाटा उपलब्ध होने की दशा में वीडियो के जरिए पूरा मैटर देख सकता है. बच्चों से फीडबैक लिया जाता है, जिससे देखा जाता है कि वह शिक्षा प्राप्त कर रहा है या नहीं. ऐसा नहीं होने की दशा में अलग समय सारणी बनाई जाती है. इसके बाद उन्हें अलग से प्रशिक्षित करने की व्यवस्था की जाती है.

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