सुलतानपुर: लखनऊ मंडल में ड्यूटी पर तैनात लोको पायलट की पत्नियां इस बार रेल प्रशासन के विरोध पर उतर आई हैं. सुलतानपुर जंक्शन के प्लेटफार्म संख्या एक पर बैनर पोस्टर और तख्ती लेकर महिलाओं ने बच्चों के साथ पहुंचकर प्रदर्शन किया. कहा कि लोको पायलट का फोन जमा कराना रेल प्रशासन की तानाशाही है, यदि घर पर कोई आपात स्थिति हो जाती है तो हम किससे मदद मांगेंगे.
नार्दन रेलवे मेंस यूनियन के बैनर तले 2 दर्जन से अधिक महिलाएं सुलतानपुर जंक्शन के प्लेटफार्म संख्या एक पर सोमवार को जमा हुईं. इस दौरान तख्ती पर नारे लेकर महिलाओं ने प्रदर्शन किया है. अपने पति के खिलाफ कसे जा रहे शिकंजे और रनिंग रूम में जमा कराए जा रहे मोबाइल फोन से उनकी पत्नियां काफी आहत दिखाई दीं. प्रदर्शन के दौरान रेल प्रशासन पर तानाशाही का आरोप लगाते हुए महिलाओं ने कहा कि हमारे बच्चों की तबीयत खराब हो जाए या और कोई परिवार में समस्या आए तो हम किससे संपर्क करें. ऐसी दशा में फोन पर संपर्क कर पति से मार्गदर्शन तो हम ले ही सकते हैं. 72 घंटे से अधिक समय तक ड्यूटी पर बाहर रहने के चलते हमें कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
कर्मचारी की पत्नियों के आगे आने पर नॉर्दन रेलवे मेंस यूनियन के पदाधिकारी भी लामबंद हो गए हैं और डीजल लॉबी के सामने उन्होंने जोरदार प्रदर्शन किया. केंद्र सरकार के खिलाफ नारे लगाते हुए अपने बुनियादी हक को बहाल करने की आवाज उठाई. प्रदर्शन के दौरान विभिन्न विभागों के कर्मचारी भी डीजल लॉबी के सामने एकत्र हुए और बैनर पोस्टर लेकर रेल मंत्रालय के नए फरमान के मुखालफत में विरोध प्रदर्शन किया.
लोको पायलट की पत्नियों ने जानिए क्या कहा : विनीता पांडे कहती हैं कि हमें इतना पैसा नहीं मिलता है कि हम अपनी बेसिक नीड को पूरा कर सकें. बच्चों को पढ़ा लिखा सकें और अन्य कार्य कर सकें. छोटे बच्चे बीमार हो रहे हैं. महिलाएं बाहर नहीं निकल सकती हैं तो ऐसी दशा में बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. अर्चना यादव कहती हैं कि सरकार हमारे पतियों के साथ ऐसा उत्पीड़न करेगी तो हम कैसे रह पाएंगे. फोन ले लिया जाता है, बच्चों के बीमार होने की दशा में हम किसकी मदद लेंगे.
नेहा सिन्हा कहती हैं कि हेड क्वार्टर की तरफ से सहयोग नहीं किया जा रहा है. नौकरी लेने की चेतावनी दी जाती है. मोबाइल बंद करने से लोको पायलट अपने परिवार से संपर्क छोड़ देता है. जब वह परिवार से बात नहीं कर पाएंगे तो दिमागी तनाव में रहेंगे. वंदना पांडे कहती हैं कि ज्यादातर कर्मचारी फ्रस्ट्रेट हैं. पर्सनल लाइफ डिस्टर्ब हो गई है. 16 घंटे की बुकिंग में रेल अफसरों की तरफ से काम लेने से अपने परिवार को समय नहीं दे पाता है.