सीतापुर: वट सावित्री का व्रत हिन्दू धर्म में सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं, लेकिन लॉकडाउन के चलते इस बार इस त्यौहार की परंपरा पर को भी बदलना पड़ा. वटवृक्ष का पूजन करने की पाबंदी के चलते सुहागिन महिलाओं को अपने घर में ही बरगद की डाल का पूजन कर इस त्यौहार की परंपरा निभाई. यह व्रत ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को मनाया जाता है. इसमें बरगद के वृक्ष का पूजन और परिक्रमा का विधान है.
हिन्दू धर्म में है विशेष मान्यता
हिन्दू धर्म में इस त्यौहार की विशेष मान्यता है. कहा जाता है कि एक बार जब सावित्री मां के पति सत्यवान के प्राण लेकर यमराज जा रहे थे, तब सावित्री मां ने अपने पुत्र होने का वरदान प्राप्त कर अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस ले लिए थे. उनके सतीत्व के कारण ही इस त्यौहार की परंपरा शुरू हुई, जिसके बाद आज तक सुहागिन महिलाएं अपने अखंड सौभाग्य के लिए यह व्रत रखकर सबसे लंबी आयु वाले वृक्ष यानि कि वटवृक्ष का विधिवत पूजन करती हैं.
वटवृक्षों पर की गई बैरिकेडिंग
इस बार लॉकडाउन के चलते लोगों के घर से बाहर निकलने और समूह में इकट्ठा होने पर पाबंदी थी. इसी वजह से प्रशासन ने शहर के तमाम प्रमुख वटवृक्षों पर बेरिकेडिंग कर रखी थी. इसके चलते महिलाएं वहां इकट्ठा नहीं हो सकीं और अपने घर में ही पूजा-अर्चना की.
ईटीवी भारत से खास बातचीत में इन व्रती महिलाओं ने कहा कि सोशल डिस्टेंसिंग के कारण हम लोगों ने यह त्यौहार अपने घरों में ही परंपरागत तरीके से मनाया है. आचार्य राकेश शास्त्री ने इस त्यौहार की मान्यता बताते हुए कहा कि सुहागिन महिलाएं इस व्रत को रखकर अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं.