सीतापुर: नैमिषारण्य की तपस्थली शिव के चमत्कारों की धरती है. इस तपोवन की भूमि पर कई पौराणिक शिवालय स्थित है. पूरे वर्ष भर इन शिवालयों पर शिव भक्तों का तांता लगा रहता है. जनपद में भगवान शिव का बहुत ही प्राचीन भूतेश्वरनाथ मंदिर भी है. मान्यता है कि इसकी स्थापना स्वयं ब्रम्हा जी ने की थी और यह शिवलिंग दिन में तीन बार अपना स्वरूप परिवर्तित करता है. इस भूतेश्वर नाथ मंदिर के भीतर भगवान विष्णु की प्रतिमा भी स्थापित हैं, जो इस मंदिर की विशेषता को वर्णित करती है.
जानिए क्या है मान्यता
नैमिषारण्य तीर्थ में चक्रतीर्थ का विशेष स्थान है. नैमिषारण्य आने वाले सभी श्रद्धालु इस चक्रतीर्थ में स्नान और आचमन करते हैं. इसी चक्रतीर्थ के एक ओर भगवान शिव भूतेश्वरनाथ के नाम से मंदिर में विद्यमान हैं. पुरोहितों का कहना है कि जब ब्रम्हा जी ने अपना ब्रम्ह मनोमय चक्र छोड़ा था तो वह इसी स्थान पर आकर गिरा था. चक्र की नेमि यानी धुरी पृथ्वी का भेदन करने लगी तो उस नेमि को रोकने के लिए ललिता शक्ति का अवतरण हुआ. उस ललिता शक्ति ने शिवलिंग को धारण किया, जिससे ललिता देवी का नाम शिवलिंग धारिणी पड़ा. शिवशक्ति को धारण करने के लिए ही ब्रम्हा जी इस विग्रह की स्थापना की थी जो आज भी अपनी विशेषताओं के कारण श्रद्धालुओं में आस्था का केन्द्र है.
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नैमिषारण्य के कोतवाल
नैमिषारण्य में जिन सात प्रमुख स्थानों का विशेष महत्व है, उनमें भूतेश्वरनाथ मंदिर भी शामिल है. इन्हें नैमिषारण्य का कोतवाल भी माना जाता है. मान्यता है कि भूतेश्वरनाथ के नाम से स्थापित शिवलिंग दिन में तीन बार अपना स्वरूप बदलता है. सुबह के समय यह बाल रूप में परिलक्षित होता है, जबकि मध्यान्ह काल में रौद्र रूप में और सायंकाल यह दयालु रूप में दिखाई देता है. शिवरात्रि के अवसर पर यहां विशेष पूजन और श्रंगार होता है और भक्तगण जो भी मनोकामनाएं मांगते हैं, वे सभी पूरी होती हैं.