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नैमिषारण्य में नहीं पहुंच रहे श्रद्धालु, आर्थिक तंगी से गुजर रहे पुरोहित - naimisharanya-sitapur

कोरोना संक्रमण की वजह से लगाए गए लॉकडाउन के बाद से 88 हजार ऋषियों की तपोभूमि नैमिषारण्य में श्रद्धालुओं का आना कम हो गया है. जिसकी वजह से यहां के पुजारियों, तीर्थ पुरोहितों से लेकर माली और प्रसाद विक्रेताओं को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है.

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नैमिषारण्य तीर्थ
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Published : Jul 2, 2020, 6:37 AM IST

सीतापुर: नैमिषारण्य को सतयुग का तीर्थ और अष्टम वैकुण्ठ कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि यहीं पर महर्षि वेदव्यास ने वेद और पुराणों की रचना की थी. यहां पर प्रसिद्ध चक्रतीर्थ, मां ललिता देवी का प्राचीन मंदिर और हनुमानगढ़ी भी है. धार्मिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण होने के कारण बड़ी संख्या में देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां आते हैं. प्रत्येक माह की अमावस्या, सोमवती अमावस्या और नवरात्र के दिनों में यहां श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ता था. जिससे यहां के पुजारियों, तीर्थ पुरोहितों और मालियों के अलावा प्रसाद एवं पूजन सामग्री विक्रेताओं की आमदनी होती थी. लेकिन कोरोना के बाद लगे लॉकडाउन की वजह से श्रद्धालुओं का आना यहां पूरी तरह से बंद हो गया. जिससे इन सभी की आमदनी भी पूरी तरह से ठप हो गई. हालांकि अब अनलॉक लागू है. लेकिन अभी भी श्रद्धालुओं का आगमन काफी हद तक सीमित हो गया है. वहीं गिने चुने श्रद्धालु यहां आ भी रहे हैं, उन्हें प्रसाद आदि चढ़ाने की अनुमति नहीं है. जिससे दुकानदारों की आमदनी पूरी तरह से ठप्प है.

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मंदिर में दर्शन करने वालों के लिए निर्देश.

आर्थिक संकट से गुजर रहे परिवार
ललिता देवी मंदिर के पुजारी चुन्ना लाल का कहना है कि नैमिषारण्य में अधिकांश लोगों की आजीविका का साधन श्रद्धालुओं पर ही निर्भर है. लेकिन वर्तमान समय में जो श्रद्धालु यहां आ भी रहे हैं, वह स्वयं कोरोनाकाल में आर्थिक संकट का शिकार होने के कारण दान-दक्षिणा देने में समर्थ नहीं होते हैं. जिसके चलते उन सबकी आमदनी एक तरह से न के बराबर है और उनका परिवार आर्थिक संकट से गुजर रहा है.

नैमिषारण्य में नहीं पहुंच रहे श्रद्धालु.

प्रसाद विक्रेता बसंती लाल श्रीमाली का कहना है कि हर खास धार्मिक अवसर पर लाखों श्रद्धालु यहां आते थे, लेकिन वर्तमान समय में उनकी संख्या नगण्य है. चक्रतीर्थ पुरोहित लक्ष्मी नारायण पाण्डेय ने बताया कि लॉकडाउन की वजह से श्रद्धालुओं का आना बंद था. अनलॉक-1 में भी कम श्रद्धालु दर्शन को आ रहे हैं. आमतौर पर यहां लोग धार्मिक अनुष्ठान और कार्यक्रम के अलावा मुंडन संस्कार आदि कराने के लिए आते रहते थे, जिससे उन सभी की आजीविका आराम से चलती थी. लेकिन कोरोना के संक्रमण ने उनकी आजीविका पर ऐसा ग्रहण लगाया है कि उनके परिवारों को आर्थिक संकट से गुजरना पड़ रहा है.

सीतापुर: नैमिषारण्य को सतयुग का तीर्थ और अष्टम वैकुण्ठ कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि यहीं पर महर्षि वेदव्यास ने वेद और पुराणों की रचना की थी. यहां पर प्रसिद्ध चक्रतीर्थ, मां ललिता देवी का प्राचीन मंदिर और हनुमानगढ़ी भी है. धार्मिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण होने के कारण बड़ी संख्या में देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां आते हैं. प्रत्येक माह की अमावस्या, सोमवती अमावस्या और नवरात्र के दिनों में यहां श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ता था. जिससे यहां के पुजारियों, तीर्थ पुरोहितों और मालियों के अलावा प्रसाद एवं पूजन सामग्री विक्रेताओं की आमदनी होती थी. लेकिन कोरोना के बाद लगे लॉकडाउन की वजह से श्रद्धालुओं का आना यहां पूरी तरह से बंद हो गया. जिससे इन सभी की आमदनी भी पूरी तरह से ठप हो गई. हालांकि अब अनलॉक लागू है. लेकिन अभी भी श्रद्धालुओं का आगमन काफी हद तक सीमित हो गया है. वहीं गिने चुने श्रद्धालु यहां आ भी रहे हैं, उन्हें प्रसाद आदि चढ़ाने की अनुमति नहीं है. जिससे दुकानदारों की आमदनी पूरी तरह से ठप्प है.

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मंदिर में दर्शन करने वालों के लिए निर्देश.

आर्थिक संकट से गुजर रहे परिवार
ललिता देवी मंदिर के पुजारी चुन्ना लाल का कहना है कि नैमिषारण्य में अधिकांश लोगों की आजीविका का साधन श्रद्धालुओं पर ही निर्भर है. लेकिन वर्तमान समय में जो श्रद्धालु यहां आ भी रहे हैं, वह स्वयं कोरोनाकाल में आर्थिक संकट का शिकार होने के कारण दान-दक्षिणा देने में समर्थ नहीं होते हैं. जिसके चलते उन सबकी आमदनी एक तरह से न के बराबर है और उनका परिवार आर्थिक संकट से गुजर रहा है.

नैमिषारण्य में नहीं पहुंच रहे श्रद्धालु.

प्रसाद विक्रेता बसंती लाल श्रीमाली का कहना है कि हर खास धार्मिक अवसर पर लाखों श्रद्धालु यहां आते थे, लेकिन वर्तमान समय में उनकी संख्या नगण्य है. चक्रतीर्थ पुरोहित लक्ष्मी नारायण पाण्डेय ने बताया कि लॉकडाउन की वजह से श्रद्धालुओं का आना बंद था. अनलॉक-1 में भी कम श्रद्धालु दर्शन को आ रहे हैं. आमतौर पर यहां लोग धार्मिक अनुष्ठान और कार्यक्रम के अलावा मुंडन संस्कार आदि कराने के लिए आते रहते थे, जिससे उन सभी की आजीविका आराम से चलती थी. लेकिन कोरोना के संक्रमण ने उनकी आजीविका पर ऐसा ग्रहण लगाया है कि उनके परिवारों को आर्थिक संकट से गुजरना पड़ रहा है.

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