सीतापुर : 7 मार्च से शुरू हुई 84 कोसीय परिक्रमा अब मिश्रिख क्षेत्र में पहुंचने के बाद पंचकोसीय परिक्रमा में परिवर्तित हो गई है. होलिका दहन तक यह पंचकोसीय परिक्रमा मिश्रिख क्षेत्र में भ्रमण करेगी. जो लोग पूरे 15 दिन की 84 कोसीय परिक्रमा नहीं कर पाते हैं. वह 5 दिन तक चलने वाली पंचकोसीय परिक्रमा को करके मोक्ष पाने की कामना करते हैं.
मिश्रिख का पंचकोसीय परिक्रमा शुरू होने के साथ ही प्रत्येक वर्ष होली परिक्रमा मेला का आयोजन किया जाता है. डीएम ने कहा कि परिक्रमार्थियों की सुविधा के तमाम प्रबंध यहां किये गए हैं. ताकि उन्हें किसी प्रकार की असुविधा न होने पाए. डीएम ने इस अवसर पर अपने अधीनस्थ अधिकारियों को मेले में बेहतर व्यवस्था करने के भी निर्देश दिए हैं.
मिश्रिख के पुरोहितों ने बताया कि पंचकोसीय परिक्रमा का विशेष महत्व है. यह परिक्रमा पांच दिनों तक यहां चलता है. इसके साथ ही यहां पर विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है. महर्षि दधीचि की स्मृति में इस परिक्रमा का आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है.
मान्यता है कि जो लोग इस परिक्रमा को करते हैं. उन्हें 84 लाख योनियों से छुटकारा मिलता है और वे मोक्ष गति को प्राप्त होते हैं. उत्तर भारत का यह सबसे पौराणिक और बड़ा परिक्रमा होता है, जिसमें देशभर से लोग आकर परिक्रमा करते हैं. होलिका दहन के दिन दधीचि कुंड में स्नान करने के बाद होली की आग तापकर अपने घरों को वापस लौटते हैं.