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सीतापुर : मिश्रिख तीर्थ में शुरू हुई पंचकोसीय परिक्रमा, उमड़ा श्रद्धालुओं का जनसैलाब - महर्षि दधीचि

सीतापुर में महर्षि दधीचि की कर्मभूमि मिश्रिख साधू-संतो और परिक्रमार्थियों की रौनक से गुलजार है. शनिवार से यहां पंचकोसीय परिक्रमा शुरू हो गयी है. इसी के साथ डीएम अखिलेश तिवारी ने करीब एक माह तक चलने वाले होली मेले का मंत्रोच्चारण के साथ परंपरागत तरीके से शुभारंभ किया.

जानकारी देते पुरोहित.
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Published : Mar 16, 2019, 9:27 PM IST

सीतापुर : 7 मार्च से शुरू हुई 84 कोसीय परिक्रमा अब मिश्रिख क्षेत्र में पहुंचने के बाद पंचकोसीय परिक्रमा में परिवर्तित हो गई है. होलिका दहन तक यह पंचकोसीय परिक्रमा मिश्रिख क्षेत्र में भ्रमण करेगी. जो लोग पूरे 15 दिन की 84 कोसीय परिक्रमा नहीं कर पाते हैं. वह 5 दिन तक चलने वाली पंचकोसीय परिक्रमा को करके मोक्ष पाने की कामना करते हैं.

जानकारी देते पुरोहित.


मिश्रिख का पंचकोसीय परिक्रमा शुरू होने के साथ ही प्रत्येक वर्ष होली परिक्रमा मेला का आयोजन किया जाता है. डीएम ने कहा कि परिक्रमार्थियों की सुविधा के तमाम प्रबंध यहां किये गए हैं. ताकि उन्हें किसी प्रकार की असुविधा न होने पाए. डीएम ने इस अवसर पर अपने अधीनस्थ अधिकारियों को मेले में बेहतर व्यवस्था करने के भी निर्देश दिए हैं.


मिश्रिख के पुरोहितों ने बताया कि पंचकोसीय परिक्रमा का विशेष महत्व है. यह परिक्रमा पांच दिनों तक यहां चलता है. इसके साथ ही यहां पर विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है. महर्षि दधीचि की स्मृति में इस परिक्रमा का आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है.
मान्यता है कि जो लोग इस परिक्रमा को करते हैं. उन्हें 84 लाख योनियों से छुटकारा मिलता है और वे मोक्ष गति को प्राप्त होते हैं. उत्तर भारत का यह सबसे पौराणिक और बड़ा परिक्रमा होता है, जिसमें देशभर से लोग आकर परिक्रमा करते हैं. होलिका दहन के दिन दधीचि कुंड में स्नान करने के बाद होली की आग तापकर अपने घरों को वापस लौटते हैं.

सीतापुर : 7 मार्च से शुरू हुई 84 कोसीय परिक्रमा अब मिश्रिख क्षेत्र में पहुंचने के बाद पंचकोसीय परिक्रमा में परिवर्तित हो गई है. होलिका दहन तक यह पंचकोसीय परिक्रमा मिश्रिख क्षेत्र में भ्रमण करेगी. जो लोग पूरे 15 दिन की 84 कोसीय परिक्रमा नहीं कर पाते हैं. वह 5 दिन तक चलने वाली पंचकोसीय परिक्रमा को करके मोक्ष पाने की कामना करते हैं.

जानकारी देते पुरोहित.


मिश्रिख का पंचकोसीय परिक्रमा शुरू होने के साथ ही प्रत्येक वर्ष होली परिक्रमा मेला का आयोजन किया जाता है. डीएम ने कहा कि परिक्रमार्थियों की सुविधा के तमाम प्रबंध यहां किये गए हैं. ताकि उन्हें किसी प्रकार की असुविधा न होने पाए. डीएम ने इस अवसर पर अपने अधीनस्थ अधिकारियों को मेले में बेहतर व्यवस्था करने के भी निर्देश दिए हैं.


मिश्रिख के पुरोहितों ने बताया कि पंचकोसीय परिक्रमा का विशेष महत्व है. यह परिक्रमा पांच दिनों तक यहां चलता है. इसके साथ ही यहां पर विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है. महर्षि दधीचि की स्मृति में इस परिक्रमा का आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है.
मान्यता है कि जो लोग इस परिक्रमा को करते हैं. उन्हें 84 लाख योनियों से छुटकारा मिलता है और वे मोक्ष गति को प्राप्त होते हैं. उत्तर भारत का यह सबसे पौराणिक और बड़ा परिक्रमा होता है, जिसमें देशभर से लोग आकर परिक्रमा करते हैं. होलिका दहन के दिन दधीचि कुंड में स्नान करने के बाद होली की आग तापकर अपने घरों को वापस लौटते हैं.

Intro:सीतापुर:7 मार्च से शुरू हुई 84 कोसीय परिक्रमा अब मिश्रित क्षेत्र में पहुंचने के बाद पंचकोसीय परिक्रमा में परिवर्तित हो गई है, होलिका दहन तक यह पंचकोसीय परिक्रमा मिश्रित क्षेत्र में भ्रमण करेगी,जो लोग पूरे 15 दिन की 84 कोसीय परिक्रमा नही कर पाते हैं वह 5 दिन तक चलने वाली पंचकोसीय परिक्रमा को करके मोक्ष पाने की कामना करते हैं.

वीओ-वृत्तासुर दैत्य का वध करने के लिए जब देवताओं ने महर्षि दधीचि से उनकी अस्थियो का दान मांगा था तब महर्षि दधीचि ने शरीर त्यागने से पहले पृथ्वी लोक के समस्त तीर्थो का स्नान करने की इच्छा जाहिर की थी जिसके बाद देवताओं ने सभी तीर्थों का इसी 84 कोस में आव्हान कर महर्षि दधीचि की इच्छा को पूर्ण किया था तभी से इस परिक्रमा की मान्यता चली आ रही है.हर वर्ष होली पर्व से ठीक 15 दिन पहले इस परिक्रमा का नैमिषारण्य के चक्रतीर्थ से आगाज़ होता है, जो ग्यारह पड़ावों को पार करती हुई मिश्रित तीर्थ में पहुँचती है जिसके बाद यह पंचकोसीय परिक्रमा में तब्दील हो जाती है.

शनिवार से यह 84 कोसीय परिक्रमा पंचकोसीय परिक्रमा में परिवर्तित हो गई है.अब सारे परिक्रमार्थी इस पंचकोसीय परिक्रमा को करेंगे.मान्यता है कि जो लोग इस परिक्रमा को करते हैं उन्हें 84 लाख योनियों से छुटकारा मिलता है और वे मोक्ष गति को प्राप्त होते हैं.उत्तर भारत का यह सबसे पौराणिक और बड़ा परिक्रमा होता है जिसमे देश के कोने कोने से लोग यहां आकर परिक्रमा करते हैं और होलिका दहन के दिन दधीचि कुंड में स्नान करने के बाद होली की आग तापकर अपने घरों को वापस लौटते हैं.

नैमिषारण्य और मिश्रिख को सतयुग का तीर्थ माना जाता है, यही पर ऋषि मुनियों ने घोर तपस्या की थी,यही से सृष्टि का प्रारंभ भी माना जाता है,आदिमानव मनु और सतरूपा की तपस्या भी इसी नैमिषारण्य क्षेत्र में हुई थी और यही पर महर्षि दधीचि ने जनकल्याण के लिए अपनी अस्थियो का दान देकर आसुरी शक्ति को समाप्त करने में विशेष भूमिका निभाई थी, मान्यता यह भी है कि स्वयं भगवान राम ने त्रेतायुग में इस 84 कोस का परिक्रमा किया था जिसके कारण इन परिक्रमार्थियों को रामादल के नाम से पुकारा जाता है. अब पूरा मिश्रित क्षेत्र पांच दिनों यानि होलिका दहन तक गुलज़ार रहेगा.

बाइट-जगदम्बा प्रसाद त्रिवेदी (परिक्रमार्थी)
बाइट-राजेश कुमार दीक्षित (पुरोहित)
बाइट-राहुल शर्मा (पुरोहित-मिश्रित तीर्थ)

नीरज श्रीवास्तव, सीतापुर 9415084887


Body:जयघोष के साथ पंचकोसीय परिक्रमा में जुटे श्रद्धालु


Conclusion:
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