सीतापुर: मनरेगा के तहत मानव दिवस सृजित करने के मामले में प्रदेश में पहले स्थान पर रह चुके सीतापुर में मौजूदा समय में कई तहसील में मजदूरों का जाॅब कार्ड नहीं बनने की, तो कहीं पर मजदूरी का भुगतान नहीं होने के मामले सामने आ रहे हैं. वहीं मजदूर संगठन भी अधिकारियों पर कोरोना की गाइडलाइन का पालन नहीं करने का आरोप लगा रहे हैं. ईटीवी भारत ने गांव में जाकर मनरेगा के तहत काम करने वाले मजदूरों से बातचीत की तो योजना की हकीकत सामने आयी.
2 लाख 6 हजार मानव दिवस सृजित करके प्रदेश में पहला स्थान पाने वाले सूबे की राजधानी से सटे सीतापुर जिले के विकास खंड मिश्रिख के गांव अर्थापुर में मनरेगा के तहत कई प्रवासी मजदूर काम कर रहे हैं. इनमें से कई मजदूरों ने मजदूरी का भुगतान न होने की शिकायत उपायुक्त मनरेगा से की है. वहीं कुछ मजदूरों ने बताया कि 15 दिनों की मजदूरी अभी नहीं मिली है, तो कुछ ने 7 दिन की मजदूरी नहीं मिलने की बात कही.
मनरेगा को लेकर पिछले कई सालों से मजदूरों की समस्याओं को उठाने वाली संगतिन किसान मजदूर संगठन की संयोजिका ऋचा सिंह ने बताया कि सरकार और स्थानीय प्रशासन के दावे और हकीकत में काफी अंतर है. उन्होंने बताया कि जो आंकड़े पेश किए जा रहे हैं, उनमें ही खेल किया जा रहा है. संयोजिका ने कहा कि मजदूरों को न तो मास्क उपलब्ध कराए गए हैं और न ही कार्यस्थल पर पानी की व्यवस्था की गई है. हाथ धुलने और सैनिटाइज करने के इंतजाम नहीं किए गए हैं. मनरेगा कार्य स्थल पर कोरोना सुरक्षा के लिए जारी दिशा-निर्देशोंं का पालन नहीं किया जा रहा है.
वहीं उपायुक्त मनरेगा सुशील कुमार श्रीवास्तव ने आधे से ज्यादा प्रवासी मजदूरों को मनरेगा के तहत रोजगार देने और बैकों के माध्यम से भुगतान कराने का दावा किया है. उन्होंने बताया कि जिले में मनरेगा का सफल क्रियान्वयन किया जा रहा है.