सीतापुर: तरक्की के तमाम दावों के बीच जिले में औद्योगिक विकास का पहिया लगातार उल्टा घूम रहा है. नई औद्योगिक इकाइयों की स्थापना तो दूर की बात रही पिछले ढाई दशक के बीच यहां की चार बड़ी औद्योगिक इकाइयां बंद हो चुकी हैं और इन उद्योगों से जुड़े हजारों लोग बेरोजगार हो चुके हैं. यहां तक कि रोजगार की तलाश में लोग पलायन भी कर गए हैं. उद्योगों के बंद होने से जिले के विकास पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है.
लक्ष्मी शुगर मिल
इसी प्रकार महोली कस्बे में लक्ष्मी शुगर मिल के नाम से संचालित चीनी मिल भी अपनी दानेदार चीनी के लिए खास पहचान बनाए हुए थी. सेठ किशोरी लाल ने वर्ष 1938 में इस चीनी मिल की स्थापना की थी. गैर प्रान्तों में यहां की बनी हुई चीनी की खास मांग हुआ करती थी. इस चीनी मिल को पहले सरकार ने अपने कब्जे में लिया और काफी समय तक इसका संचालन किया. बाद में घाटे के कारण उसे बंद कर दिया.
इस फैक्ट्री के बंद होने से यहां के भी कर्मचारी और मजदूर बेरोजगार हो गए. इसी तरह कमलापुर इलाके में भी रुइया ग्रुप द्वारा मैग्मा शुगर मिल की स्थापना की गई थी. बाद में यह चीनी मिल भी कतिपय कारणों से बंद हो गई, जिससे इस मिल के कर्मचारी और मजदूर बेरोजगार हो गए. कुछ दिन पहले इस चीनी मिल के दोबारा संचालन की चर्चा आई थी, लेकिन वह भी ठंडे बस्ते में चली गई.
मैग्मा शुगर फैक्ट्री
मलापुर की मैग्मा शुगर फैक्ट्री स्थापना वर्ष 1998 में की गई थी. यह फैक्ट्री लगातार घाटे के कारण 30 दिसंबर 2012 को बंद हुई थी. इस फैक्ट्री में 300 नियमित कर्मचारी कार्यरत थे.
कभी बड़े उद्योगों के लिए पहचाने जाने वाला सीतापुर आज उनके बंद होने से औद्योगिक विकास के क्षेत्र में पिछड़ता चला जा रहा है.
-तुषार साहनी, चेयरमैन-सीतापुर व्यापारी एसोसिएशन
2001 में इस फैक्ट्री के तालाबंदी का शिकार होने के बाद सैकड़ों कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं और उनका काफी पैसा इस फैक्ट्री पर आज भी बकाया है.
-आर्यबन्धु, सचिव, प्लायवुड कर्मचारी संघ
प्लाईवुड और सुहागिन फैक्ट्री की इस जिले की खासी पहचान हुआ करती थी, लेकिन दोनों के बंद होने से जिले का विकास बाधित हुआ है. प्लाईवुड फैक्ट्री के दोबारा शुरू कराने का प्रयास किया गया, लेकिन प्रयास सफल नहीं हुआ.
-राकेश राठौर, नगर विधायक