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सीतापुर: औद्योगिक विकास को लगा ग्रहण, बंद हो चुके हैं कई बड़े उद्योग - famous industries close

उत्तर प्रदेश के सीतापुर में लगातार फैक्ट्रियां बंद होने के चलते जिले के औद्योगिक विकास पर प्रभाव पड़ा है. प्लाईवुड फैक्ट्री, ​​​​​​​लक्ष्मी शुगर मिल और मैग्मा शुगर फैक्ट्री में तालाबंदी होने से सैकड़ों कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं और उनका काफी पैसा इस फैक्ट्री पर आज भी बकाया है.

फैक्ट्रियां बंद होने के कारण औद्योगिक विकास पर पड़ा प्रभाव.
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Published : Oct 16, 2019, 3:09 PM IST

सीतापुर: तरक्की के तमाम दावों के बीच जिले में औद्योगिक विकास का पहिया लगातार उल्टा घूम रहा है. नई औद्योगिक इकाइयों की स्थापना तो दूर की बात रही पिछले ढाई दशक के बीच यहां की चार बड़ी औद्योगिक इकाइयां बंद हो चुकी हैं और इन उद्योगों से जुड़े हजारों लोग बेरोजगार हो चुके हैं. यहां तक कि रोजगार की तलाश में लोग पलायन भी कर गए हैं. उद्योगों के बंद होने से जिले के विकास पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है.

फैक्ट्रियां बंद होने के कारण औद्योगिक विकास पर पड़ा प्रभाव.
इसे भी पढ़ें-सीतापुर: महर्षि वाल्मीकि जयंति पर श्रद्धालुओं ने निकाली शोभायात्राप्लाईवुड फैक्ट्रीसीतापुर में जिला मुख्यालय पर स्थित प्लाईवुड फैक्ट्री कभी इस जिले की पहचान हुआ करती थी. वर्ष 1938 में अंग्रेजों द्वारा भारतीय ग्रुप से संधि के आधार पर इस फैक्ट्री की स्थापना की गई थी. इस फैक्ट्री की बनी प्लाई और बोर्ड की विदेशों तक में आपूर्ति की जाती थी. इस फैक्ट्री में करीब दो हजार कर्मचारी काम करते थे, जिसमें करीब 1,500 नियमित और 5,00 दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी कार्यरत थे. कतिपय कारणों से फैक्ट्री वर्ष 2001 में हाईकोर्ट के आदेश पर तालाबंदी का शिकार हो गई और यहां के कर्मचारी बेरोजगार हो गए. आज भी यहां के तमाम कर्मचारी अपने बकाया रुपयों का भुगतान पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन अभी तक समस्या का समाधान नहीं निकल पाया है.हाईकोर्ट ने दिया तालाबंदी का आदेशसीतापुर प्लाईवुड प्रोडक्ट के नाम से पंजीकृत इस फैक्ट्री के नाम पर कई फाइनेंस कम्पनियों से लोन लिया गया था, जिसको लेकर विवाद उत्पन्न हुआ और इन फाइनेंस कम्पनियों ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर दी, जिसके चलते हाईकोर्ट ने फैक्ट्री में तालाबंदी का आदेश दिया था.

लक्ष्मी शुगर मिल
इसी प्रकार महोली कस्बे में लक्ष्मी शुगर मिल के नाम से संचालित चीनी मिल भी अपनी दानेदार चीनी के लिए खास पहचान बनाए हुए थी. सेठ किशोरी लाल ने वर्ष 1938 में इस चीनी मिल की स्थापना की थी. गैर प्रान्तों में यहां की बनी हुई चीनी की खास मांग हुआ करती थी. इस चीनी मिल को पहले सरकार ने अपने कब्जे में लिया और काफी समय तक इसका संचालन किया. बाद में घाटे के कारण उसे बंद कर दिया.

इस फैक्ट्री के बंद होने से यहां के भी कर्मचारी और मजदूर बेरोजगार हो गए. इसी तरह कमलापुर इलाके में भी रुइया ग्रुप द्वारा मैग्मा शुगर मिल की स्थापना की गई थी. बाद में यह चीनी मिल भी कतिपय कारणों से बंद हो गई, जिससे इस मिल के कर्मचारी और मजदूर बेरोजगार हो गए. कुछ दिन पहले इस चीनी मिल के दोबारा संचालन की चर्चा आई थी, लेकिन वह भी ठंडे बस्ते में चली गई.

मैग्मा शुगर फैक्ट्री
मलापुर की मैग्मा शुगर फैक्ट्री स्थापना वर्ष 1998 में की गई थी. यह फैक्ट्री लगातार घाटे के कारण 30 दिसंबर 2012 को बंद हुई थी. इस फैक्ट्री में 300 नियमित कर्मचारी कार्यरत थे.

कभी बड़े उद्योगों के लिए पहचाने जाने वाला सीतापुर आज उनके बंद होने से औद्योगिक विकास के क्षेत्र में पिछड़ता चला जा रहा है.
-तुषार साहनी, चेयरमैन-सीतापुर व्यापारी एसोसिएशन

2001 में इस फैक्ट्री के तालाबंदी का शिकार होने के बाद सैकड़ों कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं और उनका काफी पैसा इस फैक्ट्री पर आज भी बकाया है.
-आर्यबन्धु, सचिव, प्लायवुड कर्मचारी संघ

प्लाईवुड और सुहागिन फैक्ट्री की इस जिले की खासी पहचान हुआ करती थी, लेकिन दोनों के बंद होने से जिले का विकास बाधित हुआ है. प्लाईवुड फैक्ट्री के दोबारा शुरू कराने का प्रयास किया गया, लेकिन प्रयास सफल नहीं हुआ.
-राकेश राठौर, नगर विधायक

सीतापुर: तरक्की के तमाम दावों के बीच जिले में औद्योगिक विकास का पहिया लगातार उल्टा घूम रहा है. नई औद्योगिक इकाइयों की स्थापना तो दूर की बात रही पिछले ढाई दशक के बीच यहां की चार बड़ी औद्योगिक इकाइयां बंद हो चुकी हैं और इन उद्योगों से जुड़े हजारों लोग बेरोजगार हो चुके हैं. यहां तक कि रोजगार की तलाश में लोग पलायन भी कर गए हैं. उद्योगों के बंद होने से जिले के विकास पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है.

फैक्ट्रियां बंद होने के कारण औद्योगिक विकास पर पड़ा प्रभाव.
इसे भी पढ़ें-सीतापुर: महर्षि वाल्मीकि जयंति पर श्रद्धालुओं ने निकाली शोभायात्राप्लाईवुड फैक्ट्रीसीतापुर में जिला मुख्यालय पर स्थित प्लाईवुड फैक्ट्री कभी इस जिले की पहचान हुआ करती थी. वर्ष 1938 में अंग्रेजों द्वारा भारतीय ग्रुप से संधि के आधार पर इस फैक्ट्री की स्थापना की गई थी. इस फैक्ट्री की बनी प्लाई और बोर्ड की विदेशों तक में आपूर्ति की जाती थी. इस फैक्ट्री में करीब दो हजार कर्मचारी काम करते थे, जिसमें करीब 1,500 नियमित और 5,00 दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी कार्यरत थे. कतिपय कारणों से फैक्ट्री वर्ष 2001 में हाईकोर्ट के आदेश पर तालाबंदी का शिकार हो गई और यहां के कर्मचारी बेरोजगार हो गए. आज भी यहां के तमाम कर्मचारी अपने बकाया रुपयों का भुगतान पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन अभी तक समस्या का समाधान नहीं निकल पाया है.हाईकोर्ट ने दिया तालाबंदी का आदेशसीतापुर प्लाईवुड प्रोडक्ट के नाम से पंजीकृत इस फैक्ट्री के नाम पर कई फाइनेंस कम्पनियों से लोन लिया गया था, जिसको लेकर विवाद उत्पन्न हुआ और इन फाइनेंस कम्पनियों ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर दी, जिसके चलते हाईकोर्ट ने फैक्ट्री में तालाबंदी का आदेश दिया था.

लक्ष्मी शुगर मिल
इसी प्रकार महोली कस्बे में लक्ष्मी शुगर मिल के नाम से संचालित चीनी मिल भी अपनी दानेदार चीनी के लिए खास पहचान बनाए हुए थी. सेठ किशोरी लाल ने वर्ष 1938 में इस चीनी मिल की स्थापना की थी. गैर प्रान्तों में यहां की बनी हुई चीनी की खास मांग हुआ करती थी. इस चीनी मिल को पहले सरकार ने अपने कब्जे में लिया और काफी समय तक इसका संचालन किया. बाद में घाटे के कारण उसे बंद कर दिया.

इस फैक्ट्री के बंद होने से यहां के भी कर्मचारी और मजदूर बेरोजगार हो गए. इसी तरह कमलापुर इलाके में भी रुइया ग्रुप द्वारा मैग्मा शुगर मिल की स्थापना की गई थी. बाद में यह चीनी मिल भी कतिपय कारणों से बंद हो गई, जिससे इस मिल के कर्मचारी और मजदूर बेरोजगार हो गए. कुछ दिन पहले इस चीनी मिल के दोबारा संचालन की चर्चा आई थी, लेकिन वह भी ठंडे बस्ते में चली गई.

मैग्मा शुगर फैक्ट्री
मलापुर की मैग्मा शुगर फैक्ट्री स्थापना वर्ष 1998 में की गई थी. यह फैक्ट्री लगातार घाटे के कारण 30 दिसंबर 2012 को बंद हुई थी. इस फैक्ट्री में 300 नियमित कर्मचारी कार्यरत थे.

कभी बड़े उद्योगों के लिए पहचाने जाने वाला सीतापुर आज उनके बंद होने से औद्योगिक विकास के क्षेत्र में पिछड़ता चला जा रहा है.
-तुषार साहनी, चेयरमैन-सीतापुर व्यापारी एसोसिएशन

2001 में इस फैक्ट्री के तालाबंदी का शिकार होने के बाद सैकड़ों कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं और उनका काफी पैसा इस फैक्ट्री पर आज भी बकाया है.
-आर्यबन्धु, सचिव, प्लायवुड कर्मचारी संघ

प्लाईवुड और सुहागिन फैक्ट्री की इस जिले की खासी पहचान हुआ करती थी, लेकिन दोनों के बंद होने से जिले का विकास बाधित हुआ है. प्लाईवुड फैक्ट्री के दोबारा शुरू कराने का प्रयास किया गया, लेकिन प्रयास सफल नहीं हुआ.
-राकेश राठौर, नगर विधायक

Intro:सीतापुर: तरक्की के तमाम दावों के बीच इस जिले में औद्योगिक विकास का पहिया लगातार उल्टा घूम रहा है.नई औद्योगिक इकाइयों की स्थापना तो दूर की बात रही, पिछले ढाई दशक के बीच यहां की चार बड़ी औद्योगिक इकाइयां बंद हो चुकी है और इन उद्योगों से जुड़े हज़ारों लोग बेरोजगार हो चुके हैं.यहां तक कि रोजगार की तलाश में लोग पलायन भी कर गए हैं. उद्योगों के बंद होने से जिले के विकास पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है.सीतापुर के औद्योगिक विकास के पिछड़ेपन पर खास खबर


Body:सीतापुर में जिला मुख्यालय पर स्थित प्लायवुड फैक्ट्री कभी इस जिले की पहचान हुआ करती थी. वर्ष 1938 में अंग्रेजों द्वारा भारतीय ग्रुप से संधि के आधार पर इस फैक्ट्री की स्थापना की गई थी.इस फैक्ट्री की बनी प्लाई और बोर्ड की विदेशों तक मे आपूर्ति की जाती थी. इस फैक्ट्री में करीब दो हज़ार कर्मचारी काम करते थे जिसमे करीब 15 सौ नियमित और 5 सौ दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी कार्यरत थे.कतिपय कारणों से फैक्ट्री वर्ष 2001में हाईकोर्ट के आदेश पर तालाबंदी का शिकार हो गई और यहां के कर्मचारी बेरोजगार हो गए.आज भी यहां के तमाम कर्मचारी अपने बकाया देयो का भुगतान पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं लेकिन अभी तक समस्या का समाधान नहीं निकल पाया है.


Conclusion:इस जिले की दूसरी बड़ी पहचान यहां की डालडा फैक्ट्री भी थी.बालाजी वेजिटेबल प्रोडक्ट कम्पनी के नाम से पंजीकृत इस डालडा फैक्ट्री में सुहागिन वनस्पति के नाम से प्रोडक्ट तैयार किया जाता था.यह सुहागिन डालडा फैक्ट्री भी कतिपय कारणों से तालाबंदी का शिकार हो गई और यहां के सैकड़ों कर्मचारी बेरोजगारी का शिकार हो गए. इसी प्रकार महोली कस्बे में लक्ष्मी शुगर मिल के नाम से संचालित चीनी मिल भी अपनी दानेदार चीनी के लिए खास पहचान बनाए हुए थी.सेठ किशोरी लाल ने वर्ष 1938 में इस चीनी मिल की स्थापना की थी.गैर प्रान्तों में यहां की बनी हुई चीनी की खास मांग हुआ करती थी. इस चीनी मिल को पहले सरकार ने अपने कब्जे में लिया और काफी समय तक इसका संचालन किया बाद में घाटे के कारण उसे बंद कर दिया. इस फैक्ट्री के बंद होने से यहां के भी कर्मचारी औऱ मज़दूर बेरोजगार हो गए. इसी तरह कमलापुर इलाके में भी रुइया ग्रुप द्वारा मैग्मा शुगर मिल की स्थापना की गई थी बाद में यह चीनी मिल भी कतिपय कारणों से बंद हो गई जिससे इस मिल के कर्मचारी और मजदूर बेरोजगार हो गए.कुछ दिन पहले इस चीनी मिल के दुबारा संचालन की चर्चा आयी थी लेकिन वह भी ठंडे बस्ते में चली गईं. इस बाबत सीतापुर व्यापारी एसोसिएशन के चेयरमैन ने बताया कि कभी बड़े उद्योगों के लिए पहचाना जाने वाला सीतापुर आज उनके बंद होने से औद्योगिक विकास के क्षेत्र में पिछड़ता चला जा रहा है. बाइट-तुषार साहनी (चेयरमैन-सीतापुर व्यापारी एसोसिएशन) उधर प्लायवुड कर्मचारी संघ के सचिव आर्य बन्धु ने प्लायवुड फैक्ट्री और उसके उत्पादों की विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि 2001 में इस फैक्ट्री के तालाबंदी का शिकार होने के बाद सैकड़ों कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं और उनका काफ़ी पैसा इस फैक्ट्री पर आज भी बकाया है. बाइट-आर्यबन्धु (सचिव-प्लायवुड कर्मचारी संघ) इस सम्बंध में जब नगर क्षेत्र के बीजेपी विधायक राकेश राठौर से बात की गई तो उन्होंने स्वीकार किया कि प्लायवुड और सुहागिन फैक्ट्री इस जिले की खासी पहचान हुआ करती थी लेकिन दोनों के बंद होने से जिले का विकास बाधित हुआ है. उन्होंने कहा कि प्लायवुड फैक्ट्री के दुबारा शुरू कराने का उन्होंने प्रयास किया गया लेकिन प्रयास सफल नहीं हुआ. बाइट-राकेश राठौर (नगर विधायक-बीजेपी) सीतापुर से नीरज श्रीवास्तव की खास रिपोर्ट,9415084887,8299469052 @ वंदना जी के ध्यानार्थ
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