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किसान ने अपनाई नई तकनीक, 6 माह की जगह 1 माह में तैयार कर रहा सिरका - सीतापुर में किसान सिरका बनाने का काम कर रहे

उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में लॉकडाउन की वजह से किसान अपनी फसलों और सब्जियों को बाजार में नहीं बेच पा रहे है. वहीं किसानों ने कृषि विविधीकरण के माध्यम से सिरका बनाने का काम शुरू कर दिया है, जिससे वे अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुटा पा रहे हैं.

किसान सिरका बनाने का कर रहे कार्य
किसान सिरका बनाने का कर रहे कार्य
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Published : Apr 29, 2020, 9:22 AM IST

सीतापुर: बारिश और ओलावृष्टि के कारण बहुत से किसानों की खेतों में खड़ी फसलें नष्ट हो गई हैं. फसलों के नष्ट होने से किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गई थी. अब किसानों ने इस लॉकडाउन में कृषि विविधीकरण के माध्यम से सिरका बनाने की विधि अपनाई है. इस विधि से किसानों का कारोबार फल-फूल रहा है. इस कारोबार की कमाई से वह अपना और परिवार का पेट पालने में सक्षम हैं.

जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर विकास खण्ड सकरन के बनियनपुरवा गांव के किसान पृथ्वीपाल मौर्य लंबे समय से गन्ना एवं सब्जियों की खेती करते थे. गन्ने की समस्या और मिलों की दिक्कतों के वजह से उनका कारोबार नहीं चल पा रहा था. कृषि विज्ञान केंद्र कटिया के माध्यम से उन्होंने सिरका बनाने की तकनीक अपनाई. केंद्र के वैज्ञानिकों ने पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी लुधियाना के साथ तकनीकी हस्तांतरण कराकर पृथ्वीपाल मौर्य को सिरका उत्पादन के लिए सहयोग किया. आज जब लॉकडाउन में किसानों को सब्जियों और फसलों का मूल्य नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में पृथ्वीपाल सिरका बनाने का काम लगातार कर रहे हैं, जिससे वे अपना और अपने परिवार का पेट भर पा रहे हैं.

सामान्यत: गन्ने के रस से सिरका बनाने में छह माह का समय लगता है. नवोन्मेषी वैज्ञानिक तकनीक ने 27 दिनों में ही सिरका बनकर तैयार करने की तकनीक खोज निकाली है. किसान कार्य करते हुए भी प्रतिदिन दो-तीन घंटे समय देकर 30 ड्रम प्रतिमाह यानि 6,000 ली. प्रति माह सिरका तैयार कर सकता है. एक लीटर सिरका बनाने में कम से कम 10 से 20 रुपये की लागत आती है और यदि बाजार भाव देखें तो इसकी 70 से 80 रुपये प्रति ली. कीमत है. इस तरह से किसान इस कारोबार से आर्थिक लाभ अर्जित कर अपने परिवार का पालन पोषण कर रहा है.

सीतापुर: बारिश और ओलावृष्टि के कारण बहुत से किसानों की खेतों में खड़ी फसलें नष्ट हो गई हैं. फसलों के नष्ट होने से किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गई थी. अब किसानों ने इस लॉकडाउन में कृषि विविधीकरण के माध्यम से सिरका बनाने की विधि अपनाई है. इस विधि से किसानों का कारोबार फल-फूल रहा है. इस कारोबार की कमाई से वह अपना और परिवार का पेट पालने में सक्षम हैं.

जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर विकास खण्ड सकरन के बनियनपुरवा गांव के किसान पृथ्वीपाल मौर्य लंबे समय से गन्ना एवं सब्जियों की खेती करते थे. गन्ने की समस्या और मिलों की दिक्कतों के वजह से उनका कारोबार नहीं चल पा रहा था. कृषि विज्ञान केंद्र कटिया के माध्यम से उन्होंने सिरका बनाने की तकनीक अपनाई. केंद्र के वैज्ञानिकों ने पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी लुधियाना के साथ तकनीकी हस्तांतरण कराकर पृथ्वीपाल मौर्य को सिरका उत्पादन के लिए सहयोग किया. आज जब लॉकडाउन में किसानों को सब्जियों और फसलों का मूल्य नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में पृथ्वीपाल सिरका बनाने का काम लगातार कर रहे हैं, जिससे वे अपना और अपने परिवार का पेट भर पा रहे हैं.

सामान्यत: गन्ने के रस से सिरका बनाने में छह माह का समय लगता है. नवोन्मेषी वैज्ञानिक तकनीक ने 27 दिनों में ही सिरका बनकर तैयार करने की तकनीक खोज निकाली है. किसान कार्य करते हुए भी प्रतिदिन दो-तीन घंटे समय देकर 30 ड्रम प्रतिमाह यानि 6,000 ली. प्रति माह सिरका तैयार कर सकता है. एक लीटर सिरका बनाने में कम से कम 10 से 20 रुपये की लागत आती है और यदि बाजार भाव देखें तो इसकी 70 से 80 रुपये प्रति ली. कीमत है. इस तरह से किसान इस कारोबार से आर्थिक लाभ अर्जित कर अपने परिवार का पालन पोषण कर रहा है.

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