सीतापुर: भले ही आमतौर पर युवा उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद नौकरी को अपना लक्ष्य मानते हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो उच्च शिक्षित होने के बावजूद अपनी मातृभूमि को सब कुछ मानते हैं. ऐसा ही एक मामला जिले के इमिलिया सुलतानपुर इलाके का है. यहां के रहने वाले रोहित सिंह इसकी एक मिसाल हैं, जिन्होंने बीटेक और एमबीए की पढ़ाई करने के बाद न सिर्फ अपनी पैतृक खेती को अपनी कमाई का जरिया बनाया है, बल्कि खेती में भी गौ आधारित तकनीक को अपनाकर इस उपज को स्वास्थ्य वर्धक बनाने की हर संभव कोशिश की है.
नौकरी छोड़ कर रहे खेती
इमिलिया सुल्तानपुर इलाके में रहने वाले रोहित सिंह ने मद्रास से बीटेक और मैसूर से एमबीए की पढ़ाई की है. कुछ समय तक राहुल ने एक निजी कम्पनी में नौकरी भी की, लेकिन कुछ नया करने की चाहत उन्हें अपनी मातृभूमि की तरफ खींच लाई. उन्होंने अपनी पैतृक खेती को करना शुरू किया, लेकिन शुरुआती दौर में केमिकल युक्त खाद का इस्तेमाल करने के बाद उन्होंने गौ आधारित खेती करने की ठानी. वर्तमान समय में रोहित ने तरबूज, खरबूजे की खेती के साथ पपीते की खेती कर रहे हैं. इसके अलावा वो लौकी और तोरई की भी खेती कर रहे हैं.
टपक विधि की सिंचाई को अपनाया
ईटीवी भारत से खास बातचीत में किसान रोहित सिंह ने बताया कि उन्होंने खेती के टपक विधि की सिंचाई को अपनाया है. इससे पानी की काफी बचत होती है और केमिकल युक्त खादों की बजाय गौमूत्र को कीटनाशक के रूप में इस्तेमाल करते हैं. गाय के गोबर से बनी खाद को खेतों में डालते हैं, जिससे खेत की उर्वरा शक्ति बनी रहती और उपज भी स्वास्थ्यवर्धक हो.
फसल और सब्जी का कर रहे उत्पादन
औषधीय खेती के रूप में उन्होंने सतावर की खेती भी कर रखी है. करीब 50 बीघा क्षेत्रफल में उन्होंने विभिन्न किस्म की फसलों और सब्जी का उत्पादन कर रखा है. खेती की जो तकनीक उन्होंने अपना रखी है, उसमें काफी कम लागत आती है, लिहाजा मुनाफा भी अच्छा होता है. उन्होंने किसानों से आधुनिक खेती को अपनाकर जमीन की उर्वरा शक्ति को कायम रखते हुए स्वास्थ्यवर्धक खेती करने का आग्रह किया है.