सीतापुर: सोमवार को 100 साल पहले पंजाब के जलियांवाला बाग में रोलेट एक्ट के विरोध में एक जनसभा हो रही थी. इस दौरान जनरल डायर ने इस बाग में उपस्थित लोगों पर गोलियां चलवा दी थी. इस गोलीकांड में 400 से ज्यादा लोग शहीद हुए थे. आज पूरा देश उनकी शहादत को नमन कर रहा है.
'याद आता है सीतापुर जेल का इतिहास'
स्वतंत्रता आंदोलन का जिक्र आते ही हमारे देश की आजादी के लिए शहीद हुए लोगों की कुर्बानियां मन में ताजा हो जाती हैं. शहीदों की यादों के बहाने दूसरे घटनाक्रम भी ताजे हो जाते हैं. इसी कड़ी में आज सीतापुर का स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास भी याद आता है. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान सीतापुर जेल में 40 से ज्यादा स्वतंत्रता आंदोलनकारियों को फांसी दी गई थी.
'सीतापुर ने स्वतंत्रता आंदोलन में निभाई अग्रणी भूमिका'
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटा सीतापुर धर्म और अध्यात्म की नगरी के रूप में जाना जाता है. लेकिन सीतापुर ने स्वतंत्रता आंदोलन में भी अग्रणी भूमिका निभाई थी. यहां के जेल रिकॉर्ड से इस महत्वपूर्ण तथ्य को प्रमाणित भी किया जा सकता है.
इस जेल की स्थापना ब्रिटिश शासनकाल में वर्ष 1878 में की गई थी. जेल में उस समय तनहाई बैरक और फांसीघर भी बनाया गया था. जो आमतौर पर सभी जेलों में नहीं होता है. इस जेल के दस्तावेजों के मुताबिक यहां 40 से अधिक स्वतंत्रता आंदोलनकारियों को फांसी पर चढ़ाया गया. फांसी का यह सिलसिला आजादी के बाद भी चला और वर्ष 1970 में यहां आखिरी बार फांसी दी गई थी.
'सीतापुर जेल की हैं कई खासियतें'
सीतापुर जेल का इतिहास बस इतना ही नहीं है. इस जेल के पास कृषि योग्य जमीन का बड़ा क्षेत्रफल है. यहां लगभग 16-17 एकड़ जमीन पर खेती की जाती है. इस जमीन पर सब्जी का उत्पादन किया जाता है. यहां पैदा किया गया आलू और हरी सब्जी जेल के बंदियों में खपत के बाद लखीमपुर, हरदोई और लखनऊ की जेलों तक भेजा जाता है. इसके अलावा सीतापुर के परंपरागत बुनकर उद्योग को भी यहां जेल में ही संचालित किया जाता है. यहां तैयार की गई दरियों को पूरे प्रदेश की जेलों में भेजा जाता है.