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शामली: हिंदू करते हैं मस्जिद की हिफाजत, सैंकड़ों सालों से नहीं हुई अजान

उत्तर प्रदेश के शामली में हैवानियत की वजह से बदनाम गुलाम कादिर की रियासत अनदेखी का शिकार होने के कारण खंडहर में तब्दील होती जा रही है. अब देखना होगा कि क्या यह ऐतिहासिक धरोहर बचेगी या फिर महज मलबा बन जाएगी.

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इस मस्जिद में नहीं होती आजान.
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Published : Jan 18, 2020, 11:49 PM IST

Updated : Jan 19, 2020, 7:27 AM IST

शामली: इतिहास के पन्नों को जब हम पलटना शुरू करते हैं... तो खुद-ब-खुद मुगल सल्तनत के किस्सों से जुड़े राज हमारे सामने बेपर्दा होने की कोशिश करने लगते हैं... क्योंकि उस वक्त सियासत या तो कभी जुल्म की बेड़ियों में जकड़ी हुई नजर आई...या फिर बगावत की आग में जलती हुई...

इस मस्जिद में नहीं होती आजान.

उसी दौर में एक हैवानियत की वजह से बदनाम गुलाम कादिर...जिसने खजाने की लालच में हैवानियत की सारी हदों को पार कर दिया. गुलाम कादिर ने लाल किले पर कब्जा कर मुगल बादशाह शाह आलम की दोनों आंखें फोड़ दी थी. उसने किले की शहजादियों और महल की महिलाओं के साथ जो ज्यादती की थी, उन्हें लफ्जों में बयां करते हुए भी रूह कांप उठती है. गुलाम की हैवानियत की वजह से उसकी रियासत आज भी श्रापित है.

गुलाम की रियासत में एक मस्जिद बनी है, जहां सैंकड़ों सालों से अजान तक नहीं हो पाई है. खासबात यह है कि इस वीरान मस्जिद की हिफाजत हिंदुओं द्वारा की जाती है. जी हां हम बात कर रहे हैं मुगलकालीन रिसासत गौसगढ़ की, जो आज भी उत्तर प्रदेश के शामली जिले के जलालाबाद क्षेत्र में गौसगढ़ गांव के रूप में मौजूद है.

गौसगढ़ गांव जलालाबाद से दो किलोमीटर की दूरी पर कृष्णा नदी के पूर्वी छोर पर बसा हुआ है. 1760 से 1806 तक दिल्ली सल्तनत पर मुगल बादशाह शाह आलम(द्वितीय) काबिज थे, तब गौसगढ़ एक बहुत बड़ी रिसासत हुआ करती थी. बताया जाता है कि सन् 1940 के करीब अंग्रेजी हुकूमत के दौरान एक शख्श गुलाम कादिर के सूनसान महल और मस्जिद की सफाई के लिए पहुंचा था. उस समय लोगों के विरोध के बाद वहां पर साम्प्रदायिक सद्भाव बिगड़ने की नौबत आ गई थी. तब अंग्रेज अफसर मौके पर पहुंचे थे. अंग्रेज अफसरों ने फैसला सुनाया था कि गुलाम कादिर के महल में बनी मस्जिद में अजान नहीं होगी और कोई भी हिंदू अब महल और मस्जिद को नुकसान नहीं पहुंचाएगा. इसके बाद से आज तक महल में बनी मस्जिद में अजान नहीं हुई है.

1728 में जाब्ते खां की मौत के बाद बादशाह ने गुलाम कादिर को बधिया कर आजाद कर दिया था, ताकि गुलाम कादिर का गद्दार वंश आगे न बढ़ सके. लेकिन जब गुलाम ने लाल किले पर कब्जा कर लिया, तब बादशाह शाह आलम द्वितीय के मदद मांगने पर मराठा सैनिकों ने लाल किले पर हमला कर दिया था. इसके बाद गुलाम कादिर वहां से भाग निकला. गुलाम कादिर की तलाश में मराठा फौज गौसगढ़ भी पहुंची थी. मराठा सैनिकों ने बाद में गुलाम को ढूंढकर उसके शरीर के अंगों को कई हिस्सों में कर बादशाह के पास भिजवाया था. मराठाओं के हमले के बाद आज तक गौसगढ़ में गुलाम कादिर का महल वीरान ही पड़ा हुआ है.

ऐतिहासिक विरासत पर संकट
मुगल, मराठा और रूहेला सरदारों के इतिहास को संजोए गौसगढ़ में काफी पुराना किला और मस्जिद है, जो सदियों पहले की कहानी बयां कर रहे हैं, लेकिन अनदेखी के चलते इस ऐतिहासिक धरोहर का नामोनिशान जमींदोज होता जा रहा है. किला बेहद ही जर्जर हालत में है और खंडहर में तब्दील हो चुका है, जिसको देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि इस ऐतिहासिक विरासत पर खतरा मंडराता दिख रहा है.

शामली: इतिहास के पन्नों को जब हम पलटना शुरू करते हैं... तो खुद-ब-खुद मुगल सल्तनत के किस्सों से जुड़े राज हमारे सामने बेपर्दा होने की कोशिश करने लगते हैं... क्योंकि उस वक्त सियासत या तो कभी जुल्म की बेड़ियों में जकड़ी हुई नजर आई...या फिर बगावत की आग में जलती हुई...

इस मस्जिद में नहीं होती आजान.

उसी दौर में एक हैवानियत की वजह से बदनाम गुलाम कादिर...जिसने खजाने की लालच में हैवानियत की सारी हदों को पार कर दिया. गुलाम कादिर ने लाल किले पर कब्जा कर मुगल बादशाह शाह आलम की दोनों आंखें फोड़ दी थी. उसने किले की शहजादियों और महल की महिलाओं के साथ जो ज्यादती की थी, उन्हें लफ्जों में बयां करते हुए भी रूह कांप उठती है. गुलाम की हैवानियत की वजह से उसकी रियासत आज भी श्रापित है.

गुलाम की रियासत में एक मस्जिद बनी है, जहां सैंकड़ों सालों से अजान तक नहीं हो पाई है. खासबात यह है कि इस वीरान मस्जिद की हिफाजत हिंदुओं द्वारा की जाती है. जी हां हम बात कर रहे हैं मुगलकालीन रिसासत गौसगढ़ की, जो आज भी उत्तर प्रदेश के शामली जिले के जलालाबाद क्षेत्र में गौसगढ़ गांव के रूप में मौजूद है.

गौसगढ़ गांव जलालाबाद से दो किलोमीटर की दूरी पर कृष्णा नदी के पूर्वी छोर पर बसा हुआ है. 1760 से 1806 तक दिल्ली सल्तनत पर मुगल बादशाह शाह आलम(द्वितीय) काबिज थे, तब गौसगढ़ एक बहुत बड़ी रिसासत हुआ करती थी. बताया जाता है कि सन् 1940 के करीब अंग्रेजी हुकूमत के दौरान एक शख्श गुलाम कादिर के सूनसान महल और मस्जिद की सफाई के लिए पहुंचा था. उस समय लोगों के विरोध के बाद वहां पर साम्प्रदायिक सद्भाव बिगड़ने की नौबत आ गई थी. तब अंग्रेज अफसर मौके पर पहुंचे थे. अंग्रेज अफसरों ने फैसला सुनाया था कि गुलाम कादिर के महल में बनी मस्जिद में अजान नहीं होगी और कोई भी हिंदू अब महल और मस्जिद को नुकसान नहीं पहुंचाएगा. इसके बाद से आज तक महल में बनी मस्जिद में अजान नहीं हुई है.

1728 में जाब्ते खां की मौत के बाद बादशाह ने गुलाम कादिर को बधिया कर आजाद कर दिया था, ताकि गुलाम कादिर का गद्दार वंश आगे न बढ़ सके. लेकिन जब गुलाम ने लाल किले पर कब्जा कर लिया, तब बादशाह शाह आलम द्वितीय के मदद मांगने पर मराठा सैनिकों ने लाल किले पर हमला कर दिया था. इसके बाद गुलाम कादिर वहां से भाग निकला. गुलाम कादिर की तलाश में मराठा फौज गौसगढ़ भी पहुंची थी. मराठा सैनिकों ने बाद में गुलाम को ढूंढकर उसके शरीर के अंगों को कई हिस्सों में कर बादशाह के पास भिजवाया था. मराठाओं के हमले के बाद आज तक गौसगढ़ में गुलाम कादिर का महल वीरान ही पड़ा हुआ है.

ऐतिहासिक विरासत पर संकट
मुगल, मराठा और रूहेला सरदारों के इतिहास को संजोए गौसगढ़ में काफी पुराना किला और मस्जिद है, जो सदियों पहले की कहानी बयां कर रहे हैं, लेकिन अनदेखी के चलते इस ऐतिहासिक धरोहर का नामोनिशान जमींदोज होता जा रहा है. किला बेहद ही जर्जर हालत में है और खंडहर में तब्दील हो चुका है, जिसको देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि इस ऐतिहासिक विरासत पर खतरा मंडराता दिख रहा है.

Intro:मुगल सल्तनत के इतिहास में गुलाम कादिर का नाम हैवानियत की वजह से मशहूर है. उसने खजाने की चाहत में लाल किले पर कब्जा कर मुगल बादशाह की दोनों आंखे फोड़ दी थी. शहजादियों और महल की महिलाओं के साथ जो ज्यादतियां की थी, उन्हें सुनकर आज भी लोगों रूह कांप उठती है. गुलाम की हैवानियत की वजह से उसकी रियासत आज भी श्रापित है. रिसायत में बनी मस्जिद में सैंकड़ों सालों से अजान तक नही हो पाई है. खास बात यह है कि इस वीरान मस्जिद की हिफाजत हिंदुओं द्वारा की जाती है.Body:शामली: हम बात कर रहे हैं मुगलकालीन रिसासत गौंसगढ़ की, जो आज भी उत्तर प्रदेश के शामली जिले के जलालाबाद क्षेत्र में गौसगढ़ गांव के रूप में मौजूद है. गौंसगढ़ गांव जलालाबाद से दो किलोमीटर की दूरी पर कृष्णा नदी के पूर्वी छोर पर बसा हुआ है. 1760 से 1806 तक दिल्ली सल्तनत पर मुगल बादशाह शाह आलम(द्वितीय) काबिज थे, तब गौंसगढ़ एक बहुत बड़ी रिसासत हुआ करती थी.

क्या है यहां का इतिहास?
. गौसगढ़ रियासत पर रूहेला सरदारों का कब्जा हुआ करता था.
. रियासत के नवाब नजीब खां दिल्ली शासन में वजीर थे.
. नजीब की मौत के बाद बादशाह ने उसके बेटे जाब्ते खां को यह पद नही दिया था.
. जाब्ते खां ने दिल्ली सल्तनत से विद्रोह कर दिया था.
. विद्रोह का दबाने के लिए मुगल फौज ने गौसगढ़ पर हमला कर दिया था.
. इस हमले में काफी सैनिक मारे जाने के बाद जाब्ते खां ने एक समझौते के तहत युद्ध समाप्त कर दिया था.
. उसने भविष्य में विद्रोह नही करने की जमानत के रूप में अपने बेटे गुलाम कादिर को बादशाह के हवाले कर दिया था.

गुलाम को कर दिया गया था बधिया
1728 में जाब्ते खां की मौत के बाद बादशाह ने गुलाम कादिर को बधिया कर आजाद कर दिया था, ताकि गुलाम कादिर का गद्दार वंश आगे न बढ़ सके. अपनी शक्ति बढ़ाने के बाद बदला लेने के लिए गुलाम कादिर ने 1788 को लाल किले पर हमला कर कब्जा कर लिया था. सल्तनत के खजाने के लिए उसने बादशाह की दोनों आंखें तक फोड़ दी थी. महिलाओं के साथ भी ज्यादती की गई थी.

मराठा सैनिकों ने सिखाया था सबक
बादशाह शाह आलम द्वितीय के मद्द मांगने पर मराठा सैनिकों ने लाल किले पर हमला कर दिया था. इसके बाद गुलाम कादिर वहां से भाग निकला था. गुलाम कादिर की तलाश में मराठा फौज गौंसगढ़ भी पहुंची थी. मराठा सैनिकों ने बाद में गुलाम को ढूंढकर उसके शरीर के अंगों को कई हिस्सों में कर बादशाह के पास भिजवाया था. मराठों के हमले के बाद आज तक गौसगढ़ में गुलाम कादिर का महल वीरान पड़ा हुआ है.

महल में बनी है मस्जिद, नही होती अजान
बताया जाता है कि सन 1940 के करीब अंग्रेजी हुकूमत के दोरान एक शख्श गुलाम कादिर के सुनसान महल और मस्जिद की सफाई के लिए पहुंचा था. उस समय लोगों के विरोध के बाद वहां पर साम्प्रदायिक सद्भाव बिगड़ने की नौबत आ गई थी. तब अंग्रेज अफसर मौके पर पहुंचे थे. अंग्रेज अफसरों ने फैसला सुनाया था कि गुलाम कादिर के महल में बनी मस्जिद में अजान नही होगी और कोई भी हिंदु अब महल और मस्जिद को नुकसान नही पहुंचायेगा. इसके बाद से आज तक महल में बनी मस्जिद में अजान तक नही हुई है.Conclusion:
ऐतिहासिक विरासत पर संकट
मुगल, मराठा और रूहेला सरदारों के इतिहास को संजोए गौसगढ़ में काफी पुराना किला और मस्जिद है, जो सदियों पहले की कहानी ब्यां कर रहे हैं, लेकिन अनदेखी के चलते इस ऐतिहासिक धरोहर का नामोंनिशान मिटता जा रहा है. किला बेहद खस्ताहाल में हैं, जिसमें बड़ी—बड़ी झाडियां उगी हुई हैं.

बाइट 1: जोगराज, बुजुर्ग ग्रामीण
बाइट 2: चंदर, बुजुर्ग ग्रामीण

नोट: स्टोरी रेडी पैकेज के रूप में रैप से भेजी गई है.

रिपोर्टर: सचिन शर्मा
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Last Updated : Jan 19, 2020, 7:27 AM IST
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