शामली: दीपावली पर कुम्हार मिट्टी के दीये बना रहे हैं. ताकि कुछ कमाई कर सकें और लोग मिट्टी के दीयों से पारंपरिक दीपावली मनाते हुए अपनी परंपराओं को संजोए रख सकें, क्योंकि मिट्टी का दीया कहीं न कहीं इस बात का संदेश देता है कि पर्व त्योहार को मनाते वक्त हम अपनी मिट्टी से भी जुड़े रहें, लेकिन विडंबना यह भी है कि जो लोग हमें त्योहारों में जमीन से जोड़कर रखने का काम कर रहे हैं, शायद उन्हीं की कद्र हम नहीं कर पा रहे हैं और वे बड़ा ही कठिन जीवन जीने को मजबूर हैं.
कुम्हारों को दीपावली पर अच्छी कमाई की आस
शामली जिले के कस्बा बनत में पहुंचने पर आपको आसानी से चाक पर चलते हाथ और मिट्टी से दीये तैयार करते बूढ़े कुम्हार देखने को मिल जाएंगे. यहां रहने वाले कुम्हार परिवार इन दिनों दीपावली के लिए दीये बनाने में जुटे हुए हैं. अलग -अलग जगहों पर मिट्टी के चाक चल रहे हैं. चाक पर मिट्टी से सने हाथ बस दीये बनाने की धुन में हैं, ताकि इस दीपावली कुछ अच्छी कमाई हो जाए.
इन मिट्टियों की कीमत कोई क्या देगा
कुम्हार देशपाल बताते हैं कि वह सुबह भोजन कर मिट्टी और पानी लेकर चाक पर बैठे जाते हैं. मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए दिन-रात मेहनत कर करते हैं. रथली, घड़े, दीये और सराई बना रहे हैं. उन्होंने बताया कि दीपावली तक उन्होंने एक लाख रूपए तक का माल बनाने की ठानी है. मिट्टी महंगी है, जिसकी एक ट्राली चार हजार रूपए में पड़ती है. वह दीपावली पर अच्छी कमाई की उम्मीद रखते हैं, लेकिन उनका कहना है कि इतनी मेहनत के बावजूद भी सिर्फ मजदूरी ही निकल पाती है.
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मेहनत ज्यादा, कमाई कम
कुम्हार संजीव कुमार बताते हैं कि यह हमारा पेशा है. इससे बस दो वक्त का पेट भर जाता है नहीं तो इस पेशे में कुछ नहीं रखा है. उनका कहना है कि पूर्वजों से सौगात में मिला हुनर है बस इसलिए इसे जिंदा रखे हुए हैं. दीपावली पर लोग अब भी मिट्टी के दीये जलाना पसंद करते हैं, इसलिए थोड़ी बहुत हमारी भी कमाई हो जाती है.
चाइनीज आइटम्स ने बिगाड़े हालात
कुम्हारों को मिट्टी के दीये बनाने के लिए न तो आसानी से मिट्टी मिल पाती है, न ही जलाने के लिए लकड़ी व कंडे. वे दिन-रात संघर्ष कर इन चीजों को जुटाते हैं, लेकिन बाजार में लोग इनके सामानों को नजर अंदाज करने लगे हैं, क्योंकि लुभावना और सस्ता चाइनीज आइटम जो बाजारों में बिक रहा है. यही कारण है कि बाजार में मिट्टी के दीयों की मांग कम हो गई है, जिसके कारण दीये बनाने वाले कुम्हार और उनके परिवार पर आर्थिक बोझ बढ़ गया है.