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...तो क्या पुश्तैनी काम छोड़ने को मजबूर हो जाएंगे कुम्हार परिवार - उत्तर प्रदेश समाचार

मिट्टी को आकार देने वाले कुम्हार परिवारों पर रोजी-रोटी का संकट दिख रहा है. आधुनिकता का ये दौर उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं है. अपने वजूद के साथ पुश्तैनी काम को करने के लिए उन्हें तमाम तरह की परेशानियों सामना करना पड़ रहा है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट.
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Published : Oct 6, 2019, 4:45 PM IST

शामली: दीपावली पर कुम्हार मिट्टी के दीये बना रहे हैं. ताकि कुछ कमाई कर सकें और लोग मिट्टी के दीयों से पारंपरिक दीपावली मनाते हुए अपनी परंपराओं को संजोए रख सकें, क्योंकि मिट्टी का दीया कहीं न कहीं इस बात का संदेश देता है कि पर्व त्योहार को मनाते वक्त हम अपनी मिट्टी से भी जुड़े रहें, लेकिन विडंबना यह भी है कि जो लोग हमें त्योहारों में जमीन से जोड़कर रखने का काम कर रहे हैं, शायद उन्हीं की कद्र हम नहीं कर पा रहे हैं और वे बड़ा ही कठिन जीवन जीने को मजबूर हैं.

देखें स्पेशल रिपोर्ट.

कुम्हारों को दीपावली पर अच्छी कमाई की आस
शामली जिले के कस्बा बनत में पहुंचने पर आपको आसानी से चाक पर चलते हाथ और मिट्टी से दीये तैयार करते बूढ़े कुम्हार देखने को मिल जाएंगे. यहां रहने वाले कुम्हार परिवार इन दिनों दीपावली के लिए दीये बनाने में जुटे हुए हैं. अलग -अलग जगहों पर मिट्टी के चाक चल रहे हैं. चाक पर मिट्टी से सने हाथ बस दीये बनाने की धुन में हैं, ताकि इस दीपावली कुछ अच्छी कमाई हो जाए.

इन मिट्टियों की कीमत कोई क्या देगा
कुम्हार देशपाल बताते हैं कि वह सुबह भोजन कर मिट्टी और पानी लेकर चाक पर बैठे जाते हैं. मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए दिन-रात मेहनत कर करते हैं. रथली, घड़े, दीये और सराई बना रहे हैं. उन्होंने बताया कि दीपावली तक उन्होंने एक लाख रूपए तक का माल बनाने की ठानी है. मिट्टी महंगी है, जिसकी एक ट्राली चार हजार रूपए में पड़ती है. वह दीपावली पर अच्छी कमाई की उम्मीद रखते हैं, लेकिन उनका कहना है कि इतनी मेहनत के बावजूद भी सिर्फ मजदूरी ही निकल पाती है.

पढ़ें- शामली: 40 हजार का इनामी बदमाश 'बंदर' गिरफ्तार, 13 से अधिक दर्ज थे मुकदमे

मेहनत ज्यादा, कमाई कम
कुम्हार संजीव कुमार बताते हैं कि यह हमारा पेशा है. इससे बस दो वक्त का पेट भर जाता है नहीं तो इस पेशे में कुछ नहीं रखा है. उनका कहना है कि पूर्वजों से सौगात में मिला हुनर है बस इसलिए इसे जिंदा रखे हुए हैं. दीपावली पर लोग अब भी मिट्टी के दीये जलाना पसंद करते हैं, इसलिए थोड़ी बहुत हमारी भी कमाई हो जाती है.

चाइनीज आइटम्स ने बिगाड़े हालात
कुम्हारों को मिट्टी के दीये बनाने के लिए न तो आसानी से मिट्टी मिल पाती है, न ही जलाने के लिए लकड़ी व कंडे. वे दिन-रात संघर्ष कर इन चीजों को जुटाते हैं, लेकिन बाजार में लोग इनके सामानों को नजर अंदाज करने लगे हैं, क्योंकि लुभावना और सस्ता चाइनीज आइटम जो बाजारों में बिक रहा है. यही कारण है कि बाजार में मिट्टी के दीयों की मांग कम हो गई है, जिसके कारण दीये बनाने वाले कुम्हार और उनके परिवार पर आर्थिक बोझ बढ़ गया है.

शामली: दीपावली पर कुम्हार मिट्टी के दीये बना रहे हैं. ताकि कुछ कमाई कर सकें और लोग मिट्टी के दीयों से पारंपरिक दीपावली मनाते हुए अपनी परंपराओं को संजोए रख सकें, क्योंकि मिट्टी का दीया कहीं न कहीं इस बात का संदेश देता है कि पर्व त्योहार को मनाते वक्त हम अपनी मिट्टी से भी जुड़े रहें, लेकिन विडंबना यह भी है कि जो लोग हमें त्योहारों में जमीन से जोड़कर रखने का काम कर रहे हैं, शायद उन्हीं की कद्र हम नहीं कर पा रहे हैं और वे बड़ा ही कठिन जीवन जीने को मजबूर हैं.

देखें स्पेशल रिपोर्ट.

कुम्हारों को दीपावली पर अच्छी कमाई की आस
शामली जिले के कस्बा बनत में पहुंचने पर आपको आसानी से चाक पर चलते हाथ और मिट्टी से दीये तैयार करते बूढ़े कुम्हार देखने को मिल जाएंगे. यहां रहने वाले कुम्हार परिवार इन दिनों दीपावली के लिए दीये बनाने में जुटे हुए हैं. अलग -अलग जगहों पर मिट्टी के चाक चल रहे हैं. चाक पर मिट्टी से सने हाथ बस दीये बनाने की धुन में हैं, ताकि इस दीपावली कुछ अच्छी कमाई हो जाए.

इन मिट्टियों की कीमत कोई क्या देगा
कुम्हार देशपाल बताते हैं कि वह सुबह भोजन कर मिट्टी और पानी लेकर चाक पर बैठे जाते हैं. मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए दिन-रात मेहनत कर करते हैं. रथली, घड़े, दीये और सराई बना रहे हैं. उन्होंने बताया कि दीपावली तक उन्होंने एक लाख रूपए तक का माल बनाने की ठानी है. मिट्टी महंगी है, जिसकी एक ट्राली चार हजार रूपए में पड़ती है. वह दीपावली पर अच्छी कमाई की उम्मीद रखते हैं, लेकिन उनका कहना है कि इतनी मेहनत के बावजूद भी सिर्फ मजदूरी ही निकल पाती है.

पढ़ें- शामली: 40 हजार का इनामी बदमाश 'बंदर' गिरफ्तार, 13 से अधिक दर्ज थे मुकदमे

मेहनत ज्यादा, कमाई कम
कुम्हार संजीव कुमार बताते हैं कि यह हमारा पेशा है. इससे बस दो वक्त का पेट भर जाता है नहीं तो इस पेशे में कुछ नहीं रखा है. उनका कहना है कि पूर्वजों से सौगात में मिला हुनर है बस इसलिए इसे जिंदा रखे हुए हैं. दीपावली पर लोग अब भी मिट्टी के दीये जलाना पसंद करते हैं, इसलिए थोड़ी बहुत हमारी भी कमाई हो जाती है.

चाइनीज आइटम्स ने बिगाड़े हालात
कुम्हारों को मिट्टी के दीये बनाने के लिए न तो आसानी से मिट्टी मिल पाती है, न ही जलाने के लिए लकड़ी व कंडे. वे दिन-रात संघर्ष कर इन चीजों को जुटाते हैं, लेकिन बाजार में लोग इनके सामानों को नजर अंदाज करने लगे हैं, क्योंकि लुभावना और सस्ता चाइनीज आइटम जो बाजारों में बिक रहा है. यही कारण है कि बाजार में मिट्टी के दीयों की मांग कम हो गई है, जिसके कारण दीये बनाने वाले कुम्हार और उनके परिवार पर आर्थिक बोझ बढ़ गया है.

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दीपावली ऐसा त्यौहार है, जो हमें अपनी जमीन और अपने करीबियों से जोड़े रखता है. बदलते वक्त के साथ—साथ इस त्योहार को मनाने के तरीके भी बदल चुके हैं. दीपावली पर चाइनीज लाइटें, धार्मिक मूर्तियां, दीये और पटाखे बाजारों पर हावी हो रहे हैं, लेकिन कुछ ऐसे लोग हैं जो अपनी उंगलियों के जादू के दम पर चाइना के सामने वजूद की जंग लड़ रहे हैं. मिट्टी को आकार देने वाले कुम्हारों को इस त्यौहार पर देश के लोगों के सहयोग की जरूरत है. Body:
शामली: दीपावली पर कुम्हार मिट्टी के दीये बना रहे हैं. ताकि कुछ कमाई कर सकें और लोग मिट्ठी के दीयों से पारंपरिक दीपावली मनाते हुए अपनी परंपराओं को संजोए रख सकें, क्योंकि मिट्टी का दिया कहीं ना कहीं इस बात का संदेश देता है कि पर्व त्योहार को मनाते वक्त हम अपनी मिट्टी से भी जुड़े रहे, लेकिन विडंबना यह भी है कि जो लोग हमें त्योहारों में जमीन से जोड़कर रखने का काम कर रहे हैं, उन्हीं की कद्र शायद हम नहीं कर पा रहे हैं और वह बड़ा ही कठिन जीवन जीने को मजबूर हैं.

अच्छी कमाई की आस
शामली जिले के कस्बा बनत में पहुंचने पर आपको आसानी से चाक पर चलते हाथ और मिट्टी से तैयार होते दीये बूढ़े हाथ और उंगलियों का जादू दीये की खूबसूरती में देखने को मिल जाएगा. यहां रहने वाले कुम्हार परिवार इन दिनों दीपावली के लिए दीये बनाने में जुटे हुए हैं. अलग -अलग जगहों पर मिट्टी के चाक चल रहे हैं. चाक पर मिट्टी से सने हाथ बस दीये बनाने की धुन है. ताकि इस दीपावली कुछ अच्छी कमाई हो जाये.

इन मिट्टियों की कीमत कोई क्या देगा
कुम्हार देशपाल बताते हैं कि वें सुबह भोजन कर मिट्टी और पानी लेकर चाक पर बैठे जाते हैं. वें दिन और रात में लगातार मेहनत कर करवें, रथली, घडे, दीये और सराई बना रहे हैं. उन्होंने बताया कि दीपावली तक उन्होंने एक लाख रूपए तक का माल बनाने की ठानी है. मिट्टी महंगी है, जिसकी एक ट्राली चार हजार रूपए में पड़ती है. वें दीपावली पर अच्छी कमाई की उम्मीद रखते हैं, पर इतनी मेहनत के बावजूद भी सिर्फ मजदूरी ही निकल पाती है.

मेहनत ज्यादा, कमाई कम
कुम्हार संजीव कुमार बताते हैं कि यह हमारा पेशा है. इससे बस दो वक्त का पेट भर जाता है. वरना इस पेशे में कुछ नहीं रखा है. पूर्वजों से सौगात में मिली हुनर है. बस इसे जिंदा रखे हुए है. दीपावली पर लोग अब भी मिट्टी के दीये जलाना पसंद करते है. इसलिए थोड़ी बहुत हमारी भी कमाई हो जाती है.Conclusion:
चाइनीज माल ने बिगाड़े हालात
कुम्हारों को मिट्टी के दीये बनाने के लिए न तो आसानी से मिट्टी मिल पाती है, न ही जलावन के लिए लकड़ी व कंडे. वें दिन रात संघर्ष कर इन चीजों को जुटाते हैं, लेकिन बाजार में लोग इनके सामानों को नजर अंदाज करने लगे हैं, क्योंकि लुभावना और सस्ता चाइनीज माल जो बाजारों में बिक रहा है. यही कारण है कि बाजार में मिट्टी के दीयों की मांग कम हो गयी है, जिसके कारण दीये बनाने वाले कुम्हार और उनके परिवार पर आर्थिक बोझ बढ़ गया है.

बाइट 1 : संजीव कुमार, कुम्हार
बाइट 2: देशपाल, कुम्हार

Reporter: sachin sharma
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