शामली: 14 फरवरी 2019 को जम्मू कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आतंकी हमले में जिले के बनत कस्बा निवासी 37 वर्षीय प्रदीप कुमार शहीद हो गए थे. शहीद के पिता जगदीश ने बताया कि उन्हें गर्व है कि उनका बेटा देश के लिए शहीद हुआ है, लेकिन बेटे की कमी हमेशा खलती है. उनको सरकार से कोई शिकायत नहीं है, क्योंकि सरकार ने बेटे की शहादत का बदला ले लिया है. शहीद के पिता ने देश के प्रधानमंत्री की तारीफ करते हुए कहा कि देश को उनकी जरूरत है.
2003 में भर्ती हुए थे प्रदीप
प्रदीप वर्ष 2003 में सीआरपीएफ में भर्ती हुए थे. उनकी पत्नी कामिनी और दो बेटे सिद्धार्थ और दुष्यंत फिलहाल गाजियाबाद में रहते हैं. गांव में रहने वाले पिता जगदीश भी अब गाजियाबाद में रहकर शहीद बेटे के परिवार की देख-रेख कर रहे हैं. बड़ा बेटा सिद्धार्थ फिलहाल अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहता है. इसी वजह से अभी तक उसने सरकार द्वारा दी गई नौकरी को ज्वाइन नहीं किया है.
परिवार का कहना है कि शामली के डीएम अखिलेश कुमार उनकी विशेष मदद कर रहे हैं. परिवार के लोगों को कहना है कि सिद्धार्थ की पढ़ाई पूरी होने तक डीएम ने सरकारी नौकरी को होल्ड पर रखने के आदेश दे दिए हैं, जिसकी प्रति शहीद परिवार को भी उपलब्ध कराई गई है.
देश को ऐसे प्रधानमंत्री की है जरूरत
शहीद प्रदीप के पिता जगदीश ने ईटीवी भारत को बताया कि देश की सरकार ने पुलवामा हमले का बदला ले लिया है. केंद्र और प्रदेश सरकार ने सभी वादे भी पूरे कर दिए हैं. शहीद बेटे से जुड़ी यादों के बारे में पूछने पर उन्होंने नम आंखों से बताया कि बेटे पर गर्व होता है, क्योंकि उसने देश के लिए अपना बलिदान दिया.
शहीद के पिता ने कहते हैं कि देश के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और यूपी के मुख्यमंत्री बहुत ही सराहनीय काम कर रहे हैं. देश में कोई भी गलत काम नहीं किया जा रहा है, लेकिन विपक्ष छोटी-छोटी बातों को जरिए उन्हें बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं. जगदीश ने बताया कि माननीय प्रधानमंत्री बहुत अच्छे इंसान हैं, हम चाहते हैं कि देश को आगे भी ऐसे ही प्रधानमंत्री मिलें.
सेना की बहादुरी के किस्से सुनाते थे प्रदीप
परिजनों ने बताया कि प्रदीप जब भी घर आते थे तो परिवार और गांव समाज के लोगों को सैनिकों की बहादुरी के किस्से सुनाया करते थे. वे लोगों को बताते थे कि सेना किस तरह से आतंकियों का मुकाबला करती है.
देश की रक्षा के लिए तैनात जवानों पर कश्मीर में पत्थरबाजी के किस्से सुनकर परिवार के लोग और दोस्त उन्हें ड्यूटी के दौरान ऐतिहात बरतने के लिए भी कहते थे, लेकिन अब वह लोग ही शहीद प्रदीप की बहादुरी के किस्से सुनाते नजर आते हैं.
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