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शहीदों की जयकार, संग्रहालय की मांग पर चुप है सरकार

उत्तर प्रदेश का शाहजहांपुर जिला अमर शहीदों की धरती है. यह पं. राम प्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खान की जन्मभूमि है. काकोरी कांड की रूपरेखा भी यहीं बनी. क्षेत्र के लोग राम प्रसाद बिस्मिल के पुश्तैनी घर को संग्रहालय बनाने की मांग कई बार कर चुके हैं पर अभी तक शासन-प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया है.

काकोरी कांड के अमर शहीद
काकोरी कांड के अमर शहीद
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Published : Jan 3, 2021, 1:49 PM IST

शाहजहांपुरः उत्तर प्रदेश का शाहजहांपुर जिला शहीदों की नगरी के नाम से जाना जाता है. यहां पं. राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खान, देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए थे. अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान की दोस्ती गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश करती है. देश की आजादी में इतना बड़ा योगदान करने के बावजूद भी पं. राम प्रसाद बिस्मिल का घर अभी तक ऐतिहासिक धरोहर नहीं बनाया जा सका है. जिले से इस मांग को पहले कई बार उठाया जा चुका है लेकिन हर बार संग्रहालय की मांग को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है.

काकोरी कांड के अमर शहीद

इसी धरती पर बनी काकोरी कांड की रूपरेखा
शाहजहांपुर जिला पं. राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खान की जन्मस्थली है. यहां के आर्य समाज मंदिर में काकोरी कांड की रूपरेखा रची गई थी. इसे 9 अगस्त 1927 को अंजाम तक पहुंचाया गया था. काकोरी कांड के बाद राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खान को अंग्रेजी हुकूमत ने जेल में डाल दिया था. 19 दिसंबर 1927 को तीनों क्रांतिकारियों को अलग-अलग जेलों में फांसी दे दी गई थी.

दोस्ती बनी मिसाल
इन्हीं क्रांतिकारियों की यादों को शाहजहांपुरवासी अपने दिलों में लिए घूमते हैं. राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान की अटूट दोस्ती की लोग कसमें खाते हैं. दोनों क्रांतिकारी यहां के मिशन स्कूल में पढ़ते थे. उसके बाद आर्य समाज मंदिर में बैठकर देश की आजादी के लिए कार्य योजना तैयार करते थे. पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के पिता आर्य समाज मंदिर के पुजारी थे और अशफाक उल्ला खान मुसलमान थे. बावजूद इसके दोनों में गहरी दोस्ती थी. दोनों एक ही थाली में खाना खाते और आर्य समाज मंदिर में अपना ज्यादा से ज्यादा समय बिताते थे.

पुश्तैनी घर बदहाल
शहर के मोहल्ला खिरनी बाग की तंग गलियों में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का पुश्तैनी घर है. इसको बिस्मिल की फांसी के बाद बदहाली की स्थिति में उनकी मां मूलमती ने बेच दिया था, क्योंकि बिस्मिल की मां लोगों के घरों पर काम करके बमुश्किल अपना गुजारा चला पाती थीं. आज भी बिस्मिल का घर उन्हीं तंग गलियों में बदहाली की स्थिति में है. इसमें कश्यप परिवार रह रहा है. जिले के बाशिंदों ने कई बार बिस्मिल के मकान को संग्रहालय बनाने की मांग उठाई लेकिन उनको सिर्फ अभी तक आश्वासन ही मिला है. कांग्रेस के बड़े नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद से लेकर भारतीय जनता पार्टी के वित्त मंत्री सुरेश कुमार खन्ना तक से जनपदवासी मांग कर चुके हैं लेकिन उनकी मांग ठंडे बस्ते में डाल दी जाती है. आपको बता दें कि देश के कई शहरों में राम प्रसाद बिस्मिल के नाम पर संग्रहालय बने हुए हैं. इतना ही नहीं तुर्की राष्ट्र में उनके नाम पर शहर बसा हुआ है, लेकिन बिस्मिल की जन्मस्थली पर उनका कोई भी संग्रहालय नहीं है. यहां तक की उनके मकान पर भी कब्जा है.

शाहजहांपुरः उत्तर प्रदेश का शाहजहांपुर जिला शहीदों की नगरी के नाम से जाना जाता है. यहां पं. राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खान, देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए थे. अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान की दोस्ती गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश करती है. देश की आजादी में इतना बड़ा योगदान करने के बावजूद भी पं. राम प्रसाद बिस्मिल का घर अभी तक ऐतिहासिक धरोहर नहीं बनाया जा सका है. जिले से इस मांग को पहले कई बार उठाया जा चुका है लेकिन हर बार संग्रहालय की मांग को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है.

काकोरी कांड के अमर शहीद

इसी धरती पर बनी काकोरी कांड की रूपरेखा
शाहजहांपुर जिला पं. राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खान की जन्मस्थली है. यहां के आर्य समाज मंदिर में काकोरी कांड की रूपरेखा रची गई थी. इसे 9 अगस्त 1927 को अंजाम तक पहुंचाया गया था. काकोरी कांड के बाद राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खान को अंग्रेजी हुकूमत ने जेल में डाल दिया था. 19 दिसंबर 1927 को तीनों क्रांतिकारियों को अलग-अलग जेलों में फांसी दे दी गई थी.

दोस्ती बनी मिसाल
इन्हीं क्रांतिकारियों की यादों को शाहजहांपुरवासी अपने दिलों में लिए घूमते हैं. राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान की अटूट दोस्ती की लोग कसमें खाते हैं. दोनों क्रांतिकारी यहां के मिशन स्कूल में पढ़ते थे. उसके बाद आर्य समाज मंदिर में बैठकर देश की आजादी के लिए कार्य योजना तैयार करते थे. पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के पिता आर्य समाज मंदिर के पुजारी थे और अशफाक उल्ला खान मुसलमान थे. बावजूद इसके दोनों में गहरी दोस्ती थी. दोनों एक ही थाली में खाना खाते और आर्य समाज मंदिर में अपना ज्यादा से ज्यादा समय बिताते थे.

पुश्तैनी घर बदहाल
शहर के मोहल्ला खिरनी बाग की तंग गलियों में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का पुश्तैनी घर है. इसको बिस्मिल की फांसी के बाद बदहाली की स्थिति में उनकी मां मूलमती ने बेच दिया था, क्योंकि बिस्मिल की मां लोगों के घरों पर काम करके बमुश्किल अपना गुजारा चला पाती थीं. आज भी बिस्मिल का घर उन्हीं तंग गलियों में बदहाली की स्थिति में है. इसमें कश्यप परिवार रह रहा है. जिले के बाशिंदों ने कई बार बिस्मिल के मकान को संग्रहालय बनाने की मांग उठाई लेकिन उनको सिर्फ अभी तक आश्वासन ही मिला है. कांग्रेस के बड़े नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद से लेकर भारतीय जनता पार्टी के वित्त मंत्री सुरेश कुमार खन्ना तक से जनपदवासी मांग कर चुके हैं लेकिन उनकी मांग ठंडे बस्ते में डाल दी जाती है. आपको बता दें कि देश के कई शहरों में राम प्रसाद बिस्मिल के नाम पर संग्रहालय बने हुए हैं. इतना ही नहीं तुर्की राष्ट्र में उनके नाम पर शहर बसा हुआ है, लेकिन बिस्मिल की जन्मस्थली पर उनका कोई भी संग्रहालय नहीं है. यहां तक की उनके मकान पर भी कब्जा है.

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