भदोहीः कृषि केंद्र की प्रयोगशाला में कई कृषि वैज्ञानिकों ने अपने विचार रखे. उन्होंने किसानों को किस तरीके से फसलों को बीमारियों से बचाने के उपाय बताये. वैज्ञानिकों ने किस मौसम में कौन सी फसल का उत्पादन ज्यादा होगा, इसके बारे में भी लोगों को बताया. वेजवां कृषि विज्ञान केंद्र के फसल सुरक्षा विशेषज्ञ डॉक्टर मनोज कुमार पाण्डेय ने कहा कि आलू में झुलसा रोग और लीफ वायरस रोग का प्रकोप लगातार बढ़ रहा है. जिसकी वजह मौसम में हो रहे बदलाव से बिना बीज शोघन के आलू की बुवाई और रोगग्रस्त बीजों के इस्तेमाल को बताया है.
फसलों में बीमारी का प्रकोप
झुलसा बीमारी और फफूंदी का प्रकोप इनसे ग्रसित आलू के बीजों को बोने से ही फैलता है. इसलिए बुवाई से पहले आलू के कंदो का शोधन जरूरी है. झुलसा के तहत आलू की पत्तियों में गहरे भूरे रंगे के धब्बे बनते हैं. ये धब्बे पहले पत्तियों के बीच में बनते हैं और फिर धीरे धीरे इनका आकार बढ़ता जाता है. जिससे पूरी पत्ती ही झुलस जाती है. इसके लक्षण आलू की लताओं पर भी दिखाई देता है. इसके नियंत्रण का उपाय न किया जाये तो मौसमी रोग के अनुकूल होने पर पूरे खेत का आलू झुलस जाता है. जिसके बाद खेत में एक अलग तरह की दुर्गंध आती है. आकाश में बादल होने, हल्की बूंदाबांदी होने और तापमान 4 डिग्री सेल्सियस के आसपास होने पर इस बीमारी का प्रकोप तेजी से बढ़ता है. इस बीमारी के नियंत्रण के लिए डायथेन एम 45, मैन्कोजेब 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर 1० दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें. उन्होंने कहा कि आलू में लीफ रोग वायरस का प्रकोप माहू से फैलता है. इस बीमारी से संक्रमित आलू के कंदो को बीज के रूप में प्रयोग करने से फैलता है. ये एक विषाणु जनित रोग है, जिसमें आलू की पत्तियां बाहर की ओर यानी ऊपर की तरफ मोडने लगती हैं. इनका आकार छोटा होने लगता है और पत्तियों का रंग हल्का पीला होने लगता है. जिससे आलू की उपज कम होने लगती है. आलू के लीफ रोल वायरस के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर आलू पर छिड़काव करते हैं. जिससे माहू का नियंत्रण हो जाता है. ये बीमारी नहीं फैलाता है.