संत कबीर नगर: खलीलाबाद शहर जब नींद के आगोश में होता है तो शहर का एक कोना व्यापारियों के आमद से गुलजार रहता है. हम बात कर रहे हैं संत कबीर नगर जिले के ऐतिहासिक बाजार बरदहिया बाजार की रात में बसने वाली कपड़ों की मंडी की. अपने मिजाज और माहौल में कुछ अलग ही है बरदहिया बाजार. पूर्वांचल की ऐसे कपड़ों की मार्केट है जहां सिर्फ साप्ताहिक कारोबार होता है. शनिवार दिन और रविवार रात में देश के कोने-कोने से व्यापारी इस बाजार में पहुंचते हैं. अपने कपड़ों की खरीदारी करते हैं. ठंड का मौसम है और बरदहिया बाजार गर्म कपड़ों से पूरी तरीके से गुलजार हो चुका है, मगर इस बार यहां का बाजार थोड़ा सुस्त है. व्यापारियों को इंतजार है ग्राहकों का जो ठंड कम पढ़ने से दुकानों पर नहीं पहुंच रहे हैं. जिससे उनका ठंडक का कारोबार पूरी तरीके से बंद पड़ा हुआ है. यह साप्ताहिक में 2 दिन लगने वाले इस बाजार में करोड़ों रुपए का कारोबार हो जाता है. रात में व्यापारी खरीदारी कर सुबह अपने मुकाम के लिए रवाना हो जाते हैं.
क्या है इतिहास
खलीलाबाद के पूर्वी सिरे पर कई दशक पहले रविवार को पशु बाजार लगती थी, जिसे बरदहिया बाजार के नाम से जाना जाता था. इस बाजार में आसपास के बुनकर अपने तैयार गमछे, लूंगी, धोती और चद्दरें बेचने के लिए आते थे. बता दें कि 90 के दशक में यहां पशु बाजार लगती थी जो धीरे-धीरे बंद होने लगी और यहां कपड़ों की बाजार लगने लगी. साल 2000 आते आते यहां गोरखपुर, कानपुर, मऊ, टांडा, सीतापुर, मेरठ, मिर्जापुर और बिहार के व्यापारी आने लगे. एक दिन में होने वाले थोक कारोबार ने जोर पकड़ा तो दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, और बंगाल के थोक कपड़ा व्यवसायी भी आने लगे. सर्दियों का सीजन शुरू होते ही नेपाल के व्यवसाई भी यहां आना शुरू कर दिया था.
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वहीं ठंड का सीजन है, देश के कोने-कोने से व्यापारी अपना व्यापार करने के लिए बरदहिया बाजार में पहुंच चुके हैं. लेकिन ठंड कम पड़ने के कारण अबकी बार व्यापारियों का गर्म कपड़ों का कारोबार पूरी तरीके से फ्लॉप हो गया है. गर्म कपड़ों से पूरा बरदहिया बाजार पटा हुआ है, लेकिन खरीदार दुकानों तक नहीं पहुंच रहे हैं. व्यापारियों का कहना है कि जब तक कड़ाके की ठंड नहीं पड़ेगी, तब तक गर्म कपड़ों का कारोबार सही तरीके से नहीं चल पाएगा. दिसंबर का माह समाप्त होने वाला है और ठंडक बिल्कुल नहीं है. जिसके चलते उनका कारोबार बंद होने के कगार पर है. यही वजह है कि वह फिर से अपने वतन के लिए लौटने को मजबूर हो गए हैं.
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