संतकबीरनगर : जिले में स्थित ऐतिहासिक शिव मंदिर बाबा तामेश्वरनाथ धाम की बहुत मान्यता है. हजारों साल पहले बने इस शिव मंदिर के बारे में बताया जाता है कि द्वापर काल में जब पांडवों का अज्ञात वास हुआ था, तब अपने पांचों पुत्रों के साथ माता कुंती सबसे पहले यहां आई थीं. यहीं पर माता कुंती ने शिवलिंग की स्थापना कर पूजा की थी. मान्यता है कि इस मंदिर में ही महात्मा गौतम बुद्ध ने अपने राजसी वस्त्रों को अपने सारथी रक्षक को सौंपकर सन्यास ग्रहण किया था. यहीं पर गौतम बुद्ध ने अपना मुंडन कराया था. इसी को लेकर हर शिवरात्रि के दिन यहां पर मेला लगता है. यह मेला लगभग एक महीने तक चलता है.
खलीलाबाद मुख्यालय से 8 किलोमीटर दूर पूरब दिशा में ऐतिहासिक शिव मंदिर में बाबा तामेश्वरनाथ धाम स्थित है. यह शिव मंदिर हिंदुओं के लिए आस्था का बहुत बड़ा केंद्र है. दूसरी तरफ बौद्ध धर्म के अनुयाइयों में यह तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है. प्रदेश के कोने-कोने से लोग यहां पहुंचते हैं. देवाधिदेव महादेव के शिवलिंग पर जल चढ़ाते हुए मुरादें मांगते हैं. भगवान भोलेनाथ सभी भक्तों की मुराद पूरी करते हैं. ऐसी मान्यता है कि जहां यह मंदिर स्थित है, वहां महाभारत काल में महाराजा विराट का वन क्षेत्र हुआ करता था. यह अज्ञातवास के दौरान कुछ दिनों तक पांडवों का घर भी रहा. इसी दौरान यहां माता कुंती ने प्राकृतिक रूप से बने शिवलिंग की पूजा की थी. तभी से यहां पूजा-अर्चना की जाती है.
इसे भी पढ़ें- जूनियर डॉक्टर भर्ती में खेल पर बवाल, साक्षात्कार पर रोक
पुराने समय में ताम्रगढ़ के नाम से जाना जाता था क्षेत्र
मंदिर में रहने वाले पुजारी केसरी पांडे ने बताया कि पुराने समय में यह नगर ताम्रगढ़ के नाम से जाना जाता था. इसी वजह से ताम्र वडी शिवलिंग को तामेश्वर नाथ धाम के नाम से जाना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो भी भक्त देवाधिदेव महादेव की सच्चे मन से पूजा करता है, भगवान भोलेनाथ उसकी मनोकामना जरूर पूरी करते हैं. केसरी पांडे ने बताया कि हजारों वर्ष बने इस पुराने मंदिर का अपना एक अलग इतिहास है.
शिवनाथ गुप्ता ने बताया कि पहले मंदिर के स्थान पर यह परिसर पूरे जंगल के रूप में तब्दील था, लेकिन अज्ञातवास में आने के बाद माता कुंती ने देवाधिदेव भगवान भोलेनाथ की आराधना करते हुए पहली पूजा इस मंदिर से शुरू की थी. आज यहां हजारों श्रद्धालु आकर भगवान भोलेनाथ का पूजन अर्चन करते हैं.